सिस्टम पर सवाल: आदेश के बाद भी नहीं हुआ स्थानांतरण, कारखाना में ही जमी रही 'डीलर'
गोरखपुर के यांत्रिक कारखाने में पेंशन घोटाले की जांच में लीपापोती के आरोप हैं। कर्मचारियों के फंड को निजी कंपनियों में निवेश किया गया जिसकी CBI जांच की मांग की जा रही है। दोषी अधिकारियों पर आरोप तय नहीं हुए और स्थानांतरित कर्मचारी बहाल हो गए। नरमू यूनियन ने महाप्रबंधक से मिलकर दोबारा जांच की मांग की है क्योंकि विजिलेंस जांच से कोई नतीजा नहीं निकला।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। यांत्रिक कारखाना के पेंशन अंशदान घोटाले में जांच और कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूरी हुई है। अभी तक घोटाले में संलिप्तता को लेकर आरोप तय नहीं हो पाए। जिन अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाइयां हुईं, उन्हें भी बहाल कर दिया गया।
मामला प्रकाश में आने के बाद पेंशन विभाग की 'डीलर' को रेलवे प्रशासन ने स्थानांतरित कर दिया था, लेकिन वह आज भी यांत्रिक कारखाना में ही जमी हुई है। लेखा विभाग के अधिकारी को मुख्यालय भेजा गया, लेकिन वह भी कारखाने में फिर से लौट आए।
#जिस कर्मचारी की संलिप्तता सामने आई थी, उसका पहले ही इज्जतनगर स्थानांतरण कर दिया गया था। कार्रवाई के नाम पर उसे बर्खास्त किया गया। कुछ माह बाद अनुशासनिक अधिकारी ने बर्खास्तगी के खिलाफ उसकी अपील को स्वीकार कर एक पद डाउनग्रेड करके उसकी नौकरी बहाल कर दी।
पेंशन अंशदान घोटाले के पीड़ित कर्मचारी मामले की जांच, पेंशन अंशदान का भुगतान कराने तथा दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहे, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई है। 1901 कर्मचारियों की आवाज को उठाते हुए एनई रेलवे मजदूर यूनियन (नरमू) ने पेंशन अंशदान घोटाले के खिलाफ मोर्चा खोला है। यूनियन के महामंत्री केएल गुप्ता ने नवागत महाप्रबंधक उदय बोरवणकर को ज्ञापन सौंप फिर से पेंशन अंशदान घोटाले की जांच सीबीआइ और साइबर अपराध शाखा लखनऊ से कराने की मांग की है।
यूनियन का कहना है कि यांत्रिक कारखाना के 1890 व मुख्यालय के 11 समेत 1901 रेलकर्मियों के एनपीएस के जमा धनराशि को बिना कर्मचारियों की सहमति के सरकारी बैंकों से हटाकर शेयर मार्केट में घाटे में चल रही प्राइवेट कंपनियों में लगाकर कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया है। जो साइबर अपराध की श्रेणी में आता है। कारखाने के संबंधित अधिकारी और कर्मचारी आपसी मिलीभगत से गिरोह बनाकर कर्मचारियों का पेंशन अंशदान प्राइवेट कंपनियों में लगा चुके थे।
मामला प्रकाश में आया तो कर्मचारियों के होश उड़ गए। रेलवे प्रशासन ने मामले की जांच पूर्वोत्तर रेलवे की विजिलेंस टीम को दी, लेकिन विजिलेंस ने अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ मिलकर प्रकरण को फाइलों में बंद करा दिया।
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आज तक स्पष्ट नहीं हो सका कि पेंशन अंशदान किस अधिकारी और कर्मचारी ने बिना सहमति के सरकारी से प्राइवेट बैंक में स्थानांतरित कर दिया था। यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया कि अंशदान में हुए करोड़ों रुपये के नुकसान की भरपाई कौन करेगा। रेलवे प्रशासन नुकसान की भरपाई पर भी मौन साधे हुए है।
वर्ष 2022-23 में यांत्रिक कारखाना स्थित कार्मिक व लेखा विभाग में सक्रिय रैकेट ने कर्मचारियों का पेंशन अंशदान बिना उनकी अनुमति के सरकार के अधीन बैंकों एसबीआइ, यूटीआइ और एलआइसी की जगह प्राइवेंट बैंकों में बदल दिया। दैनिक जागरण ने मामले को उजागर किया तो रेलवे प्रशासन ने विजिलेंस जांच आरंभ की थी।
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