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    हमाम के बाद एक और मुगलकालीन विरासत संकट में, मुबारक मंजिल का अब तक 70 प्रतिशत हिस्सा तोड़ा जा चुका

    Agra News हमाम के बाद अब मुबारक मंजिल पर संकट मंडरा रहा है। औरंगजेब ने युद्ध में जीत होने की वजह से इसे मुबारक मंजिल नाम दिया था। मुगलकालीन विरासत मुबारक मंजिल को औरंगजेब की हवेली बताकर पुरातत्व विभाग ने अधिसूचना जारी की है। इस पर इतिहासकार सवाल उठा रहे हैं। विभाग की कार्यप्रणाली पर संदेह है। हमाम को तोड़ने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी।

    By Nirlosh Kumar Edited By: Abhishek Saxena Updated: Thu, 02 Jan 2025 07:58 AM (IST)
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    आगरा में मबारक मंजिल को तोड़ा जा रहा है।

    जागरण संवाददाता, आगरा। मुगल काल में आगरा को यमुना किनारे बनी हवेलियाें और बागों के लिए पहचाना जाता था, लेकिन अब उसकी पहचान बदल गई है। बाग, बगीचियों और तालाबों का अस्तित्व मिटने के बाद अब गैर-संरक्षित विरासत संकट में हैं।

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    छीपीटोला के मुगलकालीन हमाम का विध्वंस तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से रुक गया, लेकिन बेलनगंज स्थित मुबारक मंजिल का अस्तित्व मिट रहा है। जिम्मेदार अधिकारियों ने इस ओर से आंखें मूंद रखी हैं। मामले में अब जनहित याचिका दायर करने की तैयारी है।

    आगरा में अनगिनत ऐसे प्राचीन भवन व स्मारक हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण या राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित नहीं हैं। इन्हीं में से एक छीपीटोला स्थित 16वीं शताब्दी के हमाम को पिछले दिनों बिल्डर द्वारा तोड़ना शुरू करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।

    मुबारक मंजिल को भी इन दिनों तोड़ा जा रहा है

    बेलनगंज स्थित मुबारक मंजिल को इन दिनों तोड़ा जा रहा है। इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा में जयपुर मैप के अनुसार आगरा किला से पांचवें, छठे व सातवें नंबर पर हवेली आलमगीर और मस्जिद मुबारक मंजिल का जिक्र किया है। मुबारक मंजिल हवेली आलमगीर का ही भाग है।

    आप के पूर्व जिलाध्यक्ष कपिल वाजपेयी ने बताया कि मुबारक मंजिल का 70 प्रतिशत हिस्सा तोड़ा जा चुका है। अधिकारियों द्वारा शिकायत का संज्ञान नहीं लिए जाने पर अब वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने जा रहे हैं।

    औरंगजेब ने रखा था मुबारक मंजिल नाम

    इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि सामूगढ़ की लड़ाई में दाराशिकोह को हराने के बाद औरंगजेब उसके महल में रुका था। औरंगजेब ने युद्ध में जीत होने की वजह से इसे मुबारक मंजिल नाम दिया था। दारा का महल बेलनगंज में यमुना किनारे स्थित सड़क पर है। यह लाल पत्थर से बनी है और इसके चारों कोनों पर बुर्जियां हैं। अंग्रेजों ने इसे सेठ चुन्नीलाल को बेच दिया था। हालांकि, बाला दुबे की पुस्तक मोहल्ले आगरा के में इसे अंग्रेजों द्वारा सेठ सूरजमल को बेचने का जिक्र मिलता है।

    बैरम खां के पास थी सबसे पहले हवेली

    इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब में लिखा है कि अकबर के शासनकाल में यह हवेली बैरम खान व मुनीम खान के पास रही। जहांगीर ने इसे अपने बड़े बेटे खुसरो को दिया था। इसे पुन: बनवाने को एक लाख रुपये दिए थे। शाहजहां अपने राज्याभिषेक से पहले यहां 12 दिन रुका था। इसमें नीचे मेहराबदार मंजिल और दोनों ओर मीनारें हैं। शाहजहां का दूसरा बेटा शुजा यहां शादी के समय रुका था। बाद में यह संपत्ति औरंगजेब के पास आ गई थी। वर्ष 1817 में इसमें दूसरी मंजिल बनाई गई।

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    वर्ष 1810 से 1877 तक इसका उपयोग नमक विभाग के कस्टम हाउस के रूप में किया गया। वर्ष 1878 में ब्रिटिश सरकार ने इसे बेच दिया था। वर्ष 1902 में मुस्लिम समुदाय ने इसके पूजा स्थल होने का दावा किया था, लेकिन मस्जिद की वास्तुकला का कोई साक्ष्य नहीं मिलने पर लार्ड कर्जन ने याचिका अस्वीकार कर दी थी।

    जफर खां के मकबरे को बता दिया औरंगजेब की हवेली

    राज्य पुरातत्व विभाग ने बल्केश्वर स्थित गोशाला के पुराने निर्माण को औरंगजेब की हवेली (मुबारक मंजिल) बताते हुए प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दी, जबकि यह जफर खां के मकबरे व बाग का भाग है। जयपुर म्यूजियम में रखे आगरा के प्राचीन मानचित्र में भी इसे जफर खां का मकबरा और बाग बताया गया है। इससे राज्य पुरातत्व विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

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    मुगलकालीन दो स्मारकों की जारी की थी अधिसूचना

    राज्य पुरातत्व विभाग ने 30 सितंबर को मुगलकालीन दो स्मारकों के संरक्षण को प्रारंभिक अधिसूचना जारी की थी। इनमें घटवासन मुस्तकिल के बल्केश्वर में यमुना किनारा स्थित हवेली के बुर्ज और औरंगजेब की हवेली (मुबारक मंजिल) शामिल थे। दोनों पर एक माह में आपत्ति मांगी गई थीं, लेकिन कोई आपत्ति नहीं आई। अब मुबारक मंजिल तोड़े जाने पर अधिसूचना पर सवाल उठ रहे हैं।

    जफर खां और बाग का किया था उल्लेख

    आस्ट्रियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स ऑफ आगरा में बाग-ए-हाकिम और जसवंत सिंह की छतरी के मध्य जफर खां के मकबरे व बाग का उल्लेख किया है। जफर खां औरंगजेब का वजीर था। वर्तमान में यहां गोशाला है। यहां सड़क के किनारे एएसआइ द्वारा संरक्षित लाल मस्जिद है। इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि औरंगजेब की हवेली बल्केश्वर में नहीं थी। औरंगजेब की हवेली जिस स्मारक को बताया जा रहा है, वहां जफर खां का मकबरा और बाग था।

    रविवार को आए थे विशेष सचिव

    संस्कृति विभाग के विशेष सचिव रविंद्र सिंह रविवार को आगरा आए थे। वह बल्केश्वर गोशाला के निरीक्षण को गए थे। वहां राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा चस्पा की गई अधिसूचना देखी थी। संपत्ति को अपना बताने वाले लोगों से भी उन्होंने मुलाकात की थी।