Mulayam Singh Yadav Death: ताजनगरी में जब एक मंच पर आए थे “नेताजी” और “बाबूजी”, गहरी हुई थी दोस्ती
Mulayam Singh Yadav Death 2009 में सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दाैरान एक मंच को साझा किया था मुलायम सिंह और कल्याण सिंह ने। भाजपा से नाता तोड़ कल्याण सिंह ने बना ली थी जनक्रांति पार्टी। आगरा के जीआईसी मैदान पर हुआ था उस समय राष्ट्रीय अधिवेशन।

आगरा, जागरण संवाददाता। कद्दावर नेता व सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव नहीं रहे। सपा ही नहीं, समूचे राजनीति जगत में शोक की लहर है। हर कोई उनसे जुड़ी यादें ताजा कर रहा है। खास होते हुए भी मुलायम आम रहे। ताजनगरी के कार्यकर्ताओं से भी उनका काफी जुड़ाव रहा है। अधिकांश को वे नाम से पुकारते थे। उनकी इसी शैली पर कार्यकर्ता फिदा थे। मुलायम सिंह के निधन के साथ ही उनसे जुड़े लोग यादों के पन्ने पलटने लगे।
2009 में एक मंच पर आए थे मुलायम और कल्याण
निवर्तमान महानगर अध्यक्ष व युवा अवस्था से समाजवादी विचारधारा से जुड़े चौधरी वाजिद निसार को 'नेताजी' की एक तस्वीर मिली। जिसमें वे दूसरे कद्दावर नेता 'बाबूजी' के साथ मंच पर एक ही फूलमाला के बीच खड़े हैं। ये एतिहासिक तस्वीर वर्ष 2009 में आगरा के जीआईसी मैदान पर सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन की है। इस तस्वीर में प्रखर हिंदूवादी नेता 'बाबूजी' कल्याण सिंह उन 'नेताजी' मुलायम सिंह यादव के साथ मंच साझा करते नजर आए थे, जो वर्ष 1990 में कारसेवकों पर गोली चलवाने के आरोपों में घिरे।
भाजपा से मनमुटाव के बाद कल्याण सिंह ने 1999 में राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी बना ली थी। वर्ष 2009 में उन्होंने सपा से हाथ मिला लिया था। इसी वर्ष आगरा के जीआईसी मैदान पर सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में वे मुलायम सिंह यादव के साथ मंच पर नजर आए। तत्कालीन महानगर अध्यक्ष चौधरी वाजिद निसार बताते हैं, अधिवेशन के दौरान जब नेताजी और बाबूजी एक साथ मंच पर आए तो समर्थकों का उत्साह देखते ही बन रहा था। पूरा पंडाल नेजाती और बाबूजी के जयकारों से गूंज रहा था। कहते हैं, उस वक्त प्रदेश के दो बड़े नेता एक मंच पर देखकर समर्थकों का जोश हिलोरे मारने लगा था। वे बताते हैं, ताजनगरी में सपा के अब तक चार राष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं लेकिन 2009 का सम्मेलन कुछ खास ही था।
लोगों से था जुड़ाव
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे रामजी लाल सुमन कहते हैं, मुलायम सिंह यादव जनवादी नेता थे। वे लोगों से बिना किसी प्रोटोकाल के मिलना पसंद करते थे। जनता से सीधा जुड़ाव ही, उनकी पहचान था। आगरा के कई लोगों से उनके गहरे ताल्लुकात थे। राजनीतिक कार्यक्रम ही नहीं, व्यक्तिगत कार्यक्रमों में भी वे यहां खूब आते रहे हैं।
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