Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Hanuman Janmotsav 2025: कब और क्यों मनाया जाता है हनुमान जन्मोत्सव? यहां पढ़ें वीर बजरंगी की गाथा

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 06 Apr 2025 09:44 PM (IST)

    हनुमान जी अपनी हर एक सांस में प्रभु श्रीराम का नाम लेते हैं। यह कोई आसान बात नहीं है। इसके लिए योग की गहरी जानकारी होनी चाहिए। इस प्रकार से हनुमान जी को योग विज्ञान की बहुत अच्छी जानकारी थी। हनुमान जी के पास गजब का विश्वास था। हनुमान का यह विश्वास प्रभु श्रीराम में था। राम जी में विश्वास रखते हुए हनुमान ने कई सारे बड़े-बड़े कार्य कर डाले।

    Hero Image
    Hanuman Janmotsav 2025: हनुमान जी को कैसे प्रसन्न करें?

    प्रसिद्ध कथावाचक, मोरारी बापू। रामायण के रचयिता वाल्मीकि केवल योग वाले नहीं हैं, वह प्रयोग वाले आदमी हैं। उनके पास थ्योरी भी है और प्रैक्टिकल भी। वस्तुत: वह विज्ञानी हैं। जिन हनुमानजी ने अपना सीना फाड़कर राम के दर्शन करवाए, उन हनुमान को भी विज्ञानी कहा गया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    धर्म और विज्ञान को एक साथ चलना चाहिए। विज्ञान के बिना संसार में कभी समता नहीं आ सकती। वाल्मीकि जी और हनुमान जी को आप जोड़ें तो दोनों परम विज्ञानी हैं, लेकिन उनके विज्ञान में संवेदना थी और संवेदना धर्म का स्वरूप है। महात्मा गांधी ने कहा था कि संवेदन शून्य विज्ञान सामाजिक पाप है। विज्ञान के बिना संसार में समता कभी नहीं आ सकती है। सूरज विषमता नहीं ला सकता। समुद्र कभी विषमता नहीं ला सकता।

    कोई एक वैज्ञानिक खोज करें तो खोज करने वाले परिवार को पूरे विश्व का आशीर्वाद मिलता है। क्या भक्ति और विज्ञान साथ-साथ नहीं चल सकते? मैं कहता हूं कि साथ चलने ही चाहिए। राम सम हैं, राम धर्म हैं और धर्म, विज्ञान एक साथ चलना चाहिए। ये दोनों एक पथ हैं और उस पर हम लोगों को चलना चाहिए।

    हनुमानजी विज्ञानी हैं। सोचिए, सीता जी की खोज उनको क्यों सौंपी गई? विज्ञानी ही खोज सकता है। जगत का कल्याण करने वाली वह परम शक्ति कहां हैं, उसकी खोज विज्ञानी के अलावा कोई नहीं कर सकता है। ज्ञानी तो केवल पढ़ेगा। ज्ञान मोक्ष देता है, लेकिन समाज के लिए जिस कल्याण, जिस उत्कर्ष, जिस दिव्य दृष्टि की आवश्यकता है, उसके लिए कोई विज्ञानी चाहिए। इसलिए हनुमानजी को ही ये काम सौंपा गया।

    वाल्मीकि के आश्रम में ही क्यों जानकी को छोड़ने गए? ऋषि-मुनि तो कई थे, लेकिन ऊर्जा साथ में जाएगी तो विस्फोट करेगी। इसलिए एक विज्ञानी के यहां ऊर्जा को सुरक्षित रखा गया और ऊर्जा का परिणाम यह आया कि परमशक्ति, जगदंबा, जानकी ने दो पुत्र दिए। विश्व को परम ऊर्जा का परिणाम मिला। धर्म और विज्ञान को एकसाथ ही चलना चाहिए। यह आवश्यक है।

    हनुमान जी का रूप भले ही बंदर का हो, लेकिन वे बड़े ही सुंदर विज्ञानी हैं। 21वीं सदी में हनुमान जी को विज्ञानी रूप में याद करना चाहिए। लोग हनुमान जी को तेल, उड़द दाल इत्यादि चीजें चढ़ाकर प्रतिमा को गंदा क्यों करते हैं? पुरानी परंपराओं को भूलकर अब हमें हनुमान को नए तरीके से याद करना चाहिए। विशेषकर युवाओं को हनुमान जी को केवल धार्मिक रूप में ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए।

    हनुमान को विज्ञानी बताने के पीछे पांच कारण मैं बताता हूं। हनुमान जी को व्यास (विस्तार) विज्ञान का ज्ञान था। हनुमान जी आवश्यकता पड़ने पर अपने रूप को बड़ा कर लेते थे। लंका दहन के समय देखा गया कि हनुमान जी की पूंछ काफी विशाल हो गई थी।

    हनुमान जी को समास (सूक्ष्म) विज्ञान का ज्ञान था। रामायण में देखा गया कि लंका जाते समय समुद्र पार करने के लिए हनुमान जी ने अति सूक्ष्म रूप धारण कर लिया था। यह सूक्ष्म विज्ञान की जानकारी के बिना नहीं होता।

    हनुमान जी अपनी हर एक सांस में प्रभु श्रीराम का नाम लेते हैं। यह कोई आसान बात नहीं है। इसके लिए योग की गहरी जानकारी होनी चाहिए। इस प्रकार से हनुमान जी को योग विज्ञान की बहुत अच्छी जानकारी थी। हनुमान जी के पास गजब का विश्वास था।

    हनुमान का यह विश्वास प्रभु श्रीराम में था। राम जी में विश्वास रखते हुए हनुमान ने कई सारे बड़े-बड़े कार्य कर डाले। चाहे विशाल समुद्र को पार करना हो, सीता जी का पता लगाना हो या फिर हिमालय पर्वत से संजीवनी लाकर लक्ष्मण जी की जान बचानी हो।

    यह सब हनुमान जी के विश्वास विज्ञान की वजह से ही हो सका। भजन भी एक विज्ञान है। हनुमान जी को भजन विज्ञान की जानकारी थी। हनुमान जी निरंतर अपने प्रभु श्रीराम का भजन करते रहते थे। यह कोई साधारण बात नहीं है।

    हनुमान का जीवन दर्शन रामकथा में बहुत से संदेश देता है।

    यह भी पढ़ें: प्रकृति में जीने का अभ्यास करें, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    अशोक वाटिका में सीता जी व्यग्र हैं, तब हनुमान जी वहां पहुंच जाते हैं। इस प्रसंग के संदर्भ से मैं बार-बार कहता हूं कि हमारे जीवन में कोई समस्या आए, इससे पहले ईश्वर समाधान भी भेज देते हैं। कोरोना काल में हरिकथा के दौरान मैं पूरे भरोसे के साथ कहता रहा हूं कि अगर कोरोना कोई रोग है तो इसका इलाज भी जरूर होगा, जरूर होगा।

    आग यदि समस्या है तो उसका समाधान पानी है। कहीं आग लगी हो, किसी का घर जल रहा हो तो उसका समाधान क्या है? रोना? सीना पीटना? अवसादग्रस्त हो जाना? क्रोध करना? भाग जाना? नहीं, यह तो कायरता है। आग का समाधान पानी है।

    रोग का समाधान स्वास्थ्य है, आरोग्य है। बहुत ठंड लग रही है तो उसका समाधान उष्णता है, लेकिन मन एक ऐसा तत्व है कि उसकी समस्या का समाधान दूसरा कुछ नहीं, स्वयं मन ही है। जो मन नकारात्मक है, वही मन सकारात्मक भी है। इसलिए ये बात सुनिश्चित है कि मन यदि समस्या है तो समाधान भी मन ही है।

    सभी बंदर-भालू सीता जी की खोज के लिए निकले हैं। नील, अंगद, जामवंत और हनुमान दक्षिण दिशा में जाते हैं। संपाती से जानकारी मिलती है कि सीता जी लंका की अशोक वाटिका में हैं लेकिन वानरों को समुद्र लांघने में संदेह है।

    उस वक्त हतोत्साह हुए वानरवृंद को जामवंत उत्साह प्रदान करते हैं और खामोश बैठे हनुमान जी का आह्वान करते हैं- पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।। कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होई तात तुम्ह पाहीं।। आप तो पवन पुत्र हो।

    आप बुद्धि विवेक विज्ञान की खदान हो। इस जग में ऐसा कठिन कार्य क्या है जो आप से न हो सके। रामकार्य के लिए ही आपका अवतार हुआ है। जामवंत के ऐसे वचन सुनते ही हनुमान जी पर्वताकार होते हैं और सिंहनाद कर कहते हैं कि इस खारे समुद्र को तो मैं खेल-खेल में लांघ सकता हूं।

    यह भी पढ़ें: कब और क्यों स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की? जानें महत्वपूर्ण बातें

    आज के संदर्भ में कहूं तो जो लोग मानसिक रूप से थके हुए या किसी विषाद में नजर आ रहे हैं, परिवार के लोगों को, मित्रों को उनकी हिम्मत बढ़ानी चाहिए और समझाना चाहिए। कोई विपत्ति चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, ईश्वर से बड़ी नहीं हो सकती।

    मानस के सातों सोपान हमें विश्वास से विश्राम की यात्रा कराते हैं और हमारे जीवन के संदेह, मोह, भ्रम मिटाते हैं। जन्म और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं हैं लेकिन जीवन हमारे हाथ में है। हम जीवन को नकारात्मक सोच से नष्ट करने के बजाय सकारात्मक सोच से समृद्ध करें। यही हनुमान जयंती का संदेश है।