Famous Temples In Gorakhpur: अनोखा है बुढ़िया माई मंदिर का इतिहास, यहां छह सौ साल पहले माता ने ऐसे बचाई थी भक्त की जान
Famous Temples In Gorakhpur गोरखपुर जिले के कुसम्ही जंगल में स्थित बुढ़िया माई मंदिर का इतिहास छह सौ साल पुराना है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि यहां जो भी भक्त सच्चे हृदय से शीश नवाता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते हैं मंदिर का इतिहास।

गोरखपुर, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक अनोखे मंदिर की कहानी बताने जा रहे हैं। ये मंदिर गोरखपुर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुसम्ही जंगल में मौजूद इस मंदिर को बुढ़िया माई मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पूर्वांचल के धरोहरों में शामिल है। बुढ़िया माता की महिमा ऐसी है कि देश ही नहीं यहां विदेशों से भी श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से दर्शन व पूजन करने वाले भक्त कभी भी असमय काल के गाल में नहीं जाते हैं। बुढ़िया माई अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करती हैं।
600 साल पुराना है मंदिर का इतिहास: बुढ़िया माई मंदिर के बारे में कहा जाता है कि लाठी का सहारा लेकर चलने वाली एक चमत्कारी श्वेत वस्त्रधारी वृद्धा के सम्मान में बनाया गया है। मान्यता है कि पहले जंगल के उस क्षेत्र में थारु जाति के लोग रहते थे। वे जंगल में ही तीन पिंड बनाकर वनदेवी की पूजा-अर्चना करते थे। थारुओं को अक्सर पिंड के आस-पास एक बूढ़ी महिला दिखाई देती थी, हालांकि वह कुछ ही पल में आंखों से ओझल हो जाती थी।
ये हैं मंदिर के किस्से
पहला किस्सा: बुढ़िया माई से जुड़े दो किस्से क्षत्र में मशहूर हैं। पहला किस्सा छह सौ साल पुराना है। इसके मुताबिक जंगल के बीच से गुजरने वाले तुर्रा नाले पर बने काठ के पुल से एक बारात जा रही थी, जिसपर नर्तकी सवार थी। पुल पार करने से पहले बुढ़िया माई ने नर्तकी से नृत्य करने को कहा। जिसपर बरातियों ने देर होने की बात कहते हुई उनका उपहास उड़ाकर वहां से आगे बढ़ गए। वहीं बरात में शामिल एक जोकर ने नृत्य कर उन्हें दिखा दिया। इसलिए बुढ़िया माई ने उसे आगाह कर दिया कि पुल पर बरातियों के साथ मत चढ़ना। उसके बाद जैसे ही बरातियों से भरी वाहन पुल पर चढ़ी, वह टूट गया। दूल्हा सहित सभी लोग नाले में गिरकर मर गए। वहीं जिस जोकर ने नृत्य करके दिखाया था उसकी जान बच गई। इसके बाद बूढ़ी महिला अदृश्य हो गईं। काल की गाल में जाने से बचे जोकर ने यह बात गांव वालों को बताया। तभी से नाले के दोनों तरफ का स्थान बुढ़िया माई के नाम से जाना जाता है। बुढ़िया माई का मंदिर नाले के दोनों तरफ बना है। इन दोनों मंदिरों के बीच के नाले को नाव से पार किया जाता है।
दूसरा किस्सा: दूसरा किस्सा मनोकामना पूर्ण करने से जुड़ा है। विजहरा गांव के निवासी जोखू सोखा की मौत के बाद परिजनों ने उन्हें तुर्रा नाले में प्रवाहित कर दिया। शव थारुओं की तीन पिंडी तक पहुंचा। बुढ़िया माई अवतरित हुईं और उन्होंने जोखू को जिंदा कर दिया। जोखू ने उसके बाद वहीं पूजा शुरू कर दी और माई को जिस रूप में देखा था, उसी रूप में मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवा दिया।
नवरात्रि में लगती है भक्तों की भारी भीड़: जंगल के बीच होने के बावजूद बुढ़िया माई मंदिर में नवरात्र के दौरान मेले जैसा माहौल रहता है। यहां भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं और पुजन- अर्चन कर मन्नत मांगते हैं। इस धरोहर के संरक्षण को लेकर शासन भी गंभीर है। पर्यटन विभाग को इसके संरक्षण और सुंदरीकरण की जिम्मेदारी दी गई है।
ऐसे पहुंचें- बुढ़िया माई मंदिर गोरखपुर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर कुसम्ही जंगल में स्थित है। यहां जाने के लिए शहर के मोहद्दीपुर चौराहे से ऑटो या जीप जैसे वाहन का सहारा ले सकते हैं। वाहन आपको एयरपोर्ट होते हुए कुसम्ही जंगल पहुंचाएगी है। यहीं पर बुढ़िया माता का मंदिर है।
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