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    UP News: गोरखपुर चिड़ियाघर का नवाब था पटौदी, दहाड़ से भय में आ जाते थे वन्यजीव

    गोरखपुर चिड़ियाघर का पसंदीदा बब्बर शेर पटौदी जो 2021 में लाया गया था कानपुर में मर गया। बीमारी के चलते उसे वहां भेजा गया था। माना जा रहा है कि उसकी मौत बर्ड फ्लू से हुई है जिसके लक्षण उसमें पाए गए थे। इसके साथ लाई गई मरियम की 16 वर्ष की उम्र में वर्ष 2024 में मृत्यु हो गई थी।

    By Jitendra Pandey Edited By: Vivek Shukla Updated: Fri, 16 May 2025 08:31 AM (IST)
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    चिड़ियाघर का नवाब था पटौदी। जागरण (फाइल फोटो)

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। चिड़ियाघर के शुभारंभ अवसर पर एक मार्च, 2021 को बब्बर शेर पटौदी को गोरखपुर लाया गया था। उस समय वह चिड़ियाघर का नवाब था, उसकी दहाड़ सुनकर बाड़े में रह रहे वन्यजीव भयग्रस्त हो जाते थे। वहीं, दर्शकों के लिए उसकी दहाड़ आकर्षण का केंद्र थी।

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    लोग उसका वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित करते थे। पटौदी ने तीन वर्ष सात महीना बाड़े में रहकर दर्शकों का मनोरंजन किया। छह महीने से उसकी तबीयत खराब होने पर चिड़ियाघर प्रशासन ने उसे बाड़े से हटाकर पशु अस्पताल के पास क्राल में रख दिया था। इसके साथ लाई गई मरियम की 16 वर्ष की उम्र में वर्ष 2024 में मृत्यु हो गई थी।

    चिड़ियाघर में लगातार हो रही मौतों के बीच जब बाघिन शक्ति की बर्ड फ्लू से मृत्यु की पुष्टि हुई तो पटौदी को 11 मई को गोरखपुर चिड़ियाघर से कानपुर भेज दिया गया। उसके लिवर और शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण हो गया था। चिकित्सकों की टीम उसका उपचार कर रही थी।

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    गोरखपुर चिड़ियाघर। जागरण


    इसी बीच गुरुवार को कानपुर में उसकी मौत हो गई। आशंका जताई जा रही है कि पटौदी की मौत भी बर्ड फ्लू से हुई है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) बरेली से आई चिकित्सकों के टीम की जांच में उसके अंदर भी वैसे ही लक्षण थे, जैसे भेड़िया भैरवी और बाघिन शक्ति में मिले थे।

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    चिड़ियाघर के उपनिदेशक डा. योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि पटौदी को जंगल से रेस्क्यू कर सबसे पहले वर्ष 2012-13 में गुजरात के शक्करबाग लाया गया था। कुछ वर्षों बाद इसे इटावा सफारी पार्क भेज दिया गया। इसके बाद वह गोरखपुर चिड़ियाघर आया था। बीमार होने और जांच में लिवर समेत शरीर में संक्रमण मिलने पर वन मंत्री के निर्देश पर उपचार के लिए कानपुर चिड़ियाघर भेजा गया था।

    डा. योगेश ने बताया कि वह पहला ऐसा बब्बर शेर था, जिसे वन विभाग की टीम रेस्क्यू नहीं करना चाहती थी। इसकी मां को टीम रेस्क्यू कर रही थी। इस दौरान वह डेढ़ से दो वर्ष का था और अपनी मां के साथ ही घूम रहा था, जिससे इसे भी रेस्कयू करना पड़ा। करीब 15 वर्ष के जीवनकाल में इसने चार चिड़ियाघरों का भ्रमण किया और वहां की शोभा बढ़ाई।