हाईवे के हैवान अंतिम सांस तक जेल में रहेंगे, मां-बेटी से दुष्कर्म के मामले में कोर्ट ने किया स्पष्ट
Bulandshahr News : 29 जुलाई 2016 की रात कार से एक परिवार जिला शाहजहांपुर जा रहा था। गाजियाबाद-अलीगढ़ हाईवे पर दोस्तपुर फ्लाई ओवर के पास सशस्त्र बदमाशो ...और पढ़ें

बुलंदशहर हाईवे केस के दोषी
जागरण संवाददाता, बुलंदशहर। आजीवन कारावास से दंडित हाईवे के पांचों हैवानों को अंतिम सांस तक जेल की सजा काटनी पड़ेगी। अदालत ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक को आजीवन कारावास का अभिप्राय सिद्धदोष के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए यानी अंतिम सांस तक कारावास होगा। इसमें दोषी जुबैर व साजिद वर्ष 2016 से बुलंदशहर जेल, दोषी नरेश, धर्मवीर व सुनील वर्ष 2018 से हरियाणा की नूंह जेल में बंद थे। अब पांचों दोषी बुलंदशहर जेल में रहेंगे।
नोएडा का परिवार 29 जुलाई 2016 की रात कार से जिला शाहजहांपुर में तेरहवीं में शामिल होने के लिए जा रहा था। गाजियाबाद-अलीगढ़ हाईवे पर दोस्तपुर फ्लाई ओवर के पास सशस्त्र बदमाशों ने उनकी कार रोकी और सभी को खेत में ले जाकर बंधक बना लिया था। लूटपाट करने के बाद मां और नाबालिग बेटी के साथ दूसरे खेत में सामूहिक दुष्कर्म किया था। मामले में 30 जुलाई 2016 को दुष्कर्म, डकैती व पास्को एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। 12 अगस्त को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वत संज्ञान लेते हुए जांच पुलिस से हटाकर सीबीआइ को सौंप दी थी।
सीबीआइ ने मामले में दो चार्जशीट दाखिल की थी। सोमवार को विशेष पाक्सो कोर्ट के न्यायाधीश ओमप्रकाश वर्मा तृतीय ने दोषी नरेश, धर्मवीर, सुनील, जुबैर और साजिद को आजीवन कारावास और प्रत्येक पर 1.81-1.81 लाख रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई है। कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया है कि प्रत्येक को आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय सिद्धदोष के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए यानी अंतिम सांस तक कारावास होगा।
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अब पांचों रहेंगे बुलंदशहर जेल में
सीबीआइ के वरिष्ठ लोक अभियोजक अमित चौधरी ने कहा कि दोषी जुबैर, साजिद और सलीम को कोतवाली देहात पुलिस ने आठ अगस्त 2016 को गिरफ्तार किया था। इसके बाद से तीनों जिला जेल में बंद थे। इसमें सलीम की सुनवाई के दौरान जेल में मौत हो गई थी। हरियाणा की नूंह पुलिस ने दोषी धर्मवीर, नरेश व सुनील को 27 जनवरी 2018 को गिरफ्तार किया था। इसके बाद से तीनों नूंह जेल में बंद थे। सजा सुनाने के बाद से अब पांचों दोषी जिला जेल में बंद हैं।
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उधर, बचाव पक्ष के अधिवक्ता शिवचरन माहूर ने कहा कि अदालत अर्थात न्यायाधीश के आदेश का हम स्वागत करते हैं, लेकिन इसमें कई खामियां हैं। जिसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जाएगी। हमें पूर्ण उम्मीद है कि उच्च न्यायालय से राहत मिलेगी।
उच्च न्यायालय से राहत की उम्मीद नहीं
सजा से पहले दोषियों ने तीन बार इलाहाबाद हाई कोर्ट और दो बार सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया था, हर बार आवेदन खारिज हो गया था। यही वजह है कि दोषियों को आगे भी उच्च न्यायालय से राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। जिला बार एसोसिएशन के महासचिव अमित चौहान का कहना है कि न्यायाधीश का फैसला स्वागत करने योग्य है।
दोषियों को उच्च न्यायालय एवं सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। सीबीआइ विशेष लोक अभियोजक अमित चौधरी का कहना है कि पाक्सो एक्ट में वर्ष 2018 से फांसी दिए जाने का प्रविधान जोड़ा गया। घटना के समय पाक्सो एक्ट तो लागू था, लेकिन उक्त एक्ट में फांसी की सजा का प्रविधान नहीं था। दोषियों को इसीलिए फांसी की सजा के बजाय आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

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