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    Ayodhya News: राम मंदिर निर्माण में सामने आई बड़ी तकनीकी कमी, रामलला के पुजारी भी परेशान

    Updated: Fri, 21 Jun 2024 08:36 PM (IST)

    राम मंदिर निर्माण में बड़ी तकनीकी कमी का पता चला है जिससे रामलला के पुजारी भी परेशान हैं। अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर के गर्भगृह में जल निकासी की व्यवस्था नहीं है। तात्कालिक विकल्प के रूप में पुजारियों ने स्वयं प्रबंध किया है और अभिषेक व स्नान के समय एक बड़ा थाल रखा जा रहा है जिससे पानी सतह पर फैलने के बजाय उसमें ही गिरे।

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    अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर के गर्भगृह में जल निकासी की व्यवस्था नहीं

    जागरण संवाददाता, अयोध्या। नवनिर्मित भव्य और नव्य राम मंदिर के निर्माण की बड़ी तकनीकी कमी सामने आई है। गर्भगृह में जलनिकासी की व्यवस्था नहीं है। प्रभु श्रीराम के श्रृंगार से पहले होने वाले अभिषेक व स्नान से निकलने वाला जल बाहर नहीं निकलने से रामलला के पुजारी परेशान हैं। इंजीनियर जल निकासी का प्रबंध करने में जुटे हैं, यद्यपि ट्रस्ट ने इसे नकारते हुए कहा है कि गर्भगृह से निकलने वाले जल को चरणामृत मानकर संरक्षित किया जा रहा है।

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    भव्य मंदिर में विराजे प्रभु श्रीराम का प्रतिदिन सुबह श्रृंगार से पहले अभिषेक व स्नान कराया जाता है। सरयू के जल के साथ ही उनका दूध, दही, घी व शहद मिश्रित मधु पर्क से भी स्नान होता है। स्नान के बाद गर्भगृह की सतह पर गिरने वाले जल की निकासी का प्रबंध न होने से पुजारी परेशान हैं।

    ट्रस्ट के सदस्यों को इससे अवगत कराया गया है। इंजीनियर इस तकनीकी कमी के निदान में लगे हैं। तात्कालिक विकल्प के रूप में पुजारियों ने स्वयं प्रबंध किया है और अभिषेक व स्नान के समय एक बड़ा थाल रखा जा रहा है, जिससे पानी सतह पर फैलने के बजाय उसमें ही गिरे। इस जल को बाद में पौधों में अर्पित कर दिया जाता है। जो थोड़ा-बहुत जल फैल जाता है, उसे सूखे कपड़े डाल कर अवशोषित कराया जाता है।

    चरणामृत है स्नान का पानी

    डा. अनिल श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य डा. अनिल मिश्र ने गर्भगृह में किसी तकनीकी कमी को सिरे से नकारा है। उनका कहना है कि प्रभु के स्नान व अभिषेक से निकलने वाला जल चरणामृत स्वरूप होता है। ट्रस्ट उसे जल नहीं मानता है। इसी कारण उसे संरक्षित किया जाता है।

    राम मंदिर में नित्य उपयोग में लाया जा रहा निष्प्रयोज्य जल

    रामलला के मंदिर में पौधारोपण के साथ जल संरक्षण भी किया जा रहा है। नित्य एक लाख लीटर अनुपयोगी जल को भी ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से उपयोगी बनाया जाता है। शोधित जल का इस्तेमाल सिंचाई और साफ-सफाई में किया जा रहा है।

    मंदिर में चार लाख किलोलीटर क्षमता का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है। अभी इसके एक हिस्से का ही उपयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त भूगर्भ जल को रिचार्ज करने के लिए पिट भी निर्मित किए जा रहे हैं। इनकी संख्या लगभग 30 होगी, इनमें कुछ का निर्माण हो भी चुका है।

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