योगानंद की जन्मभूमि बनेगी 'योगभूमि', दुनिया भर के भक्त रमाएंगे धूनी
परमहंस योगानंद की जन्मभूमि गोरखपुर में योगभूमि के रूप में विकसित होगी। दुनिया भर में फैले उनके शिष्यों और भक्तों की मांग पर जन्मस्थल को स्मृति भवन बनाया जाएगा। योगानंद की यादों को संजोने के लिए चार मंजिला भवन का निर्माण होगा जिसमें संग्रहालय पुस्तकालय मंदिर और योग केंद्र होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से यह संभव हो सका है।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। जन्मभूमि को योगभूमि बनाकर परमहंस योगानंद की बचपन की यादें संजोई जाएंगी। दुनिया भर भर में फैले उनके शिष्यों और भक्तों की जन्मभूमि को स्मृति भवन बनाने व उसके माध्यम से उनकी योगसेवा का पाठ जन-जन को पढ़ाने जैसी मांगे पूरी की जाएंगी।
याेगभूमि के स्वरूप लेते ही दुनिया भर में फैले भक्त गोरक्ष भूमि पर आएंगे और योगानंद की जन्मभूमि पर धूनी रमाएंगे। इसकी रूपरेखा तैयार हो चुकी है। योगानंद के जन्मस्थल को तीर्थ स्थल के रूप से विकसित करने की योजना धरातल पर उतरने लगी है। जन्मस्थल और आसपास की 1360 वर्गमीटर की भूमि पर्यटन विभाग ने अधिग्रहीत कर ली है। शासन से धन की स्वीकृति व प्राप्ति के बाद निर्माण की प्रक्रिया आगे बढ़ा दी है।
गोरक्ष नगरी में रहने वाले लोगों का यह सौभाग्य ही है कि वह जिस शहर में रहते हैं, वह गुरु गोरक्षनाथ जैसे योगसाधक की तपोस्थली के साथ-साथ दुनिया भर को क्रिया योग का पाठ पढ़ाने वाले योगानंद की जन्मस्थली भी है। यह वही शहर है, जिसके मुफ्तीपुर मोहेल्ले में पांच जनवरी, 1893 को योगानंद जैसे महान योगी का जन्म हुआ और उनका आठ वर्ष का शुरुआती जीवन यहीं पर बीता।
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पिता भगवती चरण घोष बंगाल-नागपुर रेलवे के कर्मचारी थे और उन दिनों उनकी तैनाती गोरखपुर में ही थी। किराए भवन में योगानंद का जन्म हुआ तो पिता ने उनका नाम मुकुंद घोष रखा। आठ भाई-बहनों में चौथे नंबर की संतान मुकुंद में एक संत का दिव्य व्यक्तित्व है, इसका आभास परिवार के लोगों को गोरखपुर में रिहाइश के दिनों में हो गया था।
परमहंस योगानंद। जागरण
उनके भाई सानंदलाल घोष ऐसे कई प्रसंगों का जिक्र अपनी पुस्तक ''''मेजदा'''' में किया है। पुस्तक में ऐसे कई सिद्ध प्रयोगों का जिक्र है, जिसे देख परिवार के लोग और पड़ोसी अचरज में पढ़ गए थे। एक बार अचानक गायब हो जाना और खोजने पर गोरखनाथ मंदिर में ध्यान करते हुए मिलना, बालक मुकुंद में योगानंद का दर्शन होने का ऐसा ही एक प्रसंग है।
चार तल की होगी याेगभूमि, 28 करोड़ से होगा निर्माण
भूमि तल सहित चार तल के योगभूमि के निर्माण में कुछ 28 करोड़ रुपये खर्च होंगे। पहले किस्त के रूप में पांच करोड़ कार्यदायी संस्था सीएंडडीएस (कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज) को जारी भी किए जा चुके हैं। योगानंद की जन्मस्थली पर बनाए जाने वाले भवन की हर मंजिल पर अलग-अलग तरीके से योगानंद की यादें संजोयी जाएंगी। भूमि तल के बाहर हिस्से एक लान विकसित किया जाएगा, जिसमें योगानंद की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
पहले तल पर एक संग्रहालय और पुस्तकालय बनाया जाएगा, जिसमें योगानंद के अलग-अलग मुद्रा में चित्रों को अवलोकनार्थ सजाया जाएगा। उनसे जुड़े बहुमूल्य सामानों का भी प्रदर्शन किया जाएगा। दूसरे तल पर उस स्थान को मंदिर का स्वरूप दिया जाएगा, जहां आज से 132 वर्ष पहले योगानंद जन्मे थे।
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मंदिर के सामने केंद्र का दूसरा योग सेंटर बनाया जाएगा, जिसमें बैठकर योगानंद की शिष्य परंपरा के लोग योग व ध्यान कर सकेंगे। तीसरे और अंतिम तल पर दो हाल बनाए जाएंगे, जिसमें योगाभ्यास व ध्यान की व्यवस्था रहेगी।
मुख्यमंत्री योगी के प्रयास से हुआ संभव
योगानंद का जन्म कोतवाली की बगल वाली गली में 132 वर्ष पहले हुआ लेकिन अलग-अलग वजह से न तो वह स्थल स्मृति भवन के रूप में विकसित हो सका और न ही उसे एक तीर्थ स्थल के रूप में संजोया जा सका। वर्ष 2021 के मध्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक उनके योगानंद के भक्तों व शिष्यों की जन्मस्थल को तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने की मांग पहुंची।
उन्होंने तत्काल इसका संज्ञान लिया और इस कार्य में आने वाले अड़चनों को दूर करके परमहंस की जन्मभूमि को योगभूमि के नाम से विकसित करने का निर्देशन प्रशासन व शासन को दिया। उनके इस निर्णय को दैनिक जागरण ने 21 जून 2021 के अंक में पहली बार प्रकाशित किया। ऐसे में पुण्यतिथि पर इस बात का जिक्र करना आवश्यक हे कि योगानंद की जन्मभूमि को तीर्थभूमि के रूप में विकसित होना मुख्यमंत्री की विशेष पहल से ही संभव को सका।
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