Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Sheetala Ashtami 2024: शुद्धता की देवी मां शीतला शरण आए जरूरतमंदों का करती हैं कल्याण

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 01 Apr 2024 03:40 PM (IST)

    पौराणिक मान्यता है कि जो व्यक्ति माता की आराधना पूर्णमनोयोग से करता है उससे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं जिससे व्रती के कुल में दाहज्वर पीतज्वर विस्फोटक फोड़े नेत्रों के रोग शीतला की फुंसियों के चिह्न तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि वह अनेक बीमारियों से हमारी व हमारे परिवार की रक्षा करती हैं।

    Hero Image
    Sheetala Ashtami 2024: शुद्धता की देवी मां शीतला शरण आए जरूरतमंदों का करती हैं कल्याण

    डा. प्रणव पंड्या (प्रमुख, अखिल विश्व गायत्री परिवार, हरिद्वार)। घरों में माता शीतला की किसी न किसी रूप में पूजा-आराधना होती है। शीतला माता यानी पर्यावरण की शुद्धीकरण की देवी, जो सृष्टि को विषाणुओं से बचाने का संदेश देती है। माता को साफ-सफाई, स्वच्छता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है। माता की छाया शीतलता प्रदान करने वाली और पीड़ा हरने वाली है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्कंद पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। उन्हें देवी पार्वती के अवतार के रूप में माना जाता है। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया है-

    वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्॥

    मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्॥

    अर्थात गर्दभ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। माता शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी है। पौराणिक मान्यता है कि जो व्यक्ति माता की आराधना पूर्णमनोयोग से करता है, उससे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं, जिससे व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, फोड़े, नेत्रों के रोग, शीतला की फुंसियों के चिह्न तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं। शीतला माता को अत्यंत शीतल माना जाता है और मान्यता है कि वह अनेक बीमारियों से हमारी व हमारे परिवार की रक्षा करती हैं।

    यह भी पढ़ें: ज्ञान प्राप्त करके सभी आसक्तियों का त्याग करना ही मोक्ष है

    विचारवान कहते हैं कि जो मानव शीतला माता की शक्ति संचय करते हुए अपनी दुर्बलता का परिहार न कर सके, उनके गुणधर्म शीतलता व स्वच्छता को अपना न सके, तो उसकी साधना-उपासना अधूरी मानी जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित अनेक राज्यों में शीतला माता के सिद्ध पीठ हैं, जहां लोग अपने कष्ट हरने की याचना के साथ पहुंचते हैं।

    शीतला माता के स्वरूप के प्रतीक का विशेष अर्थ है। माता के वस्त्रों का रंग लाल होता है, जो खतरे और सतर्कता की ओर इशारा करता है। शीतला माता की चार भुजाएं है। उनके भुजाओं में झाड़ू, घड़ा, सूप और कटोरा है, जो यह दर्शाता है कि माताजी सदैव स्वच्छ और शुद्धता के साथ रहना पसंद करती हैं। इसीलिए शीतला माता को शुद्धता की देवी भी कहा जाता है। मां हमेशा शुद्धता व पवित्रता का संदेश देती हैं और शरण आए जरूरतमंदों का कल्याण करती हैं।

    यह भी पढ़ें: सनातन संस्कृति में विचारों, विश्वासों और खोजने की विविधता रही है

    आज के समय में मानव मात्र को अपने विचारों और कर्तव्यों में शुद्धता व पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। जिससे तन और मन शुद्ध रहेगा। तन-मन की शुद्धता से ही अच्छे विचार आएंगे, तद्नुसार ही कार्य कर पाएंगे। हम सभी को माता शीतला से उनके प्रतीक चिह्नों से प्रेरणा लेकर अपने व्यावहारिक जीवन में भी स्वच्छता व शीतलता अपनाना चाहिए।