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    बुर्का पहन गलियों में घूमी महिला पुलिस, डिलीवरी ब्यॉय से मिली लीड... रोहिंग्या के गढ़ तपसिया में 'ऑपरेशन अस्मिता' की कहानी

    Updated: Sun, 27 Jul 2025 10:00 AM (IST)

    आगरा पुलिस ने मतांतरण गिरोह के ठिकाने तपसिया में ऑपरेशन अस्मिता चलाया। 30 किमी क्षेत्र में फैली संकरी गलियों में महिला पुलिसकर्मियों ने बुर्का पहनकर रेकी की। डिलीवरी बॉय से मिले सुराग के बाद दो बेटियों को बरामद किया गया। घनी आबादी वाले इस मुस्लिम बहुल इलाके में पुलिस टीम ने सावधानीपूर्वक योजना बनाकर सफलता प्राप्त की। बेटियों के पिता भी इलाके की स्थिति देखकर चिंतित थे।

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    प्रस्तुतीकरण के लिए सांकेतिक तस्वीर का प्रयोग किया गया है।

    अली अब्बास, आगरा। मतांतरण गिरोह के सेफ जोन तपसिया में जिस जगह आगरा की दो बेटियों को रखा गया था। 30 किलोमीटर के करीब 40 हजार की मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले इलाके में बेहद संकरी गलियों का जाल बिछा हुआ है।

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    ऑपरेशन अस्मिता के लिए आगरा की 30 सदस्यीय पुलिस टीम पांच दिन तक रेकी करती रही। महिला पुलिसकर्मी बुर्का पहनकर गलियाें में घूमती रहीं। डिलीवरी ब्वॉय से सुराग मिलने के बाद 18 जुलाई को बेटियों की बरामदगी के साथ आपरेशन अस्मिता को सफल तरीके से अंजाम दिया।

    24 मार्च से गायब थी जूता कारोबारी की दो बेटियां

    सदर क्षेत्र से जूता कारोबारी की दो बेटियां 24 मार्च 2024 को गायब हो गई थीं। छोटी बेटी ने जुलाई के प्रथम सप्ताह में इंस्टाग्राम पर एके-47 के साथ बुर्का में एक फोटो पोस्ट की। जिसके आधार पर पुलिस ने छानबीन शुरू की तो पता चला कि बेटियां मतांतरण कराने वाले गिरोह के जाल में फंस चुकी हैं।

    पुलिस ने चलाया ऑपरेशन अस्मिता

    पुलिस ने उनकी बरामदगी को 12 जुलाई से ऑपरेशन अस्मिता आरंभ किया। पुलिस की एडवांस टीम 13 जुलाई तपसिया भेजी गई। उसने तीन दिन तक 30 किलोमीटर इलाके की लगातार रेकी की थी, जिससे आपात स्थिति में वहां से निकलने का रास्ताें के बारे में जानकारी हो। एक जैसी गलियां और मकानों का जाल अपरिचित के लिए भूल भुलैया की तरह था।

    संकरी गलियों और रास्तों की भूल-भुलैया है 30 किमी का मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र

    दिन बाद महिला इंस्पेक्टर और उप निरीक्षक समेत 25 पुलिसकर्मियों की टीम को भेजा गया। महिला इंस्पेक्टर और एक उप निरीक्षक इन गलियों में मुस्लिम पहनावे की वेशभूषा में घूमी थीं। सर्विलांस टीम को पता चला कि दोनों बेटियां अक्सर अपना खाना ऑनलाइन फूड डिलीवरी के माध्यम से मंगाती थी। जिसके बाद टीम ने ऐसे ऑर्डर को चिन्हित करना शुरू किया, जहां से एक ही घर में लगातार मंगाया जाता।

    डिलीवरी ब्यॉय से मिला सुराग

    टीम ने पाया कि दो महीने से लगातार एक ही गली में ऑनलाइन फूड डिलीवरी ब्वॉय जाता था। यहां पर दोनों बेटियां भी बुरके में रहकर खुद की पहचान छिपाए हुए थीं। वह घर से कम ही बाहर निकलती थीं। वह डिलीवरी ब्वॉय को पीएनबी के एटीएम के सामने वाली गली में जिस घर के सामने पीली बोरी रखी है, वहां बुलाती थीं।

    पीली बोरी वाली घर किया चिन्हित

    घर से बाहर खाना लेने के लिए उसी घर में रहने वाली अन्य युवती को भेजती थीं। पुलिस ने गली में पीली बोरी वाले घर को चिन्हित किया तो उनकी संख्या सात थी। ऐसे में गलत घर पर छापा मारने पर पुलिस कार्रवाई की भनक लगने से बेटियाें को गिरोह वहां से कहीं और भेज सकता था। ऐसे में डिलीवरी ब्वॉय ही ऐसा सुराग था, जो पुलिस को बेटियों के घर तक पहुंचा सकता था।

    18 जुलाई की सुबह ऑपरेशन अस्मिता को अंजाम

    पुलिस ने 18 जुलाई की सुबह ऑपरेशन अस्मिता को अंजाम देने का निर्णय किया। तपसिया की एटीएम वाली गली के सामने वह एक 100 मीटर में महिला इंस्पेक्टर और दारोगा समेत 10 सदस्यीय टीम मुस्लिम पहनावे की वेशभूषा में टीम डट गई। बाकी सदस्य भी आसपास की गलियों में घूमते रहे। सुबह नौ बजे डिलीवरी ब्वाय जिस घर पर खाना देकर गया, पुलिस ने उसे चिन्हित कर लिया। उसके जाते ही महिला पुलिस अधिकारियों के साथ टीम के अन्य सदस्य वहां घुस गए।

    उन्होंने बेटियों को बरामद करने के साथ ही वहां माैजूद लोगों को हिरासत में लिया। सबकुछ इतना पलक झपकते हुआ कि मतांतरण गिरोह के सदस्यों को वहां से निकलने या किसी को सूचना देने का मौका तक नहीं मिला। पुलिस मुस्लिम बाहुल्य इलाके में ऑपरेशन अस्मिता को सफलता पूर्वक अंजाम देकर सीधे वहां के पुलिस थाने पहुंची। आरोपितों को न्यायालय में पेश करके ट्रांजिट रिमांड पर लेकर आगरा आ गई।

    इलाका और घर देख डर गए थे पिता

    घनी आबादी के बीच संकरी गलियों में मुस्लिम बाहुल्य इलाके का हाल देख बेटियों के पिता भी अंदर ही अंदर डर रहे थे। यह इलाका रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों का गढ़ बताया जाता है। पिता बेटियों को वहां से लेकर जल्द से जल्द निकलना चाहते थे। इसीलिए उन्हाेंने बेटियों का सारा सामान नहीं लिया। वह नकदी और जेवरात से भरा सूटकेस वहीं छोड़ आए थे। उनका लक्ष्य पुलिस टीम के साथ बेटियाें को वहां से सकुशल लेकर निकलना था। एक सप्ताह बाद भी ऑपरेशन अस्मिता के उस दृश्य को याद कर पिता सिहर उठते हैं।

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