Teacher's Day 2025: विद्या से जीवन, जगत और जगदीश की प्राप्ति होती है
एक शिक्षक का मुख्य उद्देश्य शिष्य को ज्ञान प्रदान करना और उसके जीवन की सफलता के लिए उसे गति-मति प्रदान करना है। गुरुजन शिष्य को आत्म-ज्ञान की ओर ले जाते हैं तथा उसके अंतस की शक्ति का बोध कराते हैं जिससे जीवन के मूल उद्देश्य को समझकर वह परमार्थिक जीवन जीते हुए मोक्षपद को वरण कर लेता है।

आचार्य नारायण दास (श्रीभरत मिलाप आश्रम, मायाकुंड, ऋषिकेश)। गुरुदेव और शिक्षकवृंद दोनों ही मानव समाज के पथ प्रदर्शक हैं। अपने शिष्य के विकास मार्ग को सुगम और विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गुरुगोविंद द्वारा शिष्य को मानव से महामानव बनाने में और शिक्षक के द्वारा शिष्य को राष्ट्र और समाज के लिए योग्य बनाने में अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं।
शिक्षकगण समाज रूपी वाटिका का संजीवन-रस प्रदान करने वाले माली हैं, किंतु गुरुजन वाटिका में लगे वृक्षों और पौधों की गुणवत्ता को संवर्धित-संरक्षित करने वाले परम गुरु हैं। भारतीय वैदिक धर्मशास्त्रों ने गुरुदेव को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संज्ञा से अलंकृत किया है :
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।"
शिक्षक हमें ज्ञान प्रदान करते हैं, विभिन्न विषयों की जानकारी देते हैं। साथ ही जीवन और जगत में कैसे सामंजस्य स्थापित हो, इसका समुचित ज्ञान प्रदान करते हैं। गुरुदेव शिष्य को आत्म-ज्ञान प्रदान करते हैं, जिससे शिष्य के मनोमस्तिष्क में सदा सबके लिए निष्काम भाव से कल्याण के सद्भाव का प्रेमसागर लहराता रहता है।
"आचार्यदेवो भव"- यह वाक्य भी शिक्षकों के महत्व को दर्शाता है, जो हमें ज्ञान और संस्कार प्रदान करते हैं। गुरुप्रदत्त आध्यात्मिक विद्या से जीवन, जगत और जगदीश के यथार्थ तत्व को बोधत्व प्राप्त हो जाता है, जिससे शिष्य स्वयं का और जनसामान्य के भी सामाजिक और आध्यात्मिक मार्ग को प्रशस्त करता है।
एक शिक्षक का मुख्य उद्देश्य शिष्य को ज्ञान प्रदान करना और उसके जीवन की सफलता के लिए उसे गति-मति प्रदान करना है। गुरुजन शिष्य को आत्म-ज्ञान की ओर ले जाते हैं तथा उसके अंतस की शक्ति का बोध कराते हैं, जिससे जीवन के मूल उद्देश्य को समझकर वह परमार्थिक जीवन जीते हुए, मोक्षपद को वरण कर लेता है। गुरुजन शांति मार्ग के श्रेष्ठ पथप्रदर्शक हैं। मानव जीवन की सार्थकता किसमें है, इसका उपदेश करते हैं। गुरुदेव का मुख्य उद्देश्य है अपने शिष्य को आत्म-ज्ञान कराना और उसके जीवन को सन्मार्ग की ओर ले जाना।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि गुरुदेव और शिक्षक दोनों ही हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन दोनों के बीच कुछ मूलभूत अंतर भी हैं। शिक्षक हमें ज्ञान प्रदान करके शिक्षित करते हैं, जबकि एक गुरुदेव हमें दीक्षा से संपन्न कर आत्म-ज्ञान कराते हैं। हमें दोनों की आवश्यकता है। हमें दोनों के महत्व को समझना चाहिए। दोनों ही नित्यवंदनीय और पूजनीय हैं।
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