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    सबरंग: गोरक्ष नगरी की 'आकाश' वाणी, स्वर्णिम अतीत और वर्तमान की चुनौतियां

    संबरंग आकाशवाणी गोरखपुर का इतिहास पांच दशक से भी अधिक पुराना है। इसने अपने रोचक कार्यक्रमों से श्रोताओं के दिल में खास जगह बनाई है। हालांकि टेलीविजन और इंटरनेट मीडिया के बढ़ते चलन के कारण इसकी लोकप्रियता कम हुई है लेकिन रेडियोप्रेमी श्रोता आज भी अपने मनपसंद कार्यक्रम को सुनने के लिए आकाशवाणी का गोरखपुर केंद्र लगा ही लेते हैं।

    By Rakesh Rai Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 09 Feb 2025 04:44 PM (IST)
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    नगर निगम परिसर में स्थित आकाशवाणी केन्द्र गोरखपुर का भवन। जागरण

    आकाशवाणी केंद्र की मौजूदगी किसी भी शहर की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रमाण होती है। इस दृष्टि से अपना शहर गोरखपुर भी काफी समृद्ध है। यहां के आकाशवाणी केंद्र का इतिहास दो-चार नहीं बल्कि पांच दशक से भी अधिक पुराना है।

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    टेलीविजन और इंटरनेट मीडिया के बढ़े चलन के चलते मीडिया जगत पर इसका प्रभाव जरूर कम हुआ है लेकिन कार्यक्रमों की विश्वसनीयता से इसने न केवल अपने अस्तित्व को बचाए रखा है बल्कि लोगों के दिल में भी जगह बना रखी है। विश्व रेडियो दिवस वह अवसर है जब हम आकाशवाणी गोरखपुर के स्वर्णिम दौर को याद कर सकते हैं और वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता पर विचार कर सकते हैं। प्रस्तुत है वरिष्ठ संवाददाता डा. राकेश राय की रिपोर्ट....

    आज से करीब 51 वर्ष पहले दो अक्टूबर 1974 को आकाशवाणी के गोरखपुर केंद्र से लखनऊ के वरिष्ठ एनाउंसर अरुण श्रीवास्तव की गंभीर आवाज गूंजी तो संचार की दुनिया में गुरु गोरक्ष की नगरी की इलेक्ट्रानिक धमक न केवल महसूस की गई बल्कि तत्काल प्रभाव से स्वीकारी भी गई।

    रेडिया। जागरण (सांकेतिक तस्वीर)


    100 किलोवाट के इस रेडियो स्टेशन की आवाज की पहुंच का कागजी दायरा तो हवाई 100 किलोमीटर था लेकिन प्रयोग के धरातल यह आवाज देश के समूचे उत्तरी इलाके तक पहुंचीं। केंद्र के महत्व को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि उन दिनों गोरखपुर प्रदेश का दूसरा ऐसा आकाशवाणी केंद्र था, जिसकी क्षमता 100 किलोवाट थी।

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    मौसम साफ होने पर पाकिस्तान और नेपाल के कई हिस्सों में रेडियो पर ''''ये आकाशवाणी गोरखपुर है'''' गूंजने लगा। उसके बाद आकाशवाणी ने अपने रोचक कार्यक्रमों के जरिये श्रोताओं के दिल में जो जगह बनाई वह तीन दशक तक स्थायी भाव से बनी रही। पहले दूरदर्शन और फिर टीवी के निजी चैनलों ने आकर इसकी लोकप्रियता कम जरूर कर दी लेकिन रेडियोप्रेमी श्रोता आज भी अपने मनपसंद कार्यक्रम को सुनने के लिए आकाशवाणी का गोरखपुर केंद्र लगा ही लेते हैं।

    गजब थी 'इंद्रधनुष' व 'झरोखा' की लोकप्रियता

    जिन कार्यक्रमों के माध्यम से आकाशवाणी का गोरखपुर केंंद्र श्रोताओं के दिल में स्थापित हुआ, उनकी संख्या दो-चार नहीं बल्कि दर्जन भर है। केंद्र के स्वर्णिम दौर को याद करें तो सबसे पहले जिन कार्यक्रमों की मधुर ध्वनि कानों की गूंजती है, वह हैं 'इंद्रधनुष' व 'झरोखा'।

    इन दोनों कार्यक्रमों की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनकी प्रशंसा के पत्र समूचे उत्तरी भारत से आते थे। आकाशवाणी की मशहूर उद्घोषिका उदिता श्रीवास्तव बताती हैं कि इन दोनों कार्यक्रमों को लेकर सराहना भरे पत्र उन्हें पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत के अलावा नेपाल के कई हिस्सों से भी प्राप्त हुए थे। 'शेर आपके गीत हमारे' कार्यक्रम के श्रोताओं की संख्या भी लाखों में थी।

    नगर निगम परिसर में स्थित आकाशवाणी गोरखपुर केंद्र। जागरण


    मारिशस व फिजी जैसे देशों में लोकप्रिय थे रेडियो नाटक

    मशहूर रंगकर्मी और आकाशवाणी के पूर्व कार्यक्रम अधिशासी हसन अब्बास रिजवी रेडियो नाटकों की लोकप्रियता की चर्चा करते थे। बताते हैं कि आकाशवाणी से प्रसारित कुछ नाटक तो इतने लोकप्रिय हुए कि उनकी मांग मारिशस और फिजी जैसे देशों में हुई। रिजवी बताते हैं कि कई श्रोता तो नाटक के पात्रों को असलियत में देखने के लिए केंद्र तक चले आते थे। केंद्र से प्रसारित होने वाला पहला नाटक ''''पार्क में'''' था, जिसे काफी लोकप्रियता मिली। 'आखिर कब तक', 'हैबदन' , 'करनी का फल' जैसे दर्जन भर रेडिया नाटक काफी लोकप्रिय रहे।

    आज है याद हैं श्रोताओं के नाम : सर्वेश दुबे

    आकाशवाणी गोरखपुर के मशहूर उद्घोषक सर्वेश दुबे बताते हैं कि फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रम को लेकर श्रोताओं का गजब का आकर्षण था। फरमाइश करने वाले कुछ श्रोताओं के नाम उन्हें आज भी याद हैं। वह बताते हैं कि सर्वाधिक फरमाइश नरकटियागंज, मऊ के मोहम्मदाबाद और बलिया से आती थी।

    नरकटियागंज लव चक्रवर्ती व शैलेंद्र किशोर सुमन, मोहम्मदाबाद के रहमत और बलिया के दारोगा सिंह की फरमाइशी चिट्ठी हर सप्ताह मिलती थी। 'पत्र मिला' कार्यक्रम को लेकर श्रोताओं में काफी उत्सुकता रहती थी। सर्वेश दुबे के अनुसार इतने ज्यादा पत्र आते थे कि प्रसारण योग्य पत्र अलग करने में काफी वक्त लग जाता था।

    विंध्यवासिनी राय। जागरण


    खेती के कार्यक्रमोें को सुन किसान बनाते थे योजना : विंध्यवासिनी राय

    आकाशवाणी के पूर्व कृषि प्रसारण अधिकारी विंध्यवासिनी राय केंद्र के भोजपुरी में प्रसारित होने वाले खेती के कार्यक्रमों की लोकप्रियता को याद कर रहे हैं। बता रहे हैं कि बहुत से किसानों का कृषि कार्य खेती के कार्यक्रम पर निर्भर हुआ करता था। किसान उसे सुनकर अपनी योजना बनाया करते थे। ऐसे में 'खेतीबारी', 'खेती की बातें' और 'ग्राम जगत' कार्यक्रम जरूर सुना करते थे।

    कुछ तो ऐसे श्रोता थे, जो कार्यक्रम सुनकर कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेने के लिए आकाशवाणी केंद्र तक पहुंच आते थे। कार्यक्रम के दौरान बजाए जाने वाले लोकगीतों की खूब फरमाइश आती थी। कई ऐसे भी श्रोता थे, जिनको फरमाइशी चिट्ठी पोस्ट से भेजने पर भरोसा नहीं था तो वह उसे पहुंचाने खुद केंद्र पर चले आते थे। देवरिया, मऊ, आजमगढ़ और बलिया के श्रोताओं में खेती के कार्यक्रम को लेकर गजब का उत्साह देखने को मिलता था।

    सुपरहिट थी राहत-उषा व केवल-पद्मा की जोड़ी : पीके त्रिपाठी

    पूर्व कार्यक्रम अधिशासी पीके त्रिपाठी रेडियो दिवस पर आकाशवाणी गोरखपुर के दो मशहूर गायक जोड़ी को याद करते हैं। बताते हैं कि उस्ताद राहत अली व उषा टंडन की जोड़ी पूरे भारत में घूम-घूम कर गोरखपुर आकाशवाणी का परचम लहराया करती थी।

    उनके गीत पूर्वाचल के लोगों के जुबान पर हुआ करते थे। लोकगीत से लेकर गजलों तक की उनकी दखल आकाशवाणी के श्रोताओं में खूब पसंद की जाती थी। इसी क्रम में वह केवल कुमार और पद्मा गिडवानी का नाम लेना भी नहीं भूलते। यह जोड़ी भी उस दौर में सुपरहिट थी।

    रवींद्र श्रीवास्तव। जागरण


    गोरखपुर आकाशवाणी का प्रतीक बन गए 'जुगानी भाई'

    आकाशवाणी गाेरखपुर का नाम आते ही जो नाम सबसे पहले जुबां पर आता है, वह है रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी का। यह एक ऐसा नाम है, जो उद्घाटन के साथ ही केंंद्र का प्रतीक बना हुआ है। आज भी लोग देखने और उनके विषय में जानने को लेकर उत्सुक रहते हैं।

    जुगानी बताते हैं कि आकाशवाणी के प्रसारण के लिए खासतौउपर से रखे गए ठेठ देहाती नाम होने के चलते लोग उन्हें बूढ़ा समझते थे, जबकि वह उन दिनों युवा थे। श्रोताओं की मांग पर उन्हें आकाशवाणी के एक मंचीय कार्यक्रम में बूढ़ा बनकर प्रस्तुत होना पड़ा था क्योंकि लोग उन्हें युवा के तौर पर स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। 90 के दशक में तो उन्हें देखने के लिए कई बार ऐसी भीड़ लगी कि पुलिस-प्रशासन को उनकी सुरक्षा का इंतजाम करना पड़ा।

    सर्वेश दुबे। जागरण


    कैफी, मन्ना द, फिराक जैसे विभूतियों के पड़े हैं पांव

    उद्घोषक सर्वेश दुबे यादों को टटोलकर बताते हैं कि आकाशवाणी गोरखपुर का केंद्र देश की कई मशहूर विभूतियों की यादों को भी संजोए हुए है। इस स्टूडियो के माध्यम से फिराक गोरखपुरी और कैफी आजमी जैसे नामचीन शायरों की शायरी गूंजी है तो पं. जसराज और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का सुर भी सजा है। पं. किशन महराज, ख्वाजा अहमद अब्बास, उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, पंडवानी गायिका तीजनबाई व रीतू वर्मा जैसे राष्ट्रीय कलाकारों की दस्तक भी इस केंद्र पर हो चुकी है।

    एक मात्र केंद्र जहां से प्रसारित होता है भोजपुरी समाचार

    गोरखपुर का आकाशवाणी केंद्र देश का एक मात्र केंद्र है, जहां से भोजपुरी समाचार का प्रसारण होता है। इसकी शुरुआत आज से 16 साल पहले छह नवंबर 2008 में हुई। तब से लगातार शाम छह बजे भोजपुरी में पांच मिनट के समाचार का क्रम जारी है। इस समाचार की लोकप्रियता पूर्वांचल के लगभग सभी जिलों में है। आज जब कम ही लोगों के पास रेडियो सेट हैं तो लोग इंटरनेट मीडिया के विभिन्न माध्यमों से इस समाचार को सुनते हैं और अपनी बोली में समाचार सुनकर आनंदित होते हैं।

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    नगर निगम परिसर में स्थित आकाशवाणी गोरखपुर केंद्र। जागरण


    समाचार प्रसारित करने वाला दूसरा आकाशवाणी केंद्र

    गोरखपुर के आकाशवाणी केंद्र की उपयोगिता कितनी अधिक रही होगी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह प्रदेश के उन दो केंद्रों में शामिल है, जहां से आकाशवाणी समाचार प्रसारित हो है। सुबह के प्रादेशिक समाचार का प्रसारण गोरखपुर से होता है तो शाम का लखनऊ से।

    यह दोनों ही समाचार सात बजकर 20 मिनट पर प्रसारित होते हैं। समाचार प्रभाग के पूर्व उप निदेशक रमेश चंद्र शुक्ल बताते हैं कि केंद्र से प्रादेशिक समाचारों का प्रसारण 1980 से शुरू हुआ। आज की तिथि की समाचार प्रभाग प्रदेशिक, क्षेत्रीय व भोजपुरी तीन समाचारों का प्रसारण करता है।

    यह सभी समाचार इंटरनेट मीडिया के सभी माध्यमों पर उपलब्ध रहते हैं। समाचार प्रभाग के प्रभारी ओम अवस्थी के अनुसार इंटरनेट मीडिया पर रेडियो के समाचार के फालोअर की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इसे लेकर तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं।