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    तस्वीरों में देखें- गोरक्षनगरी के पांच ऐसे देवी मंदिर, जहां नवरात्रों पर जुटता है भक्तों का रेला- मान्यता और कहानी बेहद अद्भुत

    By JagranEdited By: Pragati Chand
    Updated: Sun, 25 Sep 2022 04:54 PM (IST)

    Sharadiya Navratri 2022 नवरात्रि की तैयारियां जोरो पर है। मंदिरों से लेकर बाजारों तक नवरात्रि की धूम है। कोरोना काल के चलते दो साल बाद दुर्गा पूजा पर इतनी धूम देखने को मिल रहा है। आइए हम आपको गोरखपुर के पांच चमत्कारिक देवी मंदिरों के बारे में बताते हैं...

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    Gorakhpur Famous Temple: गोरखपुर के पांच देवी मंदिर। -जागरण

    गोरखपुर, जेएनएन। Sharadiya Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि सोमवार 26 सितंबर से शुरू हे रहा है। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए भक्तों द्वारा विभिन्न प्रकार की पूजा के आयोजन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। देवी मंदिरों को भी चमकाया जा रहा है। ऐसे में हम आपको गोरखपुर जिले के पांच प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं। यहां नवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन होता है। इन मंदिरों में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के अवसर पर यहां दूर-दराज से लोग दर्शन के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि माता के दरबार में शीश झुकाने वाले हर भक्त की झोली भर जाती है। भक्तों को कभी निराश नहीं लौटना पड़ता है। आइए जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...

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    जमीन फाड़कर यहां निकली थी मां काली की मूर्ति

    गोरखपुर रेलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर दूर गोलघर के उत्तरी छोर पर मौजूद मां काली मंदिर काफी पुराना है। मां काली की कृपा का शोर शहर के साथ ही आसपास के जिलों में भी है। देवी स्थल के स्थापित होने को लेकर मान्यता है कि यहां मां काली का मुखड़ा जमीन को फाड़कर निकला था। यहां हर दिन उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ इस देवी स्थान के प्रति लोगों की गहरी आस्था की गवाही देता है। काली मंदिर की महिमा दूर- दूर तक फैली है।विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें

    छह सौ साल पुराना है बुढ़िया माई मंदिर का इतिहास

    गोरखपुर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुसम्ही जंगल में मौजूद बुढ़िया माई मंदिर के बारे में कहा जाता है कि लाठी का सहारा लेकर चलने वाली एक चमत्कारी श्वेत वस्त्रधारी वृद्धा के सम्मान में बनाया गया है। मान्यता है कि पहले जंगल के उस क्षेत्र में थारु जाति के लोग रहते थे। वे जंगल में ही तीन पिंड बनाकर वनदेवी की पूजा-अर्चना करते थे। थारुओं को अक्सर पिंड के आस-पास एक बूढ़ी महिला दिखाई देती थी, हालांकि वह कुछ ही पल में आंखों से ओझल हो जाती थी। विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें

    गूरम समय माता मंदिर में पीतल के घंटे चढ़ाते हैं भक्त

    गोरखपुर-सोनौली मार्ग पर गोरखपुर मुख्यालय से 25 किमी पर पीपीगंज- फरदहनि मार्ग के पंचगांवा-फरदहनि गांव के मध्य 200 मीटर उत्तर मां गूरम समय का मंदिर है। मान्यता के अनुसार द्वापर युग में यहां यह सिंघोर वन था। अज्ञातवास के समय यहां पांडव विश्राम किए थे। वे वहां पिंडी बनाकर मां गूरम समय की पूजा-अर्चना किए थे। एक दंतकथा के अनुसार लगभग 200 वर्ष पहले थारुओं ने एक ही रात में 33 एकड़ का पोखरा खोद कर टीला और 25 फीट की ऊंचाई पर भव्य मंदिर का निर्माण किया था। साथ ही मिट्टी का हाथी बना कर पूजा-पाठ शुरू किया था। मंदिर वट वृक्षों से घिरा हुआ है। इसका जीर्णोद्धार 1995-96 में श्रद्धालुओं ने कराया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व विधायक फतेहबहादुर सिंह के प्रयास से मंदिर का सुंदरीकरण कराया गया है। विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें-

    तरकुलहा देवी मंदिर में अंग्रेजों का सिर काटकर चढ़ाते थे क्रांतिकारी

    तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर देवरिया रोड पर फुटहवा इनार के पास मौजूद है। मंदिर की कहानी चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के विकास खंड सरदारनगर अंतर्गत स्थित डुमरी रियासत के बाबू शिव प्रसाद सिंह के पुत्र व 1857 के अमर शहीद बाबू बंधू सिंह से जुड़ी है। कहा जाता कि बाबू बंधू सिंह तरकुलहा के पास स्थित घने जंगलों में रहकर मां की पूजा-अर्चना करते थे तथा अंग्रेजों का सिर काटकर मां के चरणों में चढ़ाते थे। यहां चैत्र राम नवमी से एक माह का मेला लगता है। यह पुरानी परंपरा है, लेकिन अब वहां सौ से अधिक दुकानें स्थायी हैं और रोज मेले का दृश्य होता है। लोग पिकनिक मनाने भी वहां जाते हैं। मुंडन व जनेऊ व अन्य संस्कार भी स्थल पर होते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर लोग बकरे की बलि देते हैं। विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें

    बांसगांव दुर्गा मंदिर में रक्त चढ़ाकर देवी को खुश करते हैं श्रीनेतवंशी

    जिले के बांसगांव तहसील कस्बे में स्थित मां दुर्गा के मंदिर में रक्त चढ़ाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इस परंपरा के अंतर्गत श्रीनेत वंश के 12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का रक्त चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि जिन नवजातों के ललाट (लिलार) से रक्त निकाला जाता है, वे इसी मां की कृपा से प्राप्त हुए होते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां मांगी हुई हर मुराद पूरी होती है। कोई भी भक्त माता के दरबार से निराश नहीं लौटता है। नवमी के दिन रक्त चढ़ाने की परंपरा है। इस मंदिर में नवरात्रि के पूरे नौ दिन भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।