अपने बच्चों को इस तरह दें संस्कार, जानिए ब्रह्मा कुमारी शिवानी जी की सलाह
एक समृद्ध समाज व सभ्यता का आधार उसकी सभ्य संस्कृति है। लोगों के सभ्य संस्कारों से ही सभ्य संस्कृति बनती है। बच्चों और युवाओं के ऊंचे चरित्र और संस्कारों के आधार पर समाज संस्कृति एवं भविष्य उज्ज्वल बनता है। चरित्र निर्माण की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रभावशाली भूमिका माता-पिता की ही होती है। अच्छे संस्कार देना माता-पिता का दायित्व है।

ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता) | सबसे अधिक उपयोगी बात यह है कि माता-पिता बच्चों के सलाहकार बनें। क्योंकि, जब बच्चे समस्याओं का सामना करते हैं, तो पीड़ा में होते हैं और उन्हें सहयोग की आवश्यकता होती है। बच्चा अपने बड़ों से प्यार, सहारा और अपनापन पाने आता है। उसे लगता है कि उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा। हो सकता है कि बच्चे ने हल पहले से निकाल लिया हो या फिर उसका कोई हल ही न हो। लेकिन, उस समय बच्चा चाहता है कि कोई उसके घाव पर प्यार और समझदारी से मरहम लगा दे।
बच्चों के साथ न करें ये काम
अकसर बच्चों की गलतियों पर माता-पिता क्रोधित होते हैं, जो होना नहीं चाहिए। बच्चे को डांटने से उसे क्या ऊर्जा मिल रहा है? उसे प्रेम प्यार से समझने और समझाने के बजाय गुस्सा, उसकी निंदा हानिकारक हो सकता है। अगर बच्चा अपने माता-पिता के सामने खुलकर बात नहीं कर पाता, तो उसका पीड़ा का उपचार नहीं हो पाता। फिर वह बाहरी मदद की तलाश करता है।
अगर कोई सलाहकार उसकी बात सुनकर, उसकी आलोचना किए बिना हल सुझा सकता है, तो माता-पिता क्यों नहीं उसके सलाहकार बन सकते हैं। जब हम आलोचना वा प्रतिक्रिया का रवैया अपनाते हैं तो हमें गुस्सा आता है, दिल को ठेस पहुंचाती है। इससे हमारी स्नेह की ऊर्जा बाधित होती है। अक्सर माता-पिता बच्चों से कहते हैं, 'हम तुम्हें गलती करने पर डांटते हैं, क्योंकि हम तुमसे प्यार करते हैं'। परंतु, एक बार में दो ऊर्जाओं का लेन-देन संभव नहीं है।
बच्चों से कहें ये बात
माता-पिता बच्चे को फटकारते समय उसे स्नेह नहीं दे सकते हैं। माता पिता की भूमिका है कि बच्चे की जीवन की देख-रेख करें, उसे सलाह दें, और सबसे बड़ी बात है कि उसे अपना स्नेह और सहयोग दें। कई बार, माता-पिता चेतावनी देते हैं, 'ऐसा करोगे तो सारी जिंदगी खुश नहीं रहोगे।' यदि बच्चा अपने निर्णय पर अडिग है, तो माता-पिता को पुराने सोच और नकारात्मक शब्दावली का उपयोग नहीं चाहिए। उन्हें कहना चाहिए, 'अगर तुम फिर भी अपने फैसले पर अटल हो, तो हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है'।
इस तरह दें संस्कार
इन सभी बातों के अतिरिक्त माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों को सही माहौल दें। ताकि बच्चों का गलत संगत या माहौल से बचाव हो और बच्चों का सर्वांगीण विकास होता रहे। उपदेश से नहीं, बल्कि उदाहरण से उन्हें समझाएं। जैसे कि माता-पिता स्वयं स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं, ताकि बच्चे भी प्रेरित हों।
संभव हो तो वे स्वयं प्रतिदिन व्यायाम करें, नियमित शुभ व सकारात्मक चिंतन, आध्यात्मिक मंथन, परमात्म ध्यान व सात्विक खान-पान घर में अपनाएं। आपको देखकर, सुनकर एवं आपके स्वस्थ व सुखदाई स्वभाव, संस्कार, व्यवहार एवं घर की परिवर्तित सुखद माहौल से प्रभावित व प्रसन्न होकर आपके बच्चे भी आपका अनुकरण करेंगे। इसी को संस्कार देना कहते हैं।
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