Sachin Tendulkar Deepfake Video: सचिन तेंदुलकर भी हुए डीपफेक का शिकार, डीपफेक इमेज और वीडियो की ऐसे करें पहचान
Deepfake एआई प्रोग्रामिंग किसी एक व्यक्ति के रिकॉर्ड किए गए वीडियो में दूसरे जैसा दिखने के लिए डिजाइन किया गया है। डीपफेक की मदद से डिजिटल मीडिया में आसानी से झूठी बातों को बड़े स्तर तक फैलाया जा सकता है जो पूरी सच लगती हैं। हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताने वाले हैं जिसकी मदद से आप डीपफेक वीडियो की पहचान कर सकते हैं।

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। पॉपुलर क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर डीपफेक का शिकार हुए हैं। उनकी वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब वायरल हो रहा है। इस वीडियो में वह स्काईवर्ड एविएटर क्वेस्ट गेम को प्रमोट करते नजर आ रहे हैं। इस डीपफेक वीडियो के वायरल होने के बाद उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर बयान जारी कर इसकी जानकारी दी है।
इस वीडियो को नकली बताते हुए सचिन ने लिखा कि ये आप लोगों को धोखा देने के लिए बनाया गया है। सचिन ने भारत सरकार, सूचना एंव प्रसारण मंत्री राजीव चंद्रशेखर और महाराष्ट्र साइबर पुलिस को टैग करते हुए इसे टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग बताया है। दूसरी ओर राजीव चंद्रशेखर ने सचिन तेंदुलकर के ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए कहा कि डीपफेक को लेकर हम जल्द ही कड़े प्रावधान करने जा रहे हैं।
Thank you @sachin_rt for this tweet #DeepFakes and misinformation powered by #AI are a threat to Safety&Trust of Indian users and represents harm & legal violation that platforms hv to prevent and take down.
Recent Advisory by @GoI_MeitY requires platforms to comply wth this… https://t.co/DGe2utFjBM
— Rajeev Chandrasekhar 🇮🇳 (@Rajeev_GoI) January 15, 2024
आज हम आपको डीपफेक टेक्नोलॉजी के बारे में डिटेल से बताने वाले हैं। आइए जानते हैं कैसे AI का इस्तेमाल करके फेक वीडियो कैसे बनाई जाती है। हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताने वाले हैं जिसकी मदद से आप डीपफेक वीडियो या फोटो की पहचान कर सकते हैं।
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क्या होती है डीपफेक टेक्नोलॉजी
"डीपफेक" शब्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के एक रूप से लिया गया है जिसे डीप लर्निंग कहा जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, डीपफेक डीप लर्निंग का इस्तेमाल नकली घटनाओं की तस्वीरें बनाने के लिए किया जाता है। डीप लर्निंग एल्गोरिदम खुद को सिखा सकते हैं कि डेटा के बड़े सेट से जुड़ी समस्याओं को कैसे हल किया जाए।
इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नकली मीडिया बनाने के लिए वीडियो और अन्य डिजिटल कंटेंट में चेहरों की अदला-बदली करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, डीपफेक केवल वीडियो तक ही सीमित नहीं हैं, इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अन्य फेक कंटेट जैसे इमेज, ऑडियो आदि बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
कैसे काम करती है डीप फेक टेक्नोलॉजी?
डीप फेक बनाने के लिए कई तरीके हैं। हालांकि, सबसे आम डीप न्यूरल नेटवर्क का इस्तेमाल करने पर निर्भर करता है जिसमें फेस-स्वैपिंग टेक्नोलॉजी को लागू करने के लिए ऑटोएन्कोडर्स शामिल होते हैं। डीप फेक टेक्नोलॉजी की मदद से किसी दूसरे की फोटो या वीडियो पर किसी सेलिब्रिटी वीडियो के फ़ेस के साथ फ़ेस स्वैप कर दिया जाता है।
आसान भाषा में कहें तो इस टेक्नोलॉजी की मदद से AI का इस्तेमाल करके फेक वीडियो बनाई जाती हैं, जो देखने में बिलकुल असली लगती हैं लेकिन होती नहीं है। डीप फेक बनाना शुरुआती लोगों के लिए और भी आसान है, क्योंकि कई ऐप और सॉफ्टवेयर उन्हें बनाने में मदद करते हैं। GitHub एक ऐसी जगह भी है जहां भारी मात्रा में डीपफेक सॉफ्टवेयर पाए जा सकते हैं।
डीप फेक का पता कैसे लगाएं?
चेहरे पर बारीकी से दें ध्यान
डीप फेक वीडियो का पता लगाना एक ऐसा काम है जिसे सही टूल के बिना विशेषज्ञों के लिए भी अक्सर मुश्किल लगता है। हालांकि, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ता कई सुझाव लेकर आए हैं जो आम लोगों को वास्तविक वीडियो और डीप फेक के बीच अंतर बताने में मदद कर सकते हैं।
कोई वीडियो असली है या नकली, इसकी जांच करते समय चेहरे पर बारीकी से ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाई-एंड डीपफेक हेरफेर लगभग हमेशा चेहरे का परिवर्तन होता है।
गाल और माथा पर दे ध्यान
चेहरे के जिन हिस्सों पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है वे हैं गाल और माथा। क्या त्वचा बहुत चिकनी या बहुत झुर्रीदार दिखाई देती है? क्या त्वचा की उम्र बालों और आँखों की उम्र के समान है?
इसी तरह, अनुभवी डीप फेक स्पॉटर्स के लिए आंखें और भौंहें भी स्पष्ट संकेत हो सकती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि डीपफेक वीडियो में छाया हमेशा उन जगहों पर दिखाई नहीं देती है जिनकी आप अपेक्षा करते हैं ।
होंठों का आकार और पलक झपकाने की स्पीड
डीपफेक मूंछें, साइडबर्न या दाढ़ी जोड़ या हटा सकते हैं, लेकिन वे अक्सर चेहरे के बालों के बदलाव को पूरी तरह से प्राकृतिक बनाने में असफल होते हैं।
चेहरे के मस्सों के मामले में भी यही स्थिति है, जो अक्सर डीप फेक में यूजर्स नेचुरल या रियल नहीं दिखते हैं।
होठों का आकार और रंग भी किसी वीडियो की वैलिडिटी के बारे में संकेत दे सकता है। पलक झपकाने की दर और स्पीड भी यह बता सकती है कि कोई वीडियो असली है या नकली।
डीपफेक टेक्नोलॉजी (Deepfake Technology) के खतरे
डीपफेक टेक्नोलॉजी (Deepfake Technology) की मदद से किसी को बदनाम किया जा सकता है। डीप फेक का इस्तेमाल खास तौर से औरतों और लड़कियों को निशाना बनाती है।
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किसी भी व्यक्ति की सोशल मीडिया प्रोफाइल से उसकी प्राइवेट फोटो लेकर उसके फेक पॉर्न वीडियो बनाए जा सकते हैं। किसी नेता का MMS बनाया जा सकता है।
इस टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे भाषण के वीडियो जारी किए जा सकते हैं जो उसने कभी दिए नहीं है।

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