हार्ट अटैक आए तो CPR देकर तीन मिनट में बचा सकते हैं जान, इस तरह कर सकते हैं बीमारी की पहचान
सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से किसी अचेत व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। इस लेख में हम आपको सीपीआर के महत्व इसे कब और कैसे देना चाहिए इसकी जानकारी देंगे। साथ ही हम आपको बताएंगे कि सीपीआर देने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इच्छुक लोगों को अभ्यास कराया और उनके सवालों का जवाब भी दिया।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। दैनिक जागरण के अभियान 'हृदय की बात' के अंतर्गत शुक्रवार को एमएमयूटी के बहुद्देशीय हाल में मेगा कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। विशेषज्ञों ने लगभग एक हजार लोगों के सामने सिम्युलेटर (पुतले) पर सीपीआर देने का प्रदर्शन किया। इच्छुक लोगों को अभ्यास कराया और उनके सवालों का जवाब भी दिया।
बीआरडी मेडिकल कालेज के एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर डा. सतीश व रेजीडेंट डा. माता प्रसाद मौर्या व डा. रेहाना ने सीपीआर से संबंधित हर छोटी-बड़ी जानकारी साझा की। डा. सतीश ने कहा कि अचेत होने के तीन मिनट के अंदर ही सीपीआर शुरू कर देना चाहिए, तभी जान बच सकेगी। क्योंकि, तीन मिनट से ही ब्रेन डेड होने लगता है और 10 मिनट में पूरी तरह डेड हो जाता है। यदि ब्रेन डेड हाे गया तो जान नहीं बचाई जा सकती।
कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि एमएमयूटी के कुलपति प्रो. जेपी सैनी, गुरुद्वारा जटाशंकर के अध्यक्ष जसपाल सिंह व डा. सतीश कुमार द्वारा दीप प्रज्वलन से हुई। इसके बाद अतिथियों ने मां सरस्वती, दैनिक जागरण के संस्थापक स्व. पूर्ण चंद्र गुप्त, पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन, पूर्व चेयरमैन स्व. योगेंद्र मोहन गुप्त के चित्र पर पुष्प अर्पित किया।
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डा. सतीश ने सीपीआर का महत्व बताते हुए कहा कि सीपीआर से किसी भी अचेत व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। स्वीडन में सबसे ज्यादा 22 से 25 प्रतिशत तक जान बचाई जाती है। वहां इंटरमीडिएट में बच्चों को नामांकन कराने से पहले सीपीआर का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य है। इसलिए वहां प्रशिक्षित लोग सबसे ज्यादा है। भारत में अभी सीपीआर के प्रति जागरूकता कम है।
सरकार चिकित्सा शिक्षा संस्थानों के माध्यम से लोगों को इसके बारे में प्रशिक्षण दे रही है। दैनिक जागरण के अभियान 'हृदय की बात' के अंतर्गत बड़ी संख्या में लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। हर परिवार में दो-चार लोग इसके बारे में प्रशिक्षित हों तो सैकड़ों लोगों की जान बचाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि सीपीआर शुरू करने के पूर्व सबसे पहले अचेत व्यक्ति की पल्स देख लें, वह न मिले तो तत्काल सीपीआर दें। पल्स मिलने पर सीपीआर नहीं देना चाहिए।
एमएमयूटी में आयोजित सीपीआर कार्यशाला में भाग लेती स्काउट गाइड के सदस्यों को जानकारी देती डा. रेहाना । जागरण
ऐसे दें सीपीआर
दोनों स्तन के बीच सीधी रेखा के ठीक नीचे सीपीआर देना चाहिए। दोनों हथेलियों से छाती को पांच-छह सेंटीमीटर तक दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें। सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है। 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम सांस दी जाती है। कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से उसके मुंह में सांस दी जाती है।
पहले सीपीआर दें, फिर हास्पिटल ले जाएं
विशेषज्ञों ने कहा कि आपके सामने यदि कोई व्यक्ति अचेत हो गया तो उसे तत्काल हास्पिटल ले जाने की जल्दी न करें। यदि पल्स व सांस नहीं चल रही है तो पहले सीपीआर देकर उसकी पल्स व सांस वापस लाएं, फिर हास्पिटल ले जाएं। क्योंकि 10 मिनट में ब्रेन डेड हो जाता है। ब्रेन डेड हो गया तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता।
अपनी सुरक्षा सबसे पहले देखें
सीपीआर देने के पूर्व सबसे पहले अपनी व रोगी की सुरक्षा देखनी चाहिए। यदि कोई आपको सीपीआर देने से रोक रहा है तो जबरदस्ती न करें। यह भी देख लें कि वहां ऐसे लोग तो नहीं हैं जो आप पर आरोप लगाने लगे। रोगी को सुरक्षित स्थान पर जमीन पर लिटाएं। सीपीआर देने के साथ ही 112 नंबर पर मेडिकल सहायता मांगें। एंबुलेंस आने तक अथवा जब तक आप थक न जाएं या रोगी की पल्स व सांस वापस न आ जाए, तब तक सीपीआर देते रहें। माना जाता है कि आधा घंटे के अंदर यदि पल्स व सांस वापस नहीं आई तो संभावना क्षीण हो जाती है।
दैनिक जागरण के तत्वावधान में एमएमयूटी सभागार में आयोजित सीपीआर कार्यशाला में उपस्थित शिक्षक,छात्र व विभिन्न संगठन के सदस्य। जागरण
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ये भी जानें
- बड़े बच्चे को सीपीआर देते समय एक ही हथेली से छाती दबानी चाहिए।
- छोटे बच्चों को केवल दोनों अंगूठाें से सीपीआर देना चाहिए।
- एक साल से कम उम्र के बच्चों को केवल दो उंगलियों से सीपीआर देना चाहिए।
- गर्भवती को सीपीआर देने के पूर्व उसकी दायीं कमर के नीचे तकिया लगा देना चाहिए।
- छोटे बच्चों के गले में कुछ अटक गया है तो उनकी पीठ पर पांच बार थपकी देनी चाहिए।
दैनिक जागरण के अभियान के अंतर्गत मैंने सीपीआर का महत्व जाना। यह भी जाना कि अचेत होने के बाद तत्काल हास्पिटल ले जाने बजाय सीपीआर देना जरूरी है। -देवा केशवानी, महामंत्री सिंधी समाज
दिल का दौरा पड़ने पर सांस व धड़कन वापस लाने की विधि सीपीआर के बारे में जानकारी मिली है। अपने आसपास के लोगों को इसके बारे में बताऊंगा। -नरेश कर्मचंदानी, उपाध्यक्ष युवा सिंधी समाज
एमएमयूटी के बहुउद्देशीय सभागार में दैनिक जागरण के तत्वावधान में आयोजित सीपीआर प्रशिक्षण में जानकारी देते डा.सतीश कुमार,डा.माता प्रसाद मौर्य व डा.रेहाना । जागरण
सांस व पल्स खो चुके व्यक्ति की जान बचाने के लिए सीपीआर सबसे अच्छी विधि है। विशेषज्ञ डाक्टर के सामने ही मैंने प्रशिक्षण लिया है। अन्य को भी बताऊंगा। -विक्की कुकरेजा
सीपीआर के बारे में सुना था लेकिन आज पहली बार इसे देखा और प्रशिक्षण लेकर इसके बारे में विस्तार से जाना। यह प्रशिक्षण जरूरतमंदों के काम आएगा। -जसपाल सिंह, अध्यक्ष गुरुद्वारा जटाशंकर
मैंने तो प्रशिक्षण ले लिया लेकिन जब तक घर के और एक-दो सदस्यों को इसका प्रशिक्षण न मिले, तब तक मेरा प्रशिक्षण अधूरा रहेगा। मैं उन्हें प्रशिक्षित करूंगा। -राजेंद्र सिंह
सीपीआर जरूरतमंदों की जान बचाने की नायाब तकनीक है। केवल सीने के निचले भाग में दबाने और मुंह से सांस देने से किसी की जान बचाई जा सकती है। -अशोक मल्होत्रा
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