UP में डेंगू कर रहा बच्चों के मस्तिष्क पर प्रहार, बना रहा मानसिक दिव्यांग
गोरखपुर में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि डेंगू बच्चों में दिमागी विकलांगता का कारण बन सकता है। क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र के शोध में डेंगू से इंसेफ्लाइटिस के शिकार हुए बच्चों में मानसिक और शारीरिक समस्याएं देखी गईं। अध्ययन में पाया गया कि कुछ बच्चों में विकलांगता और याददाश्त की कमी जैसी दिक्कतें हुईं जिससे उनके दैनिक जीवन पर असर पड़ा।

गजाधर द्विवेदी, जागरण गोरखपुर। एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से होने वाला डेंगू बच्चों के मस्तिष्क को प्रभावित कर दिव्यांग बना सकता है। यह पता चला है क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (आरएमआरसी) के एक अध्ययन में। अध्ययन 18 वर्ष से कम उम्र के 56 बच्चों व किशोरों पर किया गया।
डेंगू से संक्रमित होकर इंसेफ्लाइटिस के शिकार बने इन बच्चों के प्रारंभिक उपचार में लापरवाही बरती गई, जिससे वायरल लोड बढ़ने से वायरस मस्तिष्क में पहुंच गया। इससे बुखार के साथ उन्हें झटके आने लगे। 2018-19 में बीआरडी मेडिकल कालेज में भर्ती ये बच्चे ठीक होकर घर चले गए थे।
उसके पांच साल बाद इन बच्चों के स्वास्थ्य का आकलन किया गया। 22 में न्यूरोलाजिकल समस्याएं (मानसिक दिव्यांगता) मिली। इसमें से एक की मौत हो चुकी है। चार बच्चों में एक हाथ या पैर काम नहीं कर रहा है।
छह बच्चे पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो गए हैं। इस अध्ययन को यूके के जर्नल 'ओपेन फोरम इन्फेक्शियस डिजीजेज' ने इसी माह प्रकाशित किया है।
जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) के शिकार बच्चों में दिव्यांगता की बात तो पूर्व के अध्ययन में सामने आ चुकी है। नए अध्ययन में आरएमआरसी ने यह जानने की कोशिश की कि क्या डेंगू की वजह से इंसेफ्लाइटिस के शिकार बच्चों में भी न्यूरोलाजिकल समस्याएं आ रही हैं?
अध्ययनकर्ता दल की अगुवाई कर रहीं डा. नेहा श्रीवास्तव ने 2018-19 में डेंगू की वजह से इंसेफ्लाइटिस के शिकार 56 बच्चों को अध्ययन का हिस्सा बनाया। ये सभी अस्पताल से घर जा चुके थे। वर्ष 2023-24 में शुरू हुए अध्ययन के दौरान टीम ने इनके घर जाकर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का आकलन किया।
34 बच्चे पूरी तरह स्वस्थ मिले। मानसिक दिव्यांगता के चलते एक बच्चे की मृत्यु हो गई थी। 11 बच्चों में हल्की न्यूरोलाजिकल समस्याएं थीं, जिससे उनके व्यवहार में परिवर्तन आया था। चार बच्चों का एक हाथ या पैर काम नहीं कर रहा था। उन्हें बोलने व सुनने में भी समस्या थी।
छह बच्चे पूरी तरह दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर थे। उक्त सभी 21 बच्चों में चीजों को याद रखने की क्षमता कम मिली। गोरखपुर-बस्ती मंडल व इससे सटे बिहार व नेपाल के जिलों में लंबे समय से जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस (जेई) भय का पर्याय रहा है। पिछले सात-आठ वर्षों से इसका प्रकोप लगभग खत्म हो गया है।
जेई व एईएस में अंतर
शुरुआती दौर में इंसेफ्लाइटिस का कारण जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) वायरस पाया गया था। इसका लगभग उन्मूलन हो चुका है। इस वायरस का टीका उपलब्ध है जो नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में भी शामिल है। इसलिए इस वायरस से प्रभावित बच्चों का डाटा अलग बनता है।
बाद में हुए अध्ययनों से सामने आया कि डेंगू, चिकनगुनिया, स्क्रब टायफस, मलेरिया व लैप्टोस्पायरा की वजह से भी इंसेफ्लाइटिस होता है। इसलिए इन सभी को मिलाकर एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहा गया, जिसमें जेई भी शामिल है। जेई के अलावा शेष अन्य वायरस-बैक्टीरिया से प्रभावित बच्चों का डाटा एईएस के नाम से बनता है।
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टीम में शामिल रहे ये लोग
डा. नेहा श्रीवास्तव, डा. राकेश मंकाल, रोहित बेनीवाल, अमन अग्रवाल, डा. उमेर आलम, डा. अशोक पांडेय, डा. रजनीकांत, डा. महिमा मित्तल।
अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि डेंगू केवल संक्रमण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लंबे समय तक मानसिक, शारीरिक और व्यावहारिक दिक्कतें छोड़ सकता है। इसलिए समय पर पहचान, गहन देखभाल और पुनर्वास की व्यवस्था बेहद जरूरी है।
-डा. नेहा श्रीवास्तव, अध्ययनकर्ता
डेंगू से जुड़े इंसेफ्लाइटिस प्रभावित बच्चों के न्यूरोलाजिकल स्वास्थ्य पर डेंगू के असर का आकलन किया गया। परिणाम बताते हैं कि कई बच्चे स्वस्थ हो गए, लेकिन कुछ में लंबे समय तक मानसिक और शारीरिक कठिनाइयां बनी रहती हैं।
-डा. अशोक पांडेय, मीडिया प्रभारी आरएमआरसी
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