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    New Year 2026: नए साल में इन नेगेटिव आदतों को कहें 'बाय-बाय, चमक उठेगा सोया हुआ भाग्य

    Updated: Mon, 29 Dec 2025 02:22 PM (IST)

    वर्ष 2026 को हमें संकल्प लेना चाहिए कि हमारी जिह्वा से निकले शब्द किसी के हृदय को आहत न करें, अपितु औषधि का कार्य करें। वाणी में सरस्वती का वास हो और ...और पढ़ें

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    हमें प्रतिदिन कुछ क्षण मौन और ध्यान के लिए सुरक्षित रखने चाहिए

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    आचार्य नारायण दास (आध्यात्मिक गुरु, श्रीभरत मिलाप आश्रम, मायाकुंड, ऋषिकेश)। नववर्ष का सूर्योदय हमारे संकल्पों की दृढ़ता पर निर्भर करता है। यदि हमारा संकल्प सुमेरु पर्वत के समान अडिग है, तो प्रारब्ध की बाधाएं भी मार्ग दे देती हैं।

    संकल्प केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि प्राणों की आहुति है। आइए, इस नूतन वर्ष में हम स्वयं को घृणा, ईर्ष्या और संकीर्णता के कारागार से मुक्त कर प्रेम, करुणा और न्याय के मुक्त गगन में विचरण करने का संकल्प लें।

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    हर व्यक्ति अपनी-अपनी दृष्टि से संसार को परिभाषित करता है। चराचर संसार में सबसे बड़ी विस्मृति हमारे अपने 'स्व' की है। हमें संकल्प लेना चाहिए, हम अपने "स्व" का सदा निरीक्षण करते रहें। जब हम भीतर से बदलते हैं, तभी युग बदलता है। यही नव वर्ष का वास्तविक संदेश और सार्वभौमिक सत्य है।

    जिस प्रकार एक शांत सरोवर में चंद्रमा का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है, उसी प्रकार शांतचित्त में परमात्मा का प्रकाश परिलक्षित होता है। हमें प्रतिदिन कुछ क्षण मौन और ध्यान के लिए सुरक्षित रखने चाहिए, ताकि हम अपनी इंद्रियों के अश्वों को संयम की लगाम से नियंत्रित कर सकें। यह संकल्प हमें 'भ्रम' से 'बोध' की ओर ले जाएगा।

    कृतज्ञता हृदय का सबसे सुंदर पुष्प है। हम अक्सर उन वस्तुओं के लिए विलाप करते हैं, जो हमारे पास नहीं हैं और उन वरदानों को विस्मृत कर देते हैं, जो प्रकृति ने हमें निःशुल्क प्रदान किए हैं। हम यह संकल्प लें कि हम विवाद के स्थान पर साधुवाद को अपने जीवन का आदर्श बनाएंगे। जब हृदय कृतज्ञता के रस से सराबोर होता है, तब अभाव में भी सद्भाव का उदय होता है। हमारी वाणी ही हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है।

    वर्ष 2026 को हमें संकल्प लेना चाहिए कि हमारी जिह्वा से निकले शब्द किसी के हृदय को आहत न करें, अपितु औषधि का कार्य करें। वाणी में सरस्वती का वास हो और कर्मों में पुरुषार्थ की सुगंध। आलस्य का परित्याग कर निष्काम कर्मयोग की ओर बढ़ना ही काल के क्रूर प्रहारों से बचने का एकमात्र मार्ग है। इस वर्ष दृढ़ संकल्प लें कि हम कुत्सित मानसिकता और कुविचारों को त्यागकर, श्रेष्ठ और लोकपकारी कार्यों में समय व्यतीत करेंगे।

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