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    Aligarh News : भौतिकता की दौड़ में विलुप्त हो रही ब्रज की टेसू-झेंझी की प्रथा, कानों में रस घोलते थे गीत

    By Yogesh KaushikEdited By: Anil Kushwaha
    Updated: Sun, 09 Oct 2022 07:43 AM (IST)

    Aligarh News महाभारत से जुड़ी है टेसू झेंझी की कथा। भौतिकता की दौड़ में यह परंपरा अब लुप्‍त होती जा रही है। अब न बच्‍चों में पहले जैसा उत्‍साह रहा है और न झेंझी टेसू की बिक्री ही हो रही है।

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    दशहरा के दिन से टेसू व झेंझी का त्यौहार शुरू होता है।

    योगेश कौशिक, इगलास/अलीगढ़। Aligarh News : टेसू के रे टेसू के टेसू बैठों आंगन में.., टेसू रे टेसू घंटार बजईयों, नौ नगरी के गांव बसइयो, बस गई नगरी बस गए मोर, हरी चिरैया को ले गए चोर। अंगना में बोली कोयल, पिछवाड़े बोले मोर, चली है प्यारी झेंझी, हम सबसे मुखड़ा मोड़ आदि लोक गीत बच्चों के समूह के द्वारा हाथों में टेसू व झेंझी लेकर गाते हुए कानों में कभी रस घोलते थे। भौतिकता की दौड़ में यह परंपरा लुप्त हो रही है। अब न बच्चों में पहले जैसा उत्साह रहा है और न झेंझी-टेसू की बिक्री। एक समय था जब बच्चे समूह बनाकर टेसू व झेंझी लेकर घर-घर जाते थे। लड़कों के हाथ में टेसू व लड़कियों के हाथ में दीपक की रोशनी से जगमगाती झांझी हुआ करती थी। लोग उन्हें दक्षिणा व अनाज देकर विदा करते थे।

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    महाभारत के समय की प्रथा

    टेसू-झेंझी की कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। भीम पुत्र बर्बरीक का श्रीकृष्ण ने सर काटकर पेड़ पर रख दिया था। जब सर शांत नहीं हुआ तो श्रीकृष्ण ने मायारुपी झेंझी से उसका विवाह संपन्न कराया। वहीं दूसरी कहानी के अनुसार एक ब्राह्मण की पुत्री पर मोहित होकर टेसू नामक राक्षस विवाह करता है। आधे विवाह दौरान राक्षस को ब्राह्मण के परिवार के लोग खत्म कर देते है बाद में कन्या को भी। इसी लिए उनका आधा विवाह होने के बाद तोड़ दिया जाता है। एक मान्यता यह भी है कि हिंदू धर्म में विवाह शुरु होने से पहले टेसू-झेंझी का विवाह कराते हैं कि जो विध्न बाधा आए इन्हीं के विवाह में आ जाए बाद में कोई दिक्‍कत हो।

    विलुप्त होती प्रथा

    दशहरा के दिन से टेसू व झेंझी का त्यौहार शुरू होता है और शरद पूर्णिमा को दोनों के विवाह के साथ इन्हें जलासय में विसर्जित कर देते हैं। आधुनिकता ने टेसू झांझी की संस्कृति लगभग समाप्त ही कर दी है। वह दिन दूर नहीं जब टेसू-झांझी सिर्फ कहानी बनकर रह जाएंगे। नए दौर के बच्चे कंप्यूटर, वीडियो गेम, मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। टेसू और झांझी और इनके गीत अब सिर्फ देहात क्षेत्र में ही कहीं-कहीं सुने जाते हैं वह भी चुनिंदा बच्चों के समूह में।

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    ऐसे होते हैं टेसू-झेंझी

    टेसू तीन लकड़ियों को जोड़ कर बनाते हैं। एक लकड़ी पर मनुष्य की आकृति का खिलौना होता है। बीच में दीपक रखने के लिए जगह होती है। झांझी मिट्टी की एक छोटी मटकी होती है जिसमें काफी छेद होते हैं। अंदर दीपक रखा जाता है जिसका प्रकाश छेदों से छन छन कर बाहर आता है।