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    Famous Temples In Gorakhpur: जमीन फाड़कर यहां निकली थी मां काली की मूर्ति, सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद होती है पूरी

    By Pragati ChandEdited By:
    Updated: Sun, 19 Jun 2022 03:48 PM (IST)

    Famous Temples In Gorakhpur एक ऐसा मंदिर जिसकी महिमा दूर- दूर तक फैली है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी हुई हर मुराद पूरी होती है। यही वजह है कि यहां पूरे साल भक्तों की भीड़ बरकरार रहती है। आइए जानते हैं इसके बारे में...

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    Kali Mandi Gorakhpur: गोरखपुर का प्रसिद्ध काली मंदिर। जागरण-

    गोरखपुर, जेएनएन। Famous Temples In Gorakhpur: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक ऐसे मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जो गोरखपुर ही नहीं आसपास के जिलों में भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर काफी पुराना है। यहां श्रद्धालुओं की भीड़ पूरे साल देखने को मिलती है। जबकि नवरात्रि में यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं। भक्तों का मानना है कि यहां शीश झुकाकर मांगी गई मन्नत कभी खाली नहीं जाती है। माता रानी अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करती हैं। आइए हम इस मंदिर के बारे में खास बातें बताते हैं।

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    मंदिर की विशेषता: हम बात कर रहे हैं गोलघर की काली मंदिर का। गोरखपुर रेलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर दूर गोलघर के उत्तरी छोर पर मौजूद मां काली मंदिर काफी पुराना है। मां काली की कृपा का शोर शहर के साथ ही आसपास के जिलों में भी है। यहां हर दिन उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ इस देवी स्थान के प्रति लोगों की गहरी आस्था की गवाही देता है। काली मंदिर की महिमा दूर- दूर तक फैली है।

    मंदिर का इतिहास: इस देवी स्थल के बारे में जनश्रुति है कि आज के गोलघर का यह हिस्सा कभी पुरिदलपुर गांव था और यह देवी उस गांव की कुलदेवी थीं, जिनमें गांव के लोगों की गहरी आस्था थी। उन दिनों गांव के लोग एक नीम के पेड़ के नीचे देवी का चौरा बनाकर पूजा-अर्चना किया करते थे। मंदिर की देखभाल मंदिर से कुछ दूरी पर रहने वाला माली परिवार किया करता था। उस समय शहर का यह हिस्सा जंगली क्षेत्र सा साथ दिखता था। देवी स्थल के रूप में इस स्थल को मान्यता कब से मिली, इस संबंध में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं मिलता लेकिन इसकी प्राचीनता को लेकर किसी को कोई संदेह नहीं।

    जमीन फाड़कर निकला था मां का मुखड़ा: देवी स्थल के स्थापित होने को लेकर मान्यता है कि यहां मां काली का मुखड़ा जमीन को फाड़कर निकला था। जब यह सूचना पुरिदलपुर गांव के लोगों तक पहुंची तो श्रद्धालुओं की भारी भीड़ वहां उमड़ने लगी। मुखड़ा निकलने वाले स्थल पर पूजा-अर्चना का सिलसिला शुरू हो गया। इस तथ्य का जिक्र स्व. पीके लाहिड़ी और डॉ. केके पांडेय ने अपनी पुस्तक 'आइने-गोरखपुर' में भी किया है। मंदिर की मान्यता बढ़ती गई और उसके साथ ही श्रद्धालुओं के उमड़ने का सिलसिला भी अनवरत बढ़ता गया।

    भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं माता: भक्तों का विश्वास था कि यह मां काली, मां सिद्धिदात्री स्वरूप हैं, जो हर भक्त की सभी मुरादों को पूरी करती है। बाद में मां काली के एक भक्त जंगी लाल जायसवाल ने 1968 में देवी स्थल पर मां काली की एक भव्य प्रतिमा स्थापित कर मंदिर का निमरण कराया। यूं तो देवी के दरबार में हर दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है लेकिन नवरात्र के दौरान तो यहां मेले सा माहौल रहता है।

    आज भी मौजूद है जमीन से निकला माता का मुखड़ा: मंदिर का निर्माण होने के बाद से नियमित रूप से यहां पूजन- अर्चन होने लगा। सुबह शाम माता की आरती का भी आयोजन होता है। वहीं पहले जमीन से निकली मूर्ति ही थी। बाद में यहां काली मां की एक बड़ी मूर्ति स्थापित की गई। मूर्ति के ठीक सामने नीचे स्वयंभू काली मां का मुखड़ा आज भी वैसा ही है, जैसा जमीन से निकला था।

    कैसे पहुंचें: गोलघर काली मंदिर नाम से प्रसिद्ध इस देवी स्थल पर जाने का रास्ता बहुत ही आसान है। इस स्थान की दूरी रेलवे स्टेशन व रेलवे बस स्टेशन से महज एक किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन के बाहर किसी भी वाहन का सहारा लेकर गोलघर काली मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं।