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    Mahavir Jayanti 2025: महावीर जयंती कब है? यहां जानें धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 07 Apr 2025 12:31 PM (IST)

    महावीर (Mahavir Jayanti 2025) होने का अर्थ है स्वयं ही सत्य का संधान करना स्वयं को जानने का प्रयास करना शरीर की आसक्ति को समाप्त कर शुद्ध-बुद्ध आत्मा का अनुभव करना। महावीर होने का अर्थ है जब तक संसार में हैं तब तक यहां रहते हुए भी निर्विकार रहना। संसार में उसी तरह निर्लिप्त रहना जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी उससे भिन्न रहकर खिलता है।

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    Mahavir Jayanti 2025: महावीर जयंती की जीवनी

    प्रो. अनेकांत कुमार जैन (आचार्य, जैन दर्शन विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय)। अंतिम तीर्थंकर महावीर भारत वर्ष में जन्मे ऐसे परम वीतरागी साधक थे, जिन्होंने प्रत्येक आत्मा को परमात्मा बनाने का पथ प्रशस्त किया। धर्म के नाम पर व्याप्त अन्यान्य परंपराओं की समीक्षा करके धर्म की सनातन परंपरा को विश्व के समक्ष रखा।

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    महावीर स्वामी के पांच नाम प्रसिद्ध हैं- वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्धमान और महावीर। इन सभी नामकरण के पीछे अन्यान्य कथाएं हैं, जिनमें उनके विशिष्ट गुण के कारण समय-समय पर उनके ये नाम पड़ते गए। जैसे कि कहा जाता है कि एक सर्प पर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें वीर नाम से पुकारा गया और एक मदोन्मत्त हाथी को वश में करने के कारण उन्हें अतिवीर और महावीर कहा गया, किंतु मुझे लगता है कि महज ये कथाएं और कारण उन्हें महावीर नहीं बनाते हैं, बल्कि महावीर को व्यापक फलक पर समझने की आवश्यकता है।

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    ईसा पूर्व छठी शताब्दी में पूरे विश्व के धर्मों में एक ही मान्यता थी कि ईश्वर जैसा चाहता है, वैसा ही होता है, मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है। ईश्वर की इस अवधारणा पर वैशाली के राजकुमार को संशय हुआ और उन्होंने सत्य के संधान की राह पकड़ी। उन्होंने तप किया और कैवल्य ज्ञान होने और सर्वज्ञ होने की दशा में उन्होंने जाना कि ईश्वर कोई दूसरा व्यक्ति नहीं, बल्कि मनुष्य स्वयं है। उन्होंने आत्म-अनुसंधान के बल पर यह उद्घोषणा की कि ईश्वर सत्-चित्-आनंद स्वरूप में रहता है और हमारे माध्यम से ही कार्य करता है।

    महावीर होने का अर्थ है स्वयं ही सत्य का संधान करना, स्वयं को जानने का प्रयास करना, शरीर की आसक्ति को समाप्त कर शुद्ध-बुद्ध आत्मा का अनुभव करना। महावीर होने का अर्थ है जब तक संसार में हैं, तब तक यहां रहते हुए भी निर्विकार रहना। संसार में उसी तरह निर्लिप्त रहना जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी उससे भिन्न रहकर खिलता है। करुणा, दया और सेवा की भावना से सभी जीवों के जीने के अधिकारों की रक्षा करना, अपने तुच्छ सुख के लिए उनकी जान नहीं लेना। कर्तृत्व बुद्धि न होना, जगत के स्वतः परिणमन को सहज स्वीकार करना।

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    प्रत्येक द्रव्य को स्वतंत्र मानना। दूसरों को क्षमा कर देना और अपने अपराधों की क्षमा मांगना। प्रत्येक जीव में परमात्मा का दर्शन करना। सापेक्ष दृष्टिकोण, सापेक्ष कथन शैली और समीचीन दृष्टि जिसे सैद्धांतिक भाषा में अनेकांत, स्याद्वाद और नयवाद कहा जाता है। भारतीय ज्ञान परंपरा के विकास में महावीर स्वामी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।