Exclusive: खेल-खेल में पढ़ाई कर बच्चों ने भरी निपुणता की उड़ान, शिक्षकों ने बदली पढ़ाने की शैली
गोरखपुर के 855 विद्यालय निपुण बन गए हैं। शिक्षकों ने पढ़ाने का तरीका बदलकर यह मुकाम हासिल किया। खेल और गीतों से कक्षा की शुरुआत करने पर बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी। विद्यालयों में प्रिंट रिच सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। प्राथमिक विद्यालय तारंगचक जंगल कौड़िया की शिक्षिका ने अपनी कक्षा को न केवल एक शिक्षण कक्ष नहीं बल्कि सीखने आनंद का केंद्र बना दिया है।

प्रभात कुमार पाठक, जागरण, गोरखपुर। पहली बार जब प्रियांशु, अनामिका, आरोही व पीहू विद्यालय पहुंचे तो शुरू में बेहद संकोची थे। नियमित स्कूल भी नहीं आते थे। लेकिन जब शिक्षिका संगीता ने कक्षा की शुरुआत खेल, गीत और बालगीत से करनी शुरू की, तो उन्हें आनंद आने लगा। इसके बाद प्रियांशु और अन्य बच्चों की झिझक तो खत्म हुई ही उनमें पढ़ाई के प्रति आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा।
प्राथमिक विद्यालय तारंगचक जंगल कौड़िया की शिक्षिका ने अपनी कक्षा को न केवल एक शिक्षण कक्ष नहीं, बल्कि सीखने और आनंद का केंद्र बना दिया है। जहां बच्चे खेल-खेल में सीख रहे हैं और निपुणता के लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के बाद अब आगे बढ़ रहे हैं।
निपुण हो चुके जनपद के 855 स्कूलों के शिक्षकों ने अपनी शैक्षिक शैली से यह सिद्ध कर दिखाया कि सही शिक्षण दृष्टिकोण, गतिविधियों से समृद्ध कक्षा और बाल-मन की समझ से किसी भी विद्यालय को निपुण बनाया जा सकता है। तारंगचक की तरह ही प्राथमिक विद्यालय प्रतापपुर, प्राथमिक विद्यालय डोहरिया, प्राथमिक विद्यालय बेलघाट व जंगल कौड़ियां के शिक्षक भी अपने पढ़ाने के तरीके से न सिर्फ बच्चों को बल्कि विद्यालय को भी निपुण बनाने में सफल रहे।
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शिक्षिका संगीता बतातीं हैं कि उनके इन प्रयासों का सुखद परिणाम यह रहा कि तारंगचक विद्यालय की कक्षा अब “निपुण कक्षा” घोषित हो चुकी है। बल्कि, बच्चे भाषा और गणना के उन कौशलों में दक्ष हो गए हैं, जो शासन द्वारा निर्धारित निपुण लक्ष्य का आधार हैं। उनकी यह सफलता न केवल उनके विद्यालय की, बल्कि समस्त राज्य की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली के लिए प्रेरणा है।
खेल-खेल में पढ़ाई। जागरण (सांकेतिक तस्वीर)
निपुण स्कूलों ने प्रिंट रिच सामग्री ने बदली कक्षा की सूरत
जिले के निपुण हो चुके स्कूलों ने अपने यहां कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रिंट रिच वातावरण तैयार किया। दीवारों पर रंगीन चार्ट, शब्द कार्ड, चित्र पुस्तकें, कविता पोस्टर ने न सिर्फ बच्चों की पठन-पाठन के प्रति रुचि बढ़ाई बल्कि भाषा के प्रति भी उनमें आत्मीय जुड़ाव पैदा किया। बच्चों को हर तरफ शब्द और चित्र दिखने लगे, जिससे उनका ध्यान स्वयं पठन की ओर गया।
इसके अलावा शिक्षकों ने बिग बुक का सृजनात्मक उपयोग कर सामूहिक पठन को रोचक बनाया। बड़े आकार की पुस्तक, सुंदर चित्र और स्पष्ट अक्षरों वाली कहानियां बच्चों को दृश्यात्मक और श्रव्य रूप से जोड़ती हैं। इससे उनका शब्द ज्ञान बढ़ा। बच्चों की पढ़ने की गति और क्षमता अलग-अलग होती है। इसको ध्यान में रखकर शिक्षकों ने अलग-अलग स्तर की पाठ्य सामग्री का प्रयोग किया, जिससे हर बच्चा अपनी गति से सीखने में समर्थ हुआ।
विद्यालय निपुण बनाने वाले प्रधानाध्यापक पाएंगे चैंपियन पुरस्कार
परिषदीय विद्यालयों को निपुण बनाने वाले प्रधानाध्यापकों को निपुण चैंपियन पुरस्कार भी दिया जाएगा। निर्धारित लक्ष्य हासिल करने वाले परिषदीय विद्यालयों को स्वतंत्र मूल्यांकन के बाद निपुण विद्यालय, प्रधानाध्यापक को निपुण चैंपियन हेड मास्टर आफ द डिस्ट्रिक्ट घोषित किया जाएगा। साथ उनके विद्यालय को 25 हजार रुपये व प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा।
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इस पैसे का प्रयोग शिक्षक खेलकूद सामग्री लेने व नवाचार की गतिविधियों में कर सकेंगे। इनको राज्य, जिला व विकास खंड स्तर पर सम्मानित किया जाएगा। इनको देश-प्रदेश की उत्कृष्ट संस्थाओं में प्रशिक्षण भी दिलाया जाएगा। ऐसे विद्यालयों को निपुण चैंपियन पुरस्कार दिया जाएगा, जहां 2024-25 के सापेक्ष छात्र कम न हो और कुल नामांकन 100 से कम न हो। वहीं शैक्षिक सत्र में कक्षा एक से पांच के बच्चों की औसत उपस्थिति 75 प्रतिशत से अधिक हो।
जनपद में कुल 855 स्कूल निपुण हो चुके हैं। इनमें से करीब 300 विद्यालय ऐसे हैं, जो निर्धारित मानक पूरा करते हैं। इन्हीं में से राज्य स्तर पर चयनित स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को निपुण चैंपियन पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। -रमेंद्र कुमार सिंह, बीएसए
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