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    पूर्वी UP की फ्लोर मिलों में घटा उत्पादन, इस वजह से उद्यमियों को हो रहा नुकसान

    By Jagran NewsEdited By: Nitesh Srivastava
    Updated: Wed, 11 Oct 2023 02:11 PM (IST)

    दक्षिण भारत में गेहूं मंगाने पर रेट महंगा हो जाता था जिससे वहां के उद्यमियों के यहां तैयार उत्पाद उनके यहां ही महंगे पड़ते थे। केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए एक नियम के अनुसार एफसीआइ के गोदाम से टेंडर के माध्यम से 100 टन गेहूं प्रति सप्ताह प्राप्त होता है। इस नियम के अनुसार जो रेट गोरखपुर में है वही कन्याकुमारी में भी है।

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    तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। जागरण

    उमेश पाठक, गोरखपुर। गेहूं के रेट के फेर में पूर्वी उत्तर प्रदेश की फ्लोर मिलों में उत्पादन घट गया है। यहां तैयार आटा, मैदा, सूजी आदि उत्पाद बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों को भेजे जाते थे।

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    पहले वहां गेहूं का मूल्य अधिक होने के कारण कम फ्लोर मिलें संचालित होती थीं, लेकिन जब से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) से पूरे देश में एक ही मूल्य पर गेहूं मिलने लगा है, दक्षिण भारत में तैयार उत्पाद इधर के उत्पादों से सस्ते हो गए हैं।

    इससे यहां के उद्यमियों को उत्पादन कम करना पड़ा है। गेहूं का उत्पादन उत्तर भारत में अधिक होने के कारण अधिकतर फ्लोर मिलें भी इसी क्षेत्र में हैं। यहां गेहूं अपेक्षाकृत कम कीमत पर मिल जाता है। फ्लोर मिल में तैयार होने वाला आटा, मैदा, सूजी व अन्य उत्पाद स्थानीय बाजार के साथ दूसरे प्रदेशों को भी भेजा जाता है।

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    दक्षिण भारत में गेहूं मंगाने पर रेट महंगा हो जाता था, जिससे वहां के उद्यमियों के यहां तैयार उत्पाद उनके यहां ही महंगे पड़ते थे। केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए एक नियम के अनुसार एफसीआइ के गोदाम से टेंडर के माध्यम से 100 टन गेहूं प्रति सप्ताह प्राप्त होता है। इस नियम के अनुसार जो रेट गोरखपुर में है, वही कन्याकुमारी में भी है।

    फ्लोर मिल संचालक उद्यमी आकाश जालान बताते हैं, पहले दक्षिण भारत में गेहूं मंगाने पर वहां के लोगों को किराये का भार वहन करना पड़ता था, लेकिन एफसीआइ से पूरे देश में एक ही रेट पर गेहूं मिलने लगा है।

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    ऐसे में उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक गेहूं पहुंचाने का किराया सरकार वहन करती है। यही कारण है कि हमारे उत्पाद अब दक्षिण भारत में तैयार उत्पादों से प्रतियोगिता नहीं कर पा रहे हैं। उनके उत्पाद अब सस्ते होते हैं। मजबूरी में यहां के उद्यमियों को 40 से 50 प्रतिशत तक उत्पादन कम करना पड़ा है।