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    Fatehpur Temple Tomb Case: बाग की भूमि पर मकबरा तो कहां गया सवंलिया सेठ का मंदिर? जमीन को लेकर एक और दावा आया सामने

    Updated: Thu, 14 Aug 2025 02:53 PM (IST)

    Fatehpur Temple Tomb Case फतेहपुर के आबूनगर रेडइया में मकबरे की भूमि को लेकर नया दावा सामने आया है। 1928 में जमींदार लाला ईश्वर सहाय और गिरधारी लाल रस्तोगी के बीच इसका बंटवारा हुआ था। दस्तावेजों में सवंलिया सेठ मंदिर का भी उल्लेख है। रस्तोगी परिवार के अनुसार जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के तहत उन्हें इमारतों पर अधिकार है। 2012 में खतौनी में मकबरे का नाम दर्ज किया गया।

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    विवादित मकबरा के कुछ दूर पर स्थापित दूसरा कथित मकबरा। जागरण

    जागरण संवाददाता, फतेहपुर। आबूनगर रेडइया के जिस मकबरे को मंदिर बताया जा रहा है, उसकी जमीन को लेकर एक और दावा सामने आया है। शकुंतला मान सिंह के नाम दर्ज होने से पहले इस जमीन का बंटवारा जमींदार लाला ईश्वर सहाय और गिरधारी लाल रस्तोगी के बीच ब्रिटिशकाल में 24 जुलाई 1928 में हुआ था।

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    बंटवारे में आधी-आधी जमीन दोनों पक्षों को मिल गई थी। गिरधारी लाल रस्तोगी वारिश सतीश चंद्र और विवेक रस्तोगी का दावा है कि जमींदारी की जमीनें थीं, जिन्हें पुरखों ने बेंच दी, लेकिन जमींदारी उन्मूलन अधिनियम 1951 अब भी उन्हें इमारतों पर कानूनी अधिकार देता है।

    सतीश चंद्र बताते हैं कि बंटवारे में मिली जमीन में सवंलिया सेठ (ठाकुर जी विराजमान मंदिर) का मंदिर भी बना था, यह बात उस समय के मौजूद दस्तावेजों में दर्ज है। बंटवारा सिर्फ दो पक्षों में हुआ था उस समय के दस्तावेज में तीसरा पक्ष नहीं है।

    रस्तोगी पक्ष के पुरुषों की जमीन असोथर के बसंत सिंह ने 1965 से 70 के मध्य खरीद ली थी, जबकि मानपरिवार की जमीन नरेश्वरमान सिंह की पुत्री शंकुतलामान सिंह से बसंत सिंह के ही चचेरे भाई रामनरेश सिंह ने 1970 में खरीदा।

    इन दोनों परिवारों ने जो भी जमीन बेंची उसमें इमारत या मंदिर नहीं बेंचा गया। ऐसे में यह खोजा जाना चाहिए कि सैकड़ों वर्ष पहले से मौजूद रहे सवंलिया सेठ (ठाकुर जी विराजमान मंदिर) मंदिर कहां गया, जबकि पुराने दस्तावेज में नाम है।

    जमीन कब-कब, कहां-कहां गई

    गिरधारी लाल के वारिस सतीश चंद्र का दावा है कि जमीन पर सवंलिया सेठ का मंदिर था और बंटवारे में मंदिर की इमारत उनके हिस्से में आई थी। पूर्वज मध्य प्रदेश के राजनगर में बस गए थे। इसलिए किसी ने जमीन पर ध्यान नहीं दिया। 20 वर्ष पहले जब वह लौटे तो उस जमीन पर मजारें बनी देखीं। इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की।

    मकबरे में सोमवार को तोड़फोड़ की गई थी और पूजा करने के साथ ही भगवा झंडा भी लहराया गया था। मंगलवार को जांच में सामने आ चुका है कि 1359 फसली (1952) की खतौनी में जमीन जमींदार के बागान के रूप में दर्ज है। खतौनी में मकबरे का नाम 2012 में दर्ज हुआ था।

    2015 तक हुई जमीनों की बिक्री

    गाटा संख्या 1159 की वर्तमान खतौनी में ठाकुरजी विराजमान मंदिर व 22 अन्य लोगों के नाम हैं, जिसका कुल रकबा करीब 11 बीघे है। इस रकबे की भूमि को 1965 से 1970 के मध्य असोथर के बंसत सिंह (राम नरेश सिंह के चचेरे भाई) ने खरीदी थी, और 2001 से 2010 के मध्य बेंच दी गयी।

    इसी तरह जिस गाटा नंबर 753 के रकबा 11 बीघे के मूल मालिक ईश्वर सहांय थे, जिनसे यह जमीन पौत्री शकुंतला मान सिंह को वरासत के रूप में मिली। शकुंतला मान सिंह ने अपना 11 बीघे रकबा असोथर के ही राम नरेश सिंहको बेचा।

    इस जमीन की बिक्री भी राम नरेश सिंह के पुत्र विजय प्रताप सिंह ने 2001 से 2015 के मध्य की, लेकिन 2007 में सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में दाखिल टाइटिल सूट का मुकदमा दर्ज हुआ, जिसमें विपक्षी के तौर पर रामनरेश सिंह को रखा गया, लेकिन कानपुर में निवासित हो जाने के कारण वह इस मुकदमें में हाजिर ही नहीं हुए।

    ऐसे में टाइटिल सूट का मुकदमा अनीश के पक्ष में गया और इसी फैसले को आधार पर 2012 में खतौनी में एसडीएम ने मकबरा मंगी का नाम दर्ज किया।

    वर्तमान स्थिति को इस तरह समझें

    वर्तमान की बात की जाए तो राजस्व दस्तावेज व नक्शे में गाटा नंबर 1159 और 753 अगल-बगल के नंबर है। इन दोनों नंबरों के बीच से एक आम रास्ता है जो तालाब होकर नाले को जोड़ता है। गाटा संख्या 753 में विवादित इमारत है, जिसे मकबरा या मंदिर कहा जाता है।, जबकि 1159 गाटे में भी एक पुरानी इमारत है जिसे भी स्थानीय लोग मकबरा मानते हैं इस इमारत के अंदर भी ही एक मजारनुमा आकार बना है।

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