Sheetala Saptami 2025: कब और क्यों मनाई जाती है शीतला अष्टमी? यहां जानें सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
स्वच्छता का यह संदेश आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है जब हम संक्रमण और बीमारियों से बचने के लिए अधिक सावधान रहते हैं। माता शीतला का संदेश (Sheetala Saptami 2025) हमें यह सिखाता है कि अपने आसपास की स्वच्छता बनाए रखना और पर्यावरण का ध्यान रखना कितनी आवश्यक बात है। माता शीतला की उपासना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

डा. प्रणव पण्ड्या (अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख व आध्यात्मिक चिंतक)। आदिकाल से ही माता शीतला का अत्यधिक माहात्म्य रहा है। आधुनिक युग में भी माता शीतला की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण सर्वथा प्रासंगिक है। भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है। माता शीतला (Sheetala Saptami 2025 Kab Hai) स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी है।
स्वच्छता का यह संदेश आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है, जब हम संक्रमण और बीमारियों से बचने के लिए अधिक सावधान रहते हैं। माता शीतला का संदेश हमें यह सिखाता है कि अपने आसपास की स्वच्छता बनाए रखना और पर्यावरण का ध्यान रखना कितनी आवश्यक बात है। माता शीतला की उपासना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह हमारे जीवन में स्वच्छता और स्वास्थ्य के महत्व को उजागर करती है।
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हिंदू मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला को संक्रामक रोगों और बीमारियों से सुरक्षा देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। खासकर गर्मी के मौसम में माता शीतला की पूजा से शरीर की स्वच्छता और पर्यावरण की रक्षा की जाती है, जो आज भी हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्कंद पुराण में माता शीतला का वाहन गर्दभ है। वे अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। जो चेचक का रोगी की परेशानी को हर देते हैं। सूप से रोगी को हवा की जाती है। झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं।
नीम के पत्ते फोडों के दर्द से आराम मिलता है। मान्यता है कि शीतला देवी के आशीर्वाद से परिवार में रोगों का निवारण होता है, खासकर ऐसे रोग जो विशेष रूप से गर्मी के मौसम में होते हैं, जैसे कि दाह ज्वर (बुखार) और पीत ज्वर आदि। उनकी पूजा हिंदू समाज में विशेष रूप से पौराणिक कथाओं, रीति-रिवाजों और पारंपरिक उपायों के माध्यम से की जाती है।
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स्कंद पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसकी रचना भगवान शंकर ने की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है और उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
हमारे पौराणिक ग्रंथों में- वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थां दिगम्बरः, मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाः। कहकर उनकी वंदना गाई गई है। माता शीतला की पूजा का उद्देश्य शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार लाना है और हमें अपनी दैनिक जीवनशैली में स्वच्छता और सादगी को अपनाना चाहिए, ताकि शारीरिक और मानसिक रूप से हम स्वस्थ और सुखी रहें। शीतला देवी की पूजा का एक गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को, बल्कि मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देती है।
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