Yogini Ekadashi 2025: मनुष्य को इंद्रिय संयम तथा आत्मचिंतन का अवसर देती है योगिनी एकादशी, जानें महत्व
आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला योगिनी एकादशी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि मानव जीवन के उत्थान शुद्धि और मोक्ष का आध्यात्मिक साधन है। पद्म पुराण कहा गया है कि यह मनुष्य के कई जन्मों के पापों का शमन करने वाला और जीवन की दिशा को दिव्यता की ओर मोड़ने वाला माना गया है।

डॉ. प्रणव पण्ड्या, प्रमुख, अखिल विश्व गायत्री परिवार तथा आध्यात्मिक चिंतक। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को विशेष पुण्यकारी माना गया है। यह दिन शरीर और मन की शुद्धि के साथ आत्मा के उन्नयन का अवसर देता है। योगिनी एकादशी वह विशिष्ट तिथि है, जो योग, संयम और साधना की ओर प्रवृत्त करती है। योगिनी का अर्थ है - योग में स्थिर करने वाली। यह व्रत मनुष्य को अपनी इन्द्रियों को संयमित करने, श्रद्धा और आत्मचिंतन का अवसर प्रदान करता है, जिससे वह अपने जीवन के मूल उद्देश्य की दिशा में अग्रसर हो सके।
योगिनी एकादशी का महत्व
भगवान विष्णु के भक्तों के लिए योगिनी एकादशी का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि पांडव भाइयों में भीम को छोड़कर सभी हर महीने की दोनों एकादशी तिथियों पर व्रत रखते थे। एक बार आषाढ़ की योगिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि जो जातक श्रद्धापूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत करते हैं एवं भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, उन्हें सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सभी सुख भोगने के बाद ईश्वर की शरण की प्राप्ति होती है।
यह कथा व्रत की शक्ति को दर्शाती है और यह सिखाती है कि कर्तव्यच्युत जीवन, चाहे वह कितना भी सुंदर क्यों न हो, अंततः विनाश की ओर ही जाता है। परंतु आत्म परिवर्तन और भक्ति से पुनः उत्थान संभव है।
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जरूर करें ये काम
आज के इस दौर में जब व्यक्ति भौतिकता की अंधी दौड़ में अपनी आत्मिक शांति, कर्तव्यबोध और नैतिक मूल्य खोता जा रहा है, तब ऐसे व्रत उसे आत्मविश्लेषण, संयम और संतुलन का मार्ग दिखाते हैं। योगिनी एकादशी की यह साधना केवल मोक्ष की नहीं, अपितु जीवन में विवेक, जिम्मेदारी और अध्यात्म के पुनर्जागरण की साधना है। योगिनी एकादशी जीवन की दिशा को नवीन ऊर्जा, नई दृष्टि और नई प्रेरणा देने वाला पर्व है।
यह दिन हमें आत्मविस्मृति से आत्म स्मृति की ओर, भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। इस दिन एकादशी व्रत के साथ तुलसी की माला के साथ सतोगुण की प्रधानता वाली माता गायत्री की आराधना करने का भी विधान है।
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