'ऐवान-ए-फरहत' बैंक्वेट हॉल पर एक्शन थमने का आदेश: हाई कोर्ट ने सपा नेता सरफराज वली खान को राहत
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 'ऐवान-ए-फरहत' बैंक्वेट हॉल पर कार्रवाई रोकने का आदेश दिया है। यह राहत सपा नेता सरफराज वली खान को मिली है। कोर्ट के इस आदेश से सर ...और पढ़ें
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‘ऐवान-ए-फरहत’ बैंक्वेट हाल
जागरण संवाददाता, बरेली। शहर के ‘ऐवान-ए-फरहत’ बैंक्वेट हाल के मालिक समाजवादी पार्टी नेता सरफराज वली खान और उनकी बीवी फरहत जहां को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति कुणाल रवि सिंह की खंडपीठ ने बरेली विकास प्राधिकरण को याची के निर्माण की कंपाउंडिंग पर विचार करने का आदेश दिया और निर्णय लिए जाने तक यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दिया है।
बीते बुधवार को हाई कोर्ट के समक्ष याची की तरफ से तर्क दिया गया कि 12 अक्टूबर, 2011 के कथित आदेश की ‘आड़’ में तोड़फोड़ की कार्रवाई की जा रही थी। इसका नोटिस कभी नहीं दिया गया था। अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत तय प्रक्रिया का पालन किए बिना सीधे तोड़फोड़ की कार्रवाई की।
याची ने 1973 के अधिनियम के तहत उपलब्ध उपायों का सहारा लेने की इच्छा जताई। कहा कि निर्माण कंपाउंडेबल हैं। बीडीए का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि याची ने जरूरी तथ्यों को छिपाया है। बिना नक्शा स्वीकृत कराए मैरिज हाल (बरात घर) निर्माण पर वर्ष 2011 में ही नोटिस जारी किया गया था।
मई और अक्टूबर, 2011 के बीच कई मौके दिए जाने के बावजूद याची पेश नहीं हुए अथवा सबूत पेश नहीं किया। नतीजतन 12 अक्टूबर, 2011 को तोड़ने का आदेश पारित किया गया था। वर्ष 2018 में याची ने ‘ऐवान-ए-फरहत’ मैरिज हाल चलाने की बात स्वीकार की, लेकिन दावा किया कि ढांचा पुराना था और 1991 की सेल डीड के तहत खरीदा गया था।
अथारिटी ने कहा कि इसके बावजूद, अप्रूवल के लिए कभी कोई नक्शा जमा नहीं किया गया और न ही कोई कंपाउंडिंग एप्लीकेशन दिया। वर्ष 2011 का आदेश एक्ट की धारा 27(2) के तहत अपील करने योग्य था, जो कानूनी उपाय था, जिसका याची ने इस्तेमाल नहीं किया। कोर्ट ने याची को 1973 के एक्ट की धारा 14 और 15 के तहत उचित आवेदन करने की छूट दी है।
साथ ही उस हिस्से को कंपाउंडिंग करने के लिए भी आवेदन करने की अनुमति दी जो नियमों के तहत हो। बीडीए उपाध्यक्ष को निर्देशित किया है कि वह आवेदन जमा किए जाने की तारीख से छह सप्ताह में उस पर निर्णय लें।

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