जौनपुर के गिरिधर मिश्र बने रामभद्राचार्य, प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी के बाद से ही चर्चा में, आप भी जानें...
जौनपुर जिले में जन्मे स्वामी रामभद्राचार्य रामजन्मभूमि मामले में भूमिका और विद्वता के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में स्वामी प्रेमानंद पर टिप्पणी करने के बाद वे विवादों में आ गए हैं। उन्होंने प्रेमानंद को संस्कृत में चुनौती दी और उनकी विद्वता पर सवाल उठाए। इस प्रकरण की देश में इन दिनों खूब चर्चा है।
जागरण संवाददाता, जौनपुर। जिले में सुजानगंज क्षेत्र के साड़ीकला में जन्मे गिरिधर मिश्र को आज देश भर के लोग स्वामी रामभद्राचार्य के तौर पर जानते हैं। रामजन्मभूमि मामले में उनकी भूमिका से तो सभी परिचित हैं। उनके तथ्यों, तर्कों और उनकी मेधा ने हमेशा धर्म को समृद्ध ही करने का काम किया है। मगर, इस बार स्वामी प्रेमानंद को लेकर टिप्पणी करने के बाद से ही उनको लेकर तरह तरह के आरोपों का क्रम जारी है।
स्वामी रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को जौनपुर के सुजानगंज क्षेत्र के साड़ीकला में हुआ। अब गांव का शचीपुरम् हो गया है। इनके बचपन का नाम गिरधर मिश्र है। यह 22 भाषाएं बोल सकते हैं और 80 से अधिक ग्रंथों के लेखक हैं। चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामानंदाचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक व कुलपति हैं। इनके पिता का नाम पंडित राजदेव मिश्र व माता का नाम सची देवी मिश्र था। इनके दादा पंडित सूर्यबली मिश्र विद्वान थे और उन्होंने ने ही रामभद्राचार्यजी को शिक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वामी रामभद्राचार्य दो महीने के ही रहे कि ट्रेकोमा नामक बीमारी से इनके आंखों की रोशनी चली गई थी।
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आंखों की रोशनी जाने के बाद धर्म आध्यात्म की शिक्षा ग्रहण करने के बाद धर्म आध्यात्म के प्रचार प्रसार संग दिव्यांगों के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना कर समाज हित में काम शुरू किया। मगर, बीते दिनों के एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी कर दी और देखते ही देखते उनका इंटरनेट मीडिया पर विरोध शुरू हो गया।
एक पाडकास्ट के दौरान संत प्रेमानंद को पद्मविभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने चुनौती दे दी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य से संत प्रेमानंद के बारे में सवाल किया कि बिना किडनी के भी उनका जीवन चल रहा है। इस पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि यह कोई चमत्कार नहीं है। अगर चमत्कार है तो मैं संत प्रेमानंद को चैलेंज करता हूं कि एक अक्षर मेरे सामने संस्कृत बोलकर दिखा दें बस। या फिर मेरे कहे संस्कृत शब्दों का अर्थ समझा दें। मैं कह रहा हूं कि वह तो मेरे बालक के समान हैं। कहा कि शास्त्र जिसकाे आए वही चमत्कार है।
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इलाज पर बोले कि किडनियों का तो उनका डायलिसिस होता ही रहता है। डायलिसिस पर ही वह जी रहे हैं। देश के सारे नामचीन लोगों के उनके पास जाने के सवाल पर भी उन्होंने टिप्पणी की। कहा कि वृंदावन, अयोध्या सब हैं। मैं प्रेमानंद से द्वेष नहीं रखता हूं, वे मेरे बालक जैसे हैं। पर न तो वे विद्वान हैं और न साधक और न चमत्कारी हैं। चमत्कार उसे कहते हैं जो शास्त्रीय चर्चा पर साझा हो। वे राधावल्लभीय हैं राधा सुधानिधि का एक श्लोक भी वे ठीक से बता दें। उनकी लोकप्रियता है अच्छी है, ये सब क्षण भंगुर और थोड़े दिन के लिए होती है।
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