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    Truecaller से कितना अलग है नया CNAP सिस्टम? अब कॉल आने पर दिखेगा सिर्फ 'असली' नाम

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 06:38 PM (IST)

    सालों से भारत में कॉलर का नाम जानने के लिए लोग थर्ड पार्टी एप्स जैसे Truecaller पर डिपेंडेंट रहे हैं। हालांकि, अब ये कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (CNAP) के ...और पढ़ें

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    CNAP बदल सकता है इनकमिंग कॉल्स को देखने का तरीका।

    टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। सालों से, भारत में किसी अनजान कॉलर की पहचान करना काफी हद तक थर्ड-पार्टी ऐप्स पर निर्भर रहा है। स्पैम अलर्ट से लेकर कॉलर के नाम तक के लिए लाखों मोबाइल यूजर्स Truecaller जैसे एप्लिकेशन पर भरोसा करते थे। अब इस मॉडल को सीधे टेलीकॉम नेटवर्क में बने एक सिस्टम से चुनौती मिल रही है।

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    भारत का नया कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (CNAP) फ्रेमवर्क और सिम से जुड़े सख्त नियम ये इशारा करते हैं कि अब कॉलर की पहचान का तरीका बदल रहा है। अब आपकी पहचान किसी अनजान डेटाबेस के बजाय सीधे टेलिकॉम कंपनियों (Airtel, Jio आदि) के सिस्टम से वेरिफाई की जाएगी।'

    CNAP नेटवर्क लेवल पर क्या बदलता है?

    CNAP कॉलर का रजिस्टर्ड नाम दिखाता है, जो SIM जारी करते समय कलेक्ट किए गए टेलीकॉम KYC रिकॉर्ड से लिया जाता है। ये जानकारी इनकमिंग कॉल के समय सीधे मोबाइल नेटवर्क के जरिए दी जाती है।

    एप-बेस्ड कॉलर ID सिस्टम के विपरीत, CNAP इंटरनेट कनेक्टिविटी, कॉन्टैक्ट सिंकिंग या यूजर-जेनरेटेड लेबल पर निर्भर नहीं करता है। स्क्रीन पर दिखाया गया नाम आधिकारिक टेलीकॉम डेटाबेस में रिकॉर्ड की गई आइ़डेंटिटी को दिखाता है, जिससे इसे छिपाना या बदलना मुश्किल हो जाता है। इसका मकसद आसान है: ये पक्का करना कि कॉल यूजर तक पहुंचने से पहले कॉलर की पहचान वेरिफाई हो जाए।

    CNAP पहले से ही कई सर्कल में लाइव है

    टेलीकॉमटॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, वैसे CNAP अभी भी देश भर में फैल रहा है, लेकिन टेलीकॉम ऑपरेटरों ने पहले ही कई क्षेत्रों में इस फीचर को एक्टिवेट या टेस्ट कर लिया है। Reliance Jio का सबसे बड़ा लाइव फुटप्रिंट है, जिसमें CNAP पश्चिम बंगाल, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश पूर्व और पश्चिम, राजस्थान, पंजाब, असम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में इनेबल्ड है।

    वहीं, भारती Airtel पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में CNAP का टेस्ट कर रही है। इसी तरह Vodafone Idea के पास फिलहाल महाराष्ट्र में CNAP लाइव है और तमिलनाडु में इसका आंशिक रोलआउट चल रहा है। BSNL ने पश्चिम बंगाल में सीमित उपलब्धता की सूचना दी है, जो शुरुआती चरण के डिप्लॉयमेंट का संकेत देता है।

    धीरे-धीरे रोलआउट से पता चलता है कि ऑपरेटर बड़े पैमाने पर विस्तार से पहले सटीकता, नेटवर्क परफॉर्मेंस और यूजर एक्सपीरिएंस को वेरिफाई कर रहे हैं।

    सरकार CNAP का समर्थन क्यों कर रही है?

    CNAP को बढ़ावा फोन-बेस्ड फ्रॉड, इंपर्सनेशन स्कैम और भारतीय मोबाइल नंबरों के दुरुपयोग के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच आया है। रगुलेटर्स का कहना है कि कई स्कैम इसलिए होते हैं क्योंकि फोन करने वाले की सही पहचान छिपी रहती है। साथ ही, लोग सिम कार्ड फेंक देने के बाद भी मैसेजिंग ऐप्स (जैसे WhatsApp) का इस्तेमाल कर पाते हैं, जिसका फायदा ठग उठाते हैं।

    CNAP कॉल लेवल पर आइडेंटिटी को एड्रेस करता है, जबकि SIM-बाइंडिंग ऑपरेशनल कमियों को खत्म करता है। SIM-बाइंडिंग नियमों के तहत, मैसेजिंग ऐप्स तभी काम करेंगे जब रजिस्ट्रेशन के दौरान इस्तेमाल किया गया ओरिजिनल SIM डिवाइस में एक्टिव रहेगा। अगर SIM हटा दिया जाता है या बदल दिया जाता है, तो एप को फिर से वेरिफिकेशन की जरूरत होगी। वेब और डेस्कटॉप लॉगिन की भी समय-समय पर जांच की जाएगी। कुल मिलाकर, इन उपायों का मकसद गलत इस्तेमाल को ज्यादा मुश्किल और ट्रैक करने लायक बनाना है।

    इस नए माहौल में Truecaller कहां फिट बैठता है?

    Truecaller ने भारत के स्पैम-कंट्रोल इकोसिस्टम में, खासकर क्राउड इंटेलिजेंस और स्पैम डिटेक्शन एल्गोरिदम के जरिए, एक अहम भूमिका निभाई है। इसकी ताकत सिर्फ नामों में नहीं है, बल्कि कॉल पैटर्न का एनालिसिस करने और संदिग्ध एक्टिविटी को टैग करने में है।

    CNAP इस भूमिका को खत्म नहीं करता है। इसके बजाय, ये बेसलाइन को रीडिफाइन करता है। कॉलर आइडेंटिटी, यानी किसी नंबर से जुड़ा नाम, अब टेलीकॉम नेटवर्क से आता है। Truecaller जैसे ऐप्स स्पैम की संभावना, बिजनेस वेरिफिकेशन, फ्रॉड ट्रेंड और प्रीमियम सर्विसेज जैसी वैल्यू-एडेड इंटेलिजेंस पर ज्यादा ध्यान दे सकते हैं। असल में, आइडेंटिटी नेटवर्क पर चली जाती है, जबकि एनालिसिस एप्स के पास रहता है।

    भरोसा कायम करने के तरीके में एक बुनियादी बदलाव

    CNAP का आना एक बड़े नीतिगत बदलाव का संकेत है। अब भरोसे की जिम्मेदारी बाहरी एप्स (जैसे Truecaller) के बजाय सीधे टेलीकॉम कंपनियों के सिस्टम पर होगी, जिससे एप डाउनलोड करने की झंझट खत्म हो जाएगी। कंपनियों के लिए अब ग्राहकों का सही और सटीक रिकॉर्ड रखना और भी जरूरी हो जाएगा। वहीं यूजर्स के लिए इसका फायदा ये है कि उन्हें साफ पता चलेगा कि कौन फोन कर रहा है। कुल मिलाकर, अब डिजिटल आइडेंटिटी को पहले से कहीं ज्यादा पुख्ता और सुरक्षित बनाने की तैयारी है।

    जैसे-जैसे CNAP सर्कल दर सर्कल फैलेगा इसकी सफलता, कंसिस्टेंसी, प्राइवेसी सेफगार्ड्स और सीमलेस इम्प्लिमेंटेशन पर निर्भर करेगी। लेकिन दिशा साफ है: भारत चाहता है कि कॉलर आइडेंटिटी पहले नेटवर्क द्वारा वेरिफाइड हो, न कि एप्स द्वारा अंदाजा लगाया जाए।

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