स्मार्टफोन से लेकर वीडियो कॉलिंग तक, साइंस फिक्शन जो बने रियल लाइफ टेक्नोलॉजी
स्मार्टफोन रोबोट से लेकर वीडियो कॉल तक जैसी टेक्नोलॉजी को हम सबसे पहले फिक्शन नॉवेल और फिल्मों में देख चुके हैं। आज ये सब हकीकत बन चुके हैं। इस आर्टिकल में हम आपको उन सभी एडवांस टेक्नोलॉजी के बारे में डिटेल में बता रहे हैं जो कभी साइंस फिक्शन थी और आज ये हमारी रियल लाइफ टेक्नोलॉजी बन चुकी हैं।

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। वीडियो चैटिंग, सेल फोन, ड्रोन और रोबोट आदि से आज शायद ही कोई अपरिचित हो, लेकिन क्या आपको पता है कि ये तकनीकें कभी फिल्म, टीवी शो और पुस्तक लेखकों की कल्पनाओं का हिस्सा रह चुकी हैं। यह सही है कि फिक्शन यानी गल्प कभी हकीकत का रूप नहीं ले सकता और न ही साइंस फिक्शन से विज्ञान का कोई सीधा संबंध होता है। फिर भी हमारे जीवन को प्रभावित और सहज करने में तकनीक की भूमिका किस हद तक जा सकती है, यह साइंस फिक्शन फिल्मों में कई दशकों से दिखाने का प्रयास किया जाता रहा है।
जार्ज लुकास की 'स्टार वार्स (1977)' में पहली बार होलोग्राम टेबल और पिछली सदी के छठवें दशक में टीवी शो 'द जेटसंस' में वीडियोचैट और उड़ने वाली कारों की कल्पनाएं की गई थीं। कितना आश्चर्यजनक है कि आज की तमाम प्रौद्योगिकी की सैद्धांतिक कल्पनाएं विज्ञानियों से पहले लेखकों के दिमाग में उपजीं। निस्संदेह भविष्य को देखने की इन कल्पनाओं ने विज्ञानियों को प्रेरणा दी होंगी, जिससे वास्तविक जीवन में तकनीकों का प्रयोग और प्रभाव साकार हो सका।
स्मार्टफोन
वर्ष 1966 में' स्टार ट्रेक' में वायस कम्युनिकेशन के लिए पहली बार फिक्शनल डिवाइस' कम्युनिकेटर' का प्रयोग किया गया था। यह की पैड और स्पीकर के साथ एक ऐसी डिवाइस थी, जो पोर्टेबलहोने के साथ-साथ फ्लिप भीहोती थी। इसके 30 साल बाद मोटोरोला ने पहला मोबाइल फ्लिप फोन लांच किया। आज भी फ्लिप फोन में नए-नए प्रयोग देखने में आरहे हैं।
वीडियोकॉल
आज लोग पर्सनल कॉल और बिजनेस मीटिंग आदि के लिए जूम, फेसटाइम, वीचैट समेत अनेक वीडियो कांफ्रेंसिंग ऐप का प्रयोग करते हैं। करोड़ों लोग प्रतिदिन वॉट्सऐप वीडियो कालिंग करते हैं। वर्ष 1960 की एनिमेटेड सीरीज 'दजेटसंस' में करेक्टर वीडियो कांफ्रेंसिंग करते दिखते हैं। जर्मन फिल्म' मेट्रो पोलिस' और कई उपन्यासों में वीडियो कांफ्रेंसिंग की कल्पना की जा चुकी थी।
ऑटोनामसकार
इसाक असिमोव की 1950 में आई पुस्तक 'द इविटेबल कन्फ्लिक्ट' में ऐसी दुनिया की कल्पना थी, जहां वाहनों को नियंत्रित करने के लिए रोबोट ब्रेन का इस्तेमाल होता है। इसमें बिना मानवीय हस्तक्षेप के ये रोबोट पर नेविगेट और ट्रैफिक मानिटरिंग भी करतेहैं।
लाइव लैंग्वेज ट्रांसलेशन
डगलस एडम्स की पुस्तक में द हिचचिकर्स गाइड ट्र गैलेक्सी (1979) में एक छोटी मछली बेबेलफिश का जिक्र है, जो किसी यूजर की उसी की भाषा में अनुवाद करती है। यह आइडिया आधुनिक रियलटाइम ट्रांसलेशन टूल्स के तौर पर गूगल ट्रांसलेट और लैंग्वेज ट्रांसलेशन ईयरबड्स के रूप में दिखती है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
वर्ष 1927 में रिलीज फ्रिज लैंग की फिल्म मेट्रोपोलिस में ह्यूमनाइडरोबोट मैशिनमेश की कल्पना की गई थी, जो फैक्ट्री सेटिंग में इंसानों की तरह काम करता है। ह्यूमन और मशीनी इंटेलिजेंस को लेकर चर्चाएं आज भी जारी है। (शिवम कुमार)
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