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    गोरखपुर जागरण फिल्म फेस्टिवल में छाए अभिनेता परितोष त्रिपाठी, बोले- दर्शकों की हंसी के लिए मुझे तकलीफ भी बर्दाश्त

    Updated: Sat, 15 Feb 2025 09:04 PM (IST)

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में अभिनेता परितोष त्रिपाठी ने दर्शकों से अपने फिल्मी सफर के संघर्षों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने संघर्ष को ही कामेडी के रूप में दर्शकों के सामने पेश किया। परितोष ने कहा कि एक कॉमेडियन को दर्शकों की हंसी के लिए किसी भी तरह की तकलीफ बर्दाश्त करनी पड़ती है। उन्होंने अपने करियर के विकास में जागरण के योगदान का भी जिक्र किया।

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    हास्य अभिनेता परितोष त्रिपाठी ने जागरण फिल्म फेस्टिवल में अपना अनुभव साझा किया। जागरण

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। हास्य अभिनेता के रूप में फिल्म और टेलीविजन जगत में खुद को स्थापित कर चुके परितोष त्रिपाठी का कहना है कि किसी भी हास्य अभिनेता को वह तकलीफ बर्दाश्त है, जिससे दर्शकोंं के चेहरे पर हंसी लाई जा सके। कॉमेडी से जीवन के रिश्ते के सवाल उन्होंने टूटते तारे का उदाहरण दिया।

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    कहा कि जिस तरह टूटने का दर्द तारे को होता लेकिन वह लोगों की मुराद पूरी करता है। उसी तरह कामेडियन भी अपनी दर्द सह कर अपनी हास्य प्रस्तुति से लोगों का मनोरंजन करता है। परितोष दैनिक जागरण की ओर से एडी सिनेमा के आडी-2 में आयोजित जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को एक सत्र में अपने फिल्मी जीवन के संघर्षपूर्ण सफर को दर्शकों से साझा कर रहे थे।

    उन्होंने बताया कि अपने संघर्ष को ही उन्होंने कॉमेडी के रूप में दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया। संघर्ष काल को दर्शकों के साथ जीया। यह सिलसिला अनवरत जारी है। सत्र का संचालन कर रहे फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ ने जब गृह जनपद देवरिया से मुंबई तक के सफर पर परितोष की फिल्मी सफर की चर्चा की तो परितोष ने बताया कि वह उन भाग्यशाली कलाकारों में से हैं, जिन्हें अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने के दौरान पिता से डांट-फटकार की जगह सराहना मिली।

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में प्रदीप सुविज्ञ के सवालों का जवाब देते फिल्म अभिनेता पारितोष त्रिपाठी। जागरण


    इस क्रम में वह अपने करियर के विकास में जागरण के योगदान का जिक्र करना नहीं भूले। बताया कि गोरखपुर की नाट्य संस्था रंगाश्रम से उनके अभिनय करियर की शुरुआत हुई। उस दौर में जागरण में नाम छपना उनके लिए ऊर्जा का कार्य करता था। नए कलाकारों को संघर्ष से हार न मानने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि संघर्ष जिस दिन समाप्त हो गया, उसी दिन एक कलाकार का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।

    इसे भी पढ़ें- जागरण फिल्म फेस्टिवल: गोरखपुर में शुरू हुआ सिनेमाई जश्न, समाज को सशक्त संदेश देने वाली फिल्मों का हुआ प्रदर्शन

    भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता परोसने के सवाल पर परितोष ने मलेयालम फिल्मों का जिक्र किया। कहा कि जिस तरह मलेयालम फिल्में अपना स्वरूप बदल कर प्रभावी हुई हैं, उसी तरह बहुत जल्द भोजपुरी फिल्म जगत में भी परिवर्तन देखने को मिलेगा। इसके लिए उन्होंने मंच से सांसद रवि किशन के प्रयास को सराहा।

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में जुगानी भाई को श्रद्धांजलि देते दर्शक। जागरण


    फिल्मों मं ऐसा क्या है, जो होना चाहिए पर अभी नहीं है? इस सवाल के जवाब में परितोष ने कहा कि यदि नया बेहतर नहीं हो रहा तो पुराने दौर में लौटने की जरूरत है। इस क्रम में उन्होंने फारुख शेख व अमोल पालेकर की फिल्मों की चर्चा की। पारिवारिक फिल्मों के प्रचार-प्रसार की चर्चा में परितोष ने कहा कि जिस दिन फिल्मों के पोस्टर पर पारिवारिक फिल्म लिखने की जरूरत समाप्त हो गई, उस दिन समझ लीजिए कि फिल्में अब पारिवारिक बनने लगी हैं।

    मामा का रोल मिलने पर कैसा लगा? इस सवाल पर परितोष ने अपने करियर के अनुभव को सुहागरात के अनुभव से जोड़ा। जब बताया कि उस समय उमंग और विचलन का संयुक्त अहसास हो रहा था तो हाल में दर्शकों के ठहाके गूंज उठे।

    एक तरफ उन्होंने जुमले भरे अंदाजा से सवालों का जवाब देते हुए दर्शकों को निरंतर हंसने के लिए मजबूत किया तो दूसरी ओर पिता पर कविता सुनाकर न केवल लोगों को कुछ पल के भावुक कर दिया बल्कि खुद भी भावुक हो गए। उन्होंने फिल्म जीवन के अनुभव को लेकर दर्शकों की जिज्ञासा भी शांत की। उनके हर सवाल का सटीक जवाब देकर दिल जीत लिया। 

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में उपस्थित दर्शक। जागरण


    दिन भर चला फिल्मों का सिलसिला, लोगों उठाया लुत्फ

    जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन एडी सिनेमा के आडी-2 में आधा दर्जन से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। सभी फिल्मों को देखने के लिए दर्शकों की भीड़ उमड़ी रही। सीटें तो भर ही गईं, लोगों ने हाल की सीढ़ियों पर बैठकर भी फिल्मेंं देखीं। प्रेम प्रसंग पर आधारित वियतनामी फिल्म द फ्रिंगल फ्लावर से फिल्मों के प्रदर्शन की शुरुआत हुई तो देश के पहले और एकमात्र फिल्ड मार्शल मानेक शा के ऊपर बनी फिल्म ''सैम बहादुर'' से यह सिलसिला आगे बढ़ा।

    दोनों ही फिल्में दर्शकोंं द्वारा खूब सराही गईं। गुजराती फिल्म ''ईश्वर क्या छे'' और हिंदी फिल्म ''मंगता जोगी'' भी लोगों को खूब भायी। डाक्यूमेंटी ''ठाकर लोक कल्याण'' और ''वाराणसी द सिटी आफ निर्वाण'' भी दर्शकों में खूब पसंद की गई। कनाडा की लघु फिल्म ''चन्ना'' के प्रदर्शन के साथ फेस्टिवल के दूसरे दिन फिल्मों के प्रदर्शन का सिलसिला थमा।

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में उपस्थित दर्शक। जागरण


    रविवार को फिल्म फेस्टिवल में

    • सुबह 10:15 बजे : पोलिस फिल्म द कांस्टेंट फैक्टर
    • दाेपहर 12:15 बजे : रंगकर्मी श्रीनारायण पांडेय और डा. आमोद कुमार राय की बातचीत
    • दोपहर 01:15 बजे : अमित साध से बातचीत
    • दोपहर 02:15 बजे : हिंदी फिल्म ''अवनि की किस्मत''
    • शाम 04:15 बजे : हिंदी फीचर फिल्म ''जाइए आप कहां जाएंगे''
    • शाम 06:20 बजे : हिंदी फीचर फिल्म ''गोदान''
    • शाम 08:15 बजे : हिंदी फीचर फिल्म ''द इन्वेस्टिगेटर

    पर्दे पर जीवंत होता प्रेमचंद का ''गोदान''

    फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन रविवार को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ''गोदान'' के जरिये प्रेमचंद के उपन्यास ''गोदान'' के पात्र पर्दे पर जीवंत होते दिखेंगे। होरी की गाय पालने की इच्छा भाई की साजिश की वजह से अधूरी रह जाएगी। होरी की पत्नी धनिया की गोदान की इच्छा पूरी नहीं हो पाएगी। यह फिल्म शोषण, अस्पृश्यता, गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित है।

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में गुजराती फिल्म ईश्वर क्याचे का दृश्य। जागरण


    सस्पेंस पैदा करेगी फिल्म ''द इन्वेस्टिगेटर''

    कामिल शेख की सस्पेंस पर आधारित फिल्म ''द इन्वेस्टिगेटर'' दर्शकों को रोमांचित करेगी। फिल्म में दिखाया गया है कि एक छोटे से शहर में एक इन्वेस्टिगेटर को संदेह है कि एक महिला ने रेफ्रिजरेटर में आत्महत्या कर ली है, जो बोलने और सुनने में भी अक्षम है। पूरी फिल्म जांच की प्रक्रिया और उसमें आने वाली मुश्किलों पर आधारित है।

    ''जाइए आप कहां जाएंगे'' में दिखेगा परिवारिक संघर्ष

    निखिल राज की फिल्म ''जाइए आप कहां जाएंगे'' में दर्शकों को पारिवारिक संघर्ष देखने को मिलेगा। फिल्म में महिलाओं की चुनौतियां दिखाई गई हैं तो एक रिक्शा चालक की खुशी और उद्देश्य की तलाश को भी उकेरा गया है। कुल मिलाकर यह फिल्म दर्शकों को चुनौतियां का सामना करने की सीख देने वाली है।

    फिल्म ढाई आखर का दृश्य। जागरण


    वन्यजीवों का महत्व बताएगी फिल्म ''अवनि की किस्मत''

    ''अवनि की किस्मत'' फिल्म वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित एक भारतीय फिल्म है। यह अवनि नाम की एक ऐसी बाघिन की कहानी है, जिसे बिना किसी सबूत के नरभक्षी करार दिया जाता है। भयभीत ग्रामीणों द्वारा उसे फांसी पर चढ़ाने की मांग की जाती है। बाघ संरक्षक मिहिर अवनि को नरभक्षी बनाने से इनकार करते हैं और लोगों को वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व के बारे में शिक्षित करने का काम करते हैं।

    -अजीरा रुंगटा। जागरण


    जागरण फिल्म फेस्टिवल का आयोजन दैनिक जागरण का अद्भुत प्रयास है। इस फेस्टिवल के जरिये जागरण न केवल फिल्म दिखाता है बल्कि बेहतरी के लिए समाज को गहरा संदेश देने का प्रयास करता है। -अजीरा रुंगटा

    श्वेता राय। जागरण


    श्वेता राय ने बताया कि जागरण फिल्म फेस्टिवल में वह फिल्मेंं देखने को मिलती हैं, जिन्हें देखने की इच्छा लोगों की अधूरी रह जाती है। इसके लिए मैं जागरण की भूरि-भूरि प्रशंसा करना चाहती हूं। उसके प्रति आभार व्यक्त करती हूं।

    आशीष। जागरण


    जागरण फिल्म फेस्टिवल में कलाकारों के साथ संवाद का आयोजन इसे विशिष्ट बनाता है। संवाद में दर्शकों को फिल्म जगत से जुड़े ऐसे सवालों का जवाब मिल जाता है, जिन्हें जानने की इच्छा मन में दबी होती है। -आशीष

    नरेंद्र। जागरण


    नरेंद्र ने बताया कि जागरण को वर्ष में दो बार फिल्म फेस्टिवल का आयोजन करना चाहिए, जिससे दर्शकों को ज्यादा से ज्यादा बेहतरीन फिल्मों को देखने का अवसर मिल सके। सभी फिल्में समाज की बेहतरी के प्रेरित करने वाली होती हैं।

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    प्रवीण श्रीवास्तव। जागरण


    मेरी कोशिश जागरण फिल्म फेस्टिवल की सभी फिल्मों को देखने की होती है। सभी फिल्में विशिष्ट और उद्देश्यपूर्ण होती हैं। यही जागरण की खासियत है। यह अखबार सामाजिक सराेकारों के प्रति हमेशा सचेत रहता है।-प्रवीण श्रीवास्तव

    हिमांशु। जागरण


    हिमांशु ने बताया कि जागरण फिल्म फेस्टिवल के लिए फिल्मों का चयन तारीफ के काबिल है। सभी फिल्में किसी न किसी उद्देश्य से दिखाई जाती हैं। समाज को अलग-अलग क्षेत्र में गहरा संदेश देना इन फिल्मों का लक्ष्य होता है।

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