गांव का प्रधान कौन? यूपी के बरेली में तीन साल बाद उठा सवाल; चुनाव से बने थे रफीक, निर्वाचन सूची में दर्ज शफीक
उत्तर प्रदेश के बरेली में गांव के प्रधान को लेकर तीन साल बाद सवाल उठने से हड़कंप मच गया है। रफीक अंसारी नाम का व्यक्ति खुद को प्रधान बता रहा है लेकिन जांच टीम ने निर्वाचन आयोग की सूची के आधार पर सवाल खड़ा किया है कि उसमें बतौर प्रधान उनके भाई शफीक का नाम दर्ज है। दोनों भाई सरकारी कागजों के दिलचस्प खेल में उलझे हुए हैं।

जागरण संवाददाता, बरेली। गांव की राजनीतिक दांव-पेच खेलने वाले रफीक अंसारी ऐसे कागजी चक्कर में फंसे कि खुद को प्रधान साबित करने में पसीने छूट रहे। वह जीत का सरकारी प्रमाणपत्र, शपथपत्र का सरकारी प्रपत्र दिखाकर कह रहे कि मैं ही प्रधान हूं। इससे इतर, जांच टीम ने निर्वाचन आयोग की सूची के आधार पर सवाल खड़ा कर दिया कि उसमें तो बतौर प्रधान उनके भाई शफीक का नाम अंकित है।
सरकारी कागजों के दिलचस्प खेल में दोनों भाई सिर पकड़े बैठे हैं। शफीक कह रहे कि मैंने तो चुनाव लड़ा ही नहीं तो नाम आयोग में कैसे दर्ज हो गया। रफीक यह दोहराकर परेशान हैं कि तीन साल से सभी कागज उन्हीं के हस्ताक्षर से जारी हो रहे...तब से कोई आपत्ति नहीं आई।
यह प्रकरण गांव परसरामपुर का है। पिछले सप्ताह कुछ ग्रामीणों ने शिकायत की कि सड़क, नालियां गुणवत्ताहीन बनी हैं। इसी आधार पर डीएम रविंद्र कुमार ने भूमि संरक्षण अधिकारी संजय कुमार सिंह और राज्य निर्माण निगम अभियंता संजय कुमार को जांच सौंपी।
रफीक प्रपत्र लेकर पहुंचे
टीम जांच करने गुरुवार को पहुंची तो रफीक प्रपत्र आदि लेकर पहुंचे। इस पर भूमि संरक्षण अधिकारी ने सवाल किया कि ग्रामीणों के शिकायती पत्र पर ग्राम प्रधान का नाम शफीक लिखा है। ऐसे में शफीक ही प्रपत्र लेकर आएं। यह सुनकर रफीक ने कहा कि मैं ही प्रधान हूं। उन्होंने जीत का प्रमाणपत्र भी दिखाया, जोकि सहायक निर्वाचन अधिकारी के हस्ताक्षर से दो मई 2021 को जारी हुआ था। टीम उनसे प्रपत्र लेकर लौट गई।
निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच
जांच अधिकारियों का कहना था कि तात्कालिक तौर पर निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांची जा रही है। प्रधान का असली नाम क्या है, इसके लिए जिला स्तर पर अलग टीम जांच कर रही। ग्राम सचिव राजू से भी प्रकरण की जानकारी ली गई है।
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दूसरी ओर, कुछ ग्रामीणों ने बताया कि प्रधानी के चुनाव के समय रफीक ने अपने भाई शफीक का भी नामांकन करा दिया था। बाद में रफीक का पर्चा स्वीकृत होने पर शफीक की नाम वापसी करा दी गई। चुनाव होने पर रफीक ने 50 वोटों से जीत दर्ज की। उसके बाद से बजट एवं अन्य सभी कागजों में रफीक का नाम ही है। संभव है निर्वाचन अधिकारी या सहायक निर्वाचन अधिकारी की गलती से निर्वाचन आयोग की सूची में रफीक के बजाय शफीक का नाम अंकित करा दिया गया हो।
भूमि संरक्षण अधिकारी ने बताया कि जांच कराई जा रही, इसके बाद ही नाम को लेकर भ्रम या त्रुटि दूर हो सकेगी।
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