सबरंग: समय के साथ जीवंत इतिहास बताता है घंटाघर, इस चौराहे की घड़ी बनेगी शहर की नई पहचान
घंटाघर की घड़ियां समय की गवाह हैं। इनकी टिक-टिक और घंटे से जहां शहर का वर्तमान झंकृत है वहीं इसकी अनुगूंज में अतीत के अनगिन किस्से समाए हैं। पराधीनता की पीड़ा से लेकर अमर बलिदानियों की शौर्य गाथा तक सबको इसकी सुइयों की आवाज ने खुद में समेटा है। ये घड़ियां शहर के वर्तमान के साथ भूत और भविष्य को जोड़ रही हैं।
अरुण मुन्ना, गोरखपुर। घंटाघर की घड़ियां। इनकी टिक-टिक और घंटे से जहां शहर का वर्तमान झंकृत है, वहीं इसकी अनुगूंज में अतीत के अनगिन किस्से समाए हैं। पराधीनता की पीड़ा से लेकर अमर बलिदानियों की शौर्य गाथा तक, सबको इसकी सुइयों की आवाज ने खुद में समेटा है। इसीलिए तो न सिर्फ ये घड़ियां, बल्कि इसे धारण करने वाला घंटाघर शहर की अनमोल विरासत के रूप में पहचाना जाता है। घंटाघर चौक पर बने त्रिभुजाकार स्तंभ पर तीन दिशाओं में लगी ये घड़ियां मानों शहर के वर्तमान के साथ भूत और भविष्य को जोड़ रही हों।
एक ओर जहां ये सबको समय बताती हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अमर बलिदानी बिस्मिल से जुड़ी निशानी के रूप में जानी जाती हैं। मातृभूमि के लिए उनका सर्वोच्च बलिदान याद दिलाकर ये नई पीढ़ी के मन में राष्ट्र प्रथम का भाव भी भरती हैं। समय के साथ इस जीवंत इतिहास का दर्शन करा रही जागरण संवाददाता अरुण मुन्ना की यह रिपोर्ट।
किसी शहर की पहचान घंटाघर से होती है। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि वहां लगी घड़ी, समय के अनुसार घंटा बजाकर लोगों को वक्त के बदलने की जानकारी देती है। यूं कहे तो घंटाघर सिर्फ वर्तमान समय ही नहीं बताता, बल्कि इतिहास का भी भान कराता है। वह अतीत की याद दिलाते हुए विभिन्न संघर्षों की गाथाएं सुनाकर आने वाली पीढ़ी को प्रेरित करता है।
घंटाघर स्थित चिगान टॉवर पर लगी घड़ी। जागरण
हिन्दी बाजार में चौराहे पर बनी एक ऊंचे त्रिभुजाकार स्तंभ में तीन ओर घड़ी स्थापित है। जो सुबह से लेकर शाम तक लोगों को समय बताती है। इसी के नाम से पूरे क्षेत्र को घंटाघर के नाम से जाना जाता है। यह बाजार में हर आने जाने वाले हर किसी को आजादी के संघर्ष में अमर बलिदान की वीर गाथाओं की याद दिलाता है। यह घंटाघर स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों अमर बलिदान की निशानी है।
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घंटाघर चौराहे से चंद कदम की दूरी पर शारदा चन्द्र वर्मा मार्ग किनारे कैलाश की आभूषण की दुकान उनके पिता किशुन प्रसाद के नाम से है। कैलाश कहते हैं कि उन्होंने जब से होश संभाला। तभी से घंटाघर को देख रहे हैंं। उनके पिता बताते थे कि वर्ष 1930 से उस जगह पर बहुत बड़ा पाकड़ का पेड़ हुआ करता था। तब उस पेड़ का प्रयोग अंग्रेज सन 1857 की क्रांति में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीरों को फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए करते थे।
रेलवे स्टेशन पर लगी घड़ी। जागरण
इसमें एक क्रांतिकारी अली हसन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिनको वहां फांसी दी गई थी। इतना ही नहीं, इसका गहरा जुड़ाव महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से भी है। घंटाघर की दीवार पर अमर बलिदानी की बड़ी तस्वीर लगी है। उन्होंने आजादी की लड़ाई में आने वाला खर्च जुटाने के लिए नौ अगस्त 1925 में अपने साथियों संग मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया। ट्रेन में रखा अंग्रेजों का खजाना लूटकर भाग गए।
इस अपराध में अंग्रेजों ने उनको गिरफ्तार करके गोरखपुर कारागार में निरुद्ध कर दिया, जहां 19 दिसंबर 1927 को उनको फांसी दी गई। इसके बाद जेल से उनकी शव यात्रा निकालकर उसे घंटाघर में ले जाया गया। वहां बलिदानी के पार्थिव शरीर को कुछ देर तक आमजन के दर्शन के लिए रखा गया।
बताते हैं कि तब वहां पर बिस्मिल की मां ने देशभक्तों के लिए एक प्रेरक भाषण भी दिया था। ताकि अधिक से अधिक युवा आजादी की लड़ाई में भागीदार बन सके। तभी से घंटाघर का ऐतिहासिक महत्व भी है। समय बताने वाली घड़ी को देखकर लोग गर्व महसूस करते हैं।
घंटाघर स्थित चिगान टॉवर पर लगी घड़ी। जागरण
सेठ चीगान साहू की स्मृति में बना चीगान टाॅवर
घंटाघर में रेडीमेड कपड़ों का काम करने वाले अरविंद श्रीवास्तव ने बताया कि घंटाघर बनने के पहले चौराहे पर पाकड़ का बड़ा पेड़ था। बाद में उसी स्थान पर चीगान टाॅवर की स्थापना हुई। वर्ष 1937 में मोहल्ला रायगंज के सेठ राम खेलावन साहू व सेठ ठाकुर प्रसाद साहब ने अपने पिता सेठ चीगान साहू की स्मृति में चीगान टावर ठाकुर सुखदेव प्रसाद जी वकील के अनुग्रह से निर्माण कराकर मिस्टर विन्ध्यवासिनी प्रसाद वकील और चियरमैन गोरखपुर को समर्पित किया था।
इस संबंध में हिंदी और अंग्रेजी दर्ज सूचना का शिलापट्ट भी दीवारों पर अंकित है। तब यह ऊंचा भवन अमर बलिदानियों को समर्पित था, जिन्हें आजादी की लड़ाई में फांसी दी गई। इसे काफी दिनों तक सेठ चीगान के नाम से ही लोग जानते रहे। हुकूमत बदली तो इस टावर की सूरत भी बदली, जहां घंटे वाली घड़ी लगा दी गई। इस वजह से इसका नाम घंटाघर हो गया।
घड़ी लगने के बाद इसके टन टन की आवाज सुनकर बसंतपुर, हांसूपुर, पांडेयहाता इत्यादि मोेहल्लों के लोग सोते जागते थे। समय देखने के लिए लोग चौराहे पर आते थे। विद्यार्थियों के स्कूल जाने से लेकर नौकरी पेशा लोगों के कार्यालय जाने के लिए घड़ी काम आती रही।
घंटाघर स्थित चिगान टॉवर पर लगी घड़ी। जागरण
हांसूपुर मोहल्ले के रहने वाले दीपू पंडित ने बताया कि उनके चचेरे दादा सत्य नारायण घड़ी की देखभाल करते थे। उन्होंने करीब 40 साल तक इसकी देखरेख की। रोजाना सुबह समय से जागकर चाबी भरना। किसी तरह की गड़बड़ी होने पर घड़ी की मरम्मत कराना उनकी जिम्मेदारी थी। उनको घड़ी का अच्छा ज्ञान हो गया था, लेकिन 20 साल पहले जब उनका निधन हुआ तो घड़ी की देखभाल पर संकट खड़ा हो गया। इसके बाद घड़ी का जिम्मा नगर निगम ने उठा लिया है। तभी से उसके कर्मचारी इसका संचालन संभाल रहे हैं। एक मेठ के पास घड़ी टावर के दरवाजे पर लगे ताले की चाबी रहती है।
15 साल के बाद वर्ष 2013 में हुई घड़ी की मरम्मत
स्थानीय दुकानदार सेराज अहमद के अनुसार देखरेख के अभाव में अक्सर ही घड़ी बंद हो जाती है। वर्ष 2013 में तत्कालीन महापौर डा. सत्या पांडेय से लोगों ने घड़ी के खराब होने की शिकायत की। उन्होंने घड़ी को देखकर इसके महत्व को आधार पर नगर आयुक्त राजेश त्यागी को इस घड़ी की भव्यता से अवगत कराया। अथक प्रयास के बाद घड़ी से टिक टिक की आवाज सुनाई देने लगी।
घंटाघर स्थित चिगान टावर पर लगा शिलापट्ट। जागरण
इसके पहले वर्ष 2003 में इसकी मरम्मत कराई गई थी। इस घड़ी के कल-पुर्जे कड़ी मशक्कत से मिलते हैं। इसमें छोटे बड़े कई गेयर लगे हुए हैं। इसे चलाने के लिए हर चार दिन के बाद चाबी भरी जाती है। यदि किसी तरह की लापरवाही हुई तो घड़ी शांत पड़ जाती है।
अब सुंदरीकरण की चल रही तैयारी, लगेगी डिजिटल बेल
ऐतिहासिक घंटाघर स्मारक का स्वरूप जल्द ही बदल जाएगा। इसका सुंदरीकरण कराने की तैयारी नगर निगम ने की है। 15वें वित्त आयोग के तहत इसकी सूरत बदली जाएगी। नगर निगम प्रशासन ने करीब एक करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है। काफी समय से मरम्मत नहीं होने की वजह से घंटाघर टावर काफी जर्जर हो गया है। इसलिए इसके दीवारों और घड़ी की मरम्मत कराकर नये सिरे से रंगाई और पुताई की जाएगी।
घड़ी का स्वरूप बदला जाएगा। इसमें नई तकनीकी की डिजिटल बेल लगेगी, जो हर घंटे बजकर लोगों को समय बताएगी। नगर निगम के मुख्य अभियंता संजय चौहान ने बताया कि इसका शिलान्यास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कराने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद ही चयनित फर्म इसका जीर्णोद्धार कराएगी। इससे स्थानीय लोग काफी खुश हैं। उनका कहना है कम से कम घड़ी की समय से देखभाल हो सकेगी।
असुरन चौराहे पर लगी घड़ी। जागरण
शहर की नई पहचान बनेगा असुरन चौराहा, राहगीरों को बताएगा समय
असुरन चौराहा जल्द ही शहर की नई पहचान बनकर उभरेगा। यहां लगी घड़ी से लोग समय जान सकेंगे। घंटाघर और रेलवे स्टेशन के बाद यह शहर की तीसरी जगह होगी, जहां घड़ी लग रही है। इसलिए चौराहों को बेहद ही खूबसूरत बनाया जा रहा है। आने वाले दिनों में इस चौराहे की खूबसूरती जहां लोगों को लुभाएगी तो दुबई के क्लाक टावर के प्रारूप में लगी घड़ी सबको समय बताएगी।
इस टावर में लगीं घड़ियां राहगीरों को समय बताएंगी। इससे देखकर लोग समय जा सकेंगे। प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग के अधिकारी फरवरी माह में इसका निर्माण कार्य पूरा कराने की तैयारी में है। शहर को महराजगंज, पिपराइच और चार फाटक होते हुए देवरिया व कुशीनगर जनपद को जोड़ने वाले इस चौराहे के सुंदरीकरण की जब योजना बनी तो कुछ नया करने का प्रस्ताव लोक निर्माण विभाग के अभियंता ले आए।
असुरन चौराहे पर लगी घड़ी। जागरण
चौराहे पर लोक नायक जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा स्थल को दुबई के क्लाक टावर प्रारूप पर विकसित किया जा रहा है। सफेद मार्बल से बनी डिजाइन के बीच में ही फौव्वारा स्थापित होगा, जिसमें लगी फसाड लाइट की रंग बिरंगी रोशनी के बीच पानी की फुहार आकर्षित करेंगी। टावर में घड़ी लगा दी गई है, जो समय बता रही है। इसलिए इधर से आने जाने वाले लोगों की नजरें घड़ी पर टिक जा रही है।
समय बदला तो बदल गई रेलवे की घड़ी
पहले जब कभी लोगों के पास घड़ी नहीं होती थी तो रेलवे स्टेशन पर लगी घड़ी देखकर लोग समय जानते थे। ट्रेन पकड़ने जाने वाले यात्रियों के अलावा आम शहरी भी इसका उपयोग करते थे। माना जाता था कि यह घड़ी सबसे दुरुस्त समय बता रही है। मैकेनिकल घड़ी को संचालित करने के लिए एक कर्मचारी नियुक्त किया गया था। जो चाबी भरकर घड़ी को चलाता था।
रेलवे स्टेशन पर लगी घड़ी। जागरण
किसी वजह से घड़ी सुस्त पड़ गई तो उसकी मरम्मत के लिए मैकेनिक खोजकर ले आता था। लेकिन वक्त बदला तो रेलवे में तमाम बदलाव आए। उसका असर इसकी घड़ी पर भी पड़ा। अब रेलवे की घड़ी किसी आदमी के सहारे नहीं चलती। आटोमैटिक घड़ी को जीपीएस से जोड़ दिया गया है। टावर में लगी तीन घड़ियों को वर्ष 2022 में करीब चार लाख के बजट से बदला गया है।
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रेलवे स्टेशन के निदेशक जेपी सिंह ने बताया कि पूरी तरह से आटोमैटिक घड़ी को बेहद ही आकर्षित करने वाली है। सूर्य के डूबने पर इसके भीतर लगी लाइट अपने आप जल जाती हैं। सूरज उगने पर रोशनी पड़ने पर स्वत: बुझ जाती हैं। इसमें सेंसर लगाया गया है। जीपीएस यानी कि वैश्विक स्थान-निर्धारण प्रणाली (ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम) के आधार पर संचालन होने की वजह से इसका समय बार बार ठीक नहीं करना पड़ता है। यदि किसी कारण से घड़ी खराब हो गई तो दोबारा ठीक होने के बाद यह अपने आप समय बताने लगती है।
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