Independence Day 2025: आजादी के लिए होने वाली क्रांति का सूत्रधार, बांस बरेली का सरदार
बरेली के सेठ दामोदर स्वरूप रोहिलखंड में 20वीं सदी की क्रांति के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्होंने क्रांतिकारियों को एकजुट कर आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद के साथ काम किया। 1915 के बनारस षड्यंत्र में उन्हें सजा हुई। गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया। काकोरी कांड के बाद गिरफ्तार हुए और जेल में रहे।

पीयूष दुबे, बरेली। सेठ दामोदर स्वरूप... बरेली ही नहीं अपितु रोहिलखंड मंडल में 20वीं सदी की क्रांति का अहम किरदार, जिनके बिना क्रांति गाथा हर कदम पर ठिठक जाएगी। ऐसा सरदार जो क्रांति के सूत्रधार थे और बिखरे क्रांतिकारियों को सूत्र में बांधकर क्रांतिकारी गतिविधियों को पूरा करने में अहम योगदान देते।
बनारस के शुरुआती क्रांतिकारी मामलों से लेकर सरदार भगत सिंह के युग तक सक्रिय रहने वाले क्रांतिकारी सेठ दामोदर स्वरूप बरेली में क्रांतिकारी गतिविधियों के केंद्र थे। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से लेकर चंद्रशेखर आजाद के साथ क्रांतिकारी आंदोलनों में वह शामिल रहे। यही वजह थी कि 1930 में बरेली की गलियों में एक ही नारा गूंजता था, बांस बरेली का सरदार, सेठ दामोदर जिंदाबाद। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में सेठ दामोदर स्वरूप के साथ की चर्चा की, तो मैनपुरी षड्यंत्र केस के पुराने क्रांतिकारी राजाराम भारतीय का कहना था कि दामोदर स्वरूप सेठ की तरह कष्ट सहने वाला क्रांतिकारी नहीं देखा। यह उनकी क्रांति का प्रताप कहें या कुछ और लेकिन जिले में होने वाले अधिकांश बड़े आंदोलन व विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत का केंद्र उनके नाम पर बनाया गया सेठ दामोदर स्वरूप पार्क ही बनता है।
शचीन्द्रनाथ सान्याल और रास बिहारी बोस की टोली के प्रमुख क्रांतिकारियों में शामिल दामोदर स्वरूप सेठ के पास 21 फरवरी 1915 के विद्रोह की बरेली की जिम्मेदारी थी। यह आंदोलन 1857 की क्रांति की तरह तख्ता पलट करने की योजना थी। विप्लव का भंडाफोड़ होने पर 1915 में बनारस षड्यंत्र का मामला चला, जिसमें सान्याल को आजन्म काला पानी और दामोदर स्वरूप सेठ को सात वर्ष की सजा हुई। उन्होंने सात वर्ष की कैद का पूरा समय बेड़ियां पहनकर कालकोठरी में बिता दिया था। फतेहगढ़ जेल में बंद रहने के दौरान उनकी पत्नी मिलने के लिए गई थीं, तो उन्होंने मिलने से साफ इनकार कर दिया था।
इसके बाद 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए, जिसमें उनको ढाई वर्ष जेल में सजा काटनी पड़ी। सजा काटने के दौरान क्रांतिकारी नेता सेठ दामोदर स्वरूप के साथ काकोरी कांड के नायक ठाकुर रोशन सिंह थे, जिन पर सेठजी का बड़ा प्रभाव पड़ा। असहयोग के बाद सेठजी ने बनारस में अवैतनिक शिक्षक के रूप में काम करने के साथ ही वहां क्रांतिकारी दल को मजबूत किया। काकोरी के निकट नौ अगस्त 1947 में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया, जिसके बाद सेठजी को गिरफ्तार कर लिया गया और 18 महीने तक मुकदमा चलने के दौरान उनको जेल में रखा गया।
उनका अध्ययन और चिंतन जेल में रहने के दौरान भी जारी रहा और वह काकोरी कांड से जुड़े क्रांतिकारियों के साथ अविस्मरणीय पल गुजारते रहे। काकोरी के बंदी क्रांतिकारियों ने जेल के अंदर अपने राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए जिस संघर्ष का रास्ता अपनाया, वह इतिहास के गौरव से भरा पूरा और रोमांचकारी था। क्रांतिकारियों को अदालत में हथकड़ी पहनाकर लाया जाता था, लेकिन एक बार जब बेड़ियां पहनाने की तैयारी हो गई तो विरोध स्वरूप अनशन शुरू कर दिया गया। करीब 48 घंटे के बाद बहुत समझाने पर क्रांतिकारियों ने भूख हड़ताल समाप्त की। इससे पहले से बीमार चल रहे दामोदर स्वरूप की तबीयत और बिगड़ गई।
इसका क्रांतिकारियों ने विरोध किया तो एक बोर्ड बैठाया गया, जिसने यह फैसला दिया कि सेठजी अदालत में उपस्थित होने की शक्ति रखते हैं। लेकिन अदालत में लाने पर वह बेहोश हो गए। बावजूद इसके उनकी चिकित्सा प्रणाली को बदलने की अनुमति अंग्रेजों ने नहीं दी। यह देखकर वह फिर से अनशन पर बैठ गए, जिससे विवश होकर सरकार ने सेठजी को एक हजार रुपये की जमानत और इतने ही मुचलके पर छोड़ दिया।
अनशन और बीमारी से सेठजी का वजन 122 पौंड से घटकर 62 पौंड रह गया। इसके बाद वह देहरादून और मसूरी के बीच में स्थित राजपुर औषधालय चले गए, जहां डा. केशवचंद्र शास्त्री की प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से वह मृत्यु से लड़कर होकर लौटे। इसके बाद उन्होंने काकोरी के सजायाफ्ता साथियों के लिए दिन रात एक कर दिया, क्योंकि वह क्रांति को कामयाब होते हुए देखना चाहते थे। उन्होंने बरेली केंद्रीय कारागार में काकोरी के कैदी अनशनकारियों को अखबार और जरूरी सूचनाएं गुप्त रूप से भेजने का प्रबंध कर लिया था। वे क्रांतिकारियों के कार्याें और अनशन को अखबारों व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करा देते थे। क्रांतिकारियों की 53 दिन लंबी भूख हड़ताल में सेठजी का बड़ा हाथ था।
असेंबली में बम फेंकने के बाद जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जब गिरफ्तारियां दीं तो कानपुर एक बार फिर क्रांतिकारियों का केंद्र बन गया था। कानपुर में रामसिंह के मकान पर एक बैठक करके चंद्रशेखर आजाद ने दल की केंद्रीय समिति का गठन किया, जिसमें दामोदर स्वरूप सेठ अध्यक्ष बने। वह पूरी तरह से सक्रिय रहे। इसके बाद उन्होंने 1930 से कांग्रेस से जुड़कर 1942 तक कई बार जेल यात्राएं कीं। वह पंडित नेहरू को जवाहर कहकर बात किया करते थे। 11 फरवरी 1901 को जन्में सेठ दामोदर स्वरूप ने अंतिम सांस आजाद भारत में ही ली।
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