Shahjahan Urs: फ्री देखनी है शाहजहां-मुमताज की असली कब्रें तो इस टाइम आइए ताजमहल, तीन दिन नहीं लगेगी टिकट
Taj Mahal Free For Tourist मुगल शहंशाह शाहजहां का 370वां उर्स ताजमहल में रविवार से मनाया जाएगा। इस तीन दिवसीय उर्स में पर्यटकों को निशुल्क प्रवेश मिले ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, आगरा। Taj Mahal: शहंशाह शाहजहां का 370वां उर्स ताजमहल में रविवार से मनाया जाएगा। तीन दिवसीय उर्स में पर्यटकों को निश्शुल्क प्रवेश मिलेगा। उर्स में आकर्षण का केंद्र 1640 मीटर लंबी सतरंगी हिंदुस्तानी चादर रहेगी।
मुख्य आकर्षण तहखाना में स्थित शाहजहां व मुमताज की कब्रें रहेंगी। यह कब्रें वर्ष में केवल एक बार उर्स में ही खोली जाती हैं। उर्स में स्मारक में सुरक्षा व्यवस्था सख्त रहेगी। इसके लिए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) ने जवानों की संख्या व ड्यूटी प्वाइंट्स बढ़ाए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने भी व्यवस्थाएं संभालने को अतिरिक्त कर्मचारी तैनात किए हैं।
हर वर्ष इन तारीखों को मनता है उर्स, इस समय होगी एंट्री फ्री
- शाहजहां का उर्स ताजमहल में हिजरी कैलेंडर के रजब माह की 25, 26 व 27 तारीख को मनाया जाता है।
- इस बार उर्स 26 से 28 जनवरी तक मनाया जाएगा।
- उर्स के पहले दिन गुस्ल, दूसरे दिन संदल और तीसरे दिन चादरपोशी की रस्म होगी।
- 26 व 27 जनवरी को दोपहर दो बजे से और 28 जनवरी को सुबह से शाम ढलने तक पर्यटकों को निश्शुल्क प्रवेश मिलेगा।
- भारतीयों के साथ ही विदेशी पर्यटकों पर भी टिकट लागू नहीं होगा। टिकट विंडो बंद रहेंगी।
- उर्स में ही पर्यटकों को तहखाना में स्थित शाहजहां व मुमताज की कब्रों को देखने का अवसर मिलता है।
ताजमहल के वरिष्ठ संरक्षण सहायक प्रिंस वाजपेयी ने बताया कि ताजमहल में उर्स में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त कर्मचारी तैनात किए जाएंगे। परंपरागत रूप से ही उर्स मनेगा। किसी तरह की नई परंपरा की शुरुआत नहीं होने दी जाएगी।
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उर्स में यह होती हैं रस्में
- पहला दिन: उर्स के पहले दिन गुस्ल की रस्म होगी। फातिहा पढ़ा जाएगा और दुआ होगी।
- दूसरा दिन: उर्स के दूसरे दिन संदल की रस्म होगी। कव्वाली व मुशायरा होगा।
- तीसरा दिन: उर्स के तीसरे दिन कुरानख्वानी होगाी। फातिहा पढ़ा जाएगा। चादरपोशी होगी और लंगर बंटेगा।
हर वर्ष बढ़ जाती है चादर की लंबाई
खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी की ओर से उर्स में तीसरे दिन सर्वधर्म सद्भाव की प्रतीक सतरंगी हिंदू चादर चढ़ाई जाती है। हनुमान मंदिर से धर्मगुरुओं की मौजूदगी में ढोल के साथ यह चादर ताजमहल तक ले जाई जाती है। इसकी लंबाई हर वर्ष बढ़ जाती है। कमेटी के अध्यक्ष ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि इस बार 1640 मीटर लंबी चादर चढ़ाई जाएगी। पिछले वर्ष शाहजहां के 369वें उर्स में 1560 मीटर लंबी चादर चढ़ाई गई थी।
शाहजहां से पहले मना था मुमताज का उर्स
शाहजहां का 370वां उर्स ताजमहल में रविवार से शुरू होगा। ताजमहल में शाहजहां से पहले मुमताज का उर्स मनाया गया था। इतिहास की पुस्तकों में मुमताज का पहला उर्स वर्ष 1632 में ताजमहल में मनाए जाने का जिक्र मिलता है। मुमताज का उर्स सैयद बंधुओं द्वारा मुमताज की कब्र पर चढ़ाई जाने वाली मोतियों की चादर लूटे जाने के बाद बंद हो गया था।
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मोतियों की चादर लूटे जाने के बाद बंद हो गया था
ताजमहल में मुमताज का उर्स मनाए जाने का जिक्र आस्ट्रियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा में किया है। मुमताज का पहला उर्स 22 जून, 1632 को मिला था। फाेरकोर्ट में शाही टेंट लगा था व कारपेट बिछवाए गए थे। सभी लोगों ने सफेद वस्त्र पहनकर उर्स में शिरकत की थी। गरीबों व जरूरतमंदाें को 50 हजार रुपये बांटे गए थे। शाही परिवार की महिलाओं ने भी उर्स में गरीब व जरूरतमंद महिलाओं को 50 हजार रुपये बांटे थे।
शाहजहां की मृत्यु के बाद उसका उर्स शुरू हुआ
शाहजहां ने प्रतिवर्ष मुमताज के उर्स के लिए एक लाख रुपये की धनराशि तय की थी। दूसरी बार मुमताज का उर्स 26 मई, 1633 को मना। वर्ष 1666 में शाहजहां की मृत्यु के बाद उसका उर्स शुरू हुआ। गाइड शम्सुद्दीन बताते हैं कि मुमताज बच्चे को जन्म देते समय मरी थी, इसलिए उसे शहीद का दर्जा मिला था। इसलिए उसका उर्स मनाया गया था।
इतिहासकारों का है ये कहना
इतिहासकार आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने पुस्तक मुगलकालीन भारत और राजकिशोर राजे ने तवारीख-ए-आगरा में मुमताज का उर्स बंद होने की जानकारी दी है। छह जून, 1719 को सैयद बंधुओं ने दिल्ली की गद्दी पर रफीउद्दाैला को बैठाया। मित्रसेन नागर ने उस समय आगरा किला में निकुसियर को गद्दी पर बैठाया। सैयद बंधुओं ने आगरा पर हमला कर निकुसियर को कारावास में डाल दिया।
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मित्रसेन नागर ने आत्महत्या कर ली। सैयद बंधुओं में छोटे हुसैन अली ने शाही कोष पर कब्जा कर लिया। इसमें मुमताज की कब्र पर चढ़ाई जाने वाली मातियों की चादर भी थी। इसका मूल्य उस समय करीब चार हजार रुपये था। चादर लुटने के बाद मुमताज का उर्स बंद हो गया।

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