Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Hathras News : जानिए टेसू-झांसी के विवाह के बाद विसर्जन की कहानी, महाभारत काल से चली आ रही है परंपरा

    By Anil KushwahaEdited By:
    Updated: Sun, 09 Oct 2022 11:18 AM (IST)

    Hathras News ब्रज क्षेत्र में दशहरा के बाद टेसू झांझी को लेकर बच्चे गली- मोहल्ले में गीत गाकर (नेग) चंदा एकत्रित करते थे। लड़के टेसू व लड़कियां झांझी लेकर घर-घर पहुंचते हैं। यह परंपरा महाभारत के अनोखेे पात्र बर्बरीक के पूजन की है।

    Hero Image
    हाथरस के बाजार में बिक रहे टेसू झांसी।

    आकाश राज सिंह, हाथरस। Hathras News : हमारा देश विविधता में एकता प्रतीक है। विभिन्न जाति धर्माें में यह परंपराएं अलग-अलग होती हैं। इसी तरह ब्रज प्रदेश में कई देशी परंपरा प्रचलित हैं, जिनका चलन देश में कहीं नहीं मिलता। ऐसी ही एक परंपरा है महाभारत के अनोखे पात्र बर्बरीक के पूजन की है। ब्रज प्रदेश में इसे टेसू कहा जाता है। नवरात्र में सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र के प्रत्येक गांव-शहर में टेसू पूजन की प्राचीन परंपरा आज भी विद्यमान है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शस्त्र उठाने पर मजबूर हुए भगवान

    धर्माचार्य बताते हैं कि घटोत्कच और अहिलावती (नागकन्या माता) के अंजनपर्व व मेघवर्ण में सबसे बड़े पुत्र बर्बरीक थे। बर्बरीक को उनकी मां ने हमेशा हारने वालों का साथ सिखाया था। महाभारत में उन्होंने दुर्योधन को वचन दिया कि वह श्रीकृष्ण की शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा को भंग कर देंगे। युद्ध के कौशल को देखते हुए अंत भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र उठाकर उसका सिर काट दिया।

    इसे भी पढ़ें : Chhath Puja Special Trains: छठ पूजा पर जाना चाह रहे हैं घर तो नोट करें 12 स्पेशल ट्रेनों के नाम, नंबर और तारीख

    तीन बाणों पर सिर रख दिखाया महाभारत का युद्ध

    धर्माचार्य बताते हैं कि युद्ध में सिर कटने के बाद बर्बरीक उर्फ टेसू ने महाभारत का पूरा युद्ध देखने की प्रार्थना श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम पूरा युद्ध देखोगे ही नहीं, इस युद्ध के निर्णायक भी होगे। श्रीकृष्ण ने तीन बाणों पर उसका सिर रखकर उन्हें एक वृक्ष की टहनी से लटका दिया। इसी टेसू की प्रेमिका का नाम झांझी था। युद्ध में वीरगति पाने के कारण का उसक झांसी विवाह न हो सका।

    नवरात्र में गाए जाते हैं टेसू व झांझी के गीत

    शौर्य एवं चातुर्य के प्रतीक टेसू एवं उसकी प्रेमिका झांझी बृज के हृदयस्थल में बस गए। श्राद्ध पक्ष के बाद तीन सरकंडों पर सजा-धजा कर सिर एवं मिट्टी की एक हांडी रूपी झांझी, जिसमें चारों ओर छेद रहते हैं उसमें जलता दीपक रखा जाता है। बाजारों में इनकी बिक्री बढ़ जाती है। लड़के टेस व लड़कियां झांझी लेकर गांव व शहर में गीत गाते हुए पैसा व अनाज मांगते हैं। घरों में इनके गीत गाए जाते हैं।

    टेसू-झांझी के विवाह के साथ शुरू होते मांगलिक कार्य

    नवरात्रों में टेसू व झांझी मांगने के बाद एकत्रित हुए सामान से टेसू-झांझी का विवाह कराकर प्रसादी वितरण की जाती है। दशहरा वाले दिन इन्हें यमुना, नहर, नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। ब्रज के कुछ हिस्सों में दशहरा वाले दिन इन्हें खरीदने की परंपरा है। इन्हें 20 से 50 रुपये खरीदा जाता है। इनका विसर्जन शरद पूर्णिमा को किया जाता है। इनके विवाह के साथ वैवाहिक आयोजन शुरू हो जाते हैं।

    इस संबंध में 

    'मेरा टेसू यहीं अडा, खाने को मांगे दही बड़ा,

    टेसू रे टेसू घंटा बजइयो,

    दस नगरी दस गांव बसईयो,

    और मेरी झांझी के ऐरे फेरे अइयो...

    खाटू श्याम के रूप में होती पूजा

    श्रीकृष्ण ने उसकी वीरता पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि कलयुग में उसकी पूजा श्रीकृष्ण के रूप में होगी और श्याम बाबा के नाम से पूजा जाएगा। महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद ही बर्बरीक का पूजन हो गया। खाटू श्यामजी के नाम से इनका मंदिर सीकर (राजस्थान) में बना है। इसमें बर्बरीक का सिर पूजा जाता है। फाल्गुन की एकादशी को बर्बरीक का जन्म दिन पर यहां विशाल मेला लगता है

    पब्लिक बोल

    टेसू झांझी को लेकर बच्चे गली- मोहल्ले में गीत गाकर (नेग) चंदा एकत्रित करते थे। लड़के टेसू व लड़कियां झांझी लेकर घर-घर पहुंचते हैं।

    - निधि गुप्ता, गृहणी

    टेसू का नया गीत हर साल तैयार किया जाता था। युवाओं द्वारा इसे लेकर बहुत उत्साह रहा करता था। अब तो इंटरनेट मीडिया में यह परंपरा खोती जा रही है।

    - उपवेश कौशिक, समाजसेवी

    टेसू महाभारत का एक महान योद्धा था। भगवान श्रीकृष्ण के हाथों इसे वीरगति प्राप्ति हुए। उनके वचन से ही आज सभी जगह खाटू श्याम के रूप में टेसू की पूजा की जाती है।

    - पं. विश्वनाथ पुराेहित, ज्योतिषाचार्य