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    Holi 2025: प्रेम व भाईचारे को बढ़ाने का त्योहार है होली, इन बातों का जरूर रखें ध्यान

    पर्यावरण को संभाल कर रखना हम सबका दायित्व है। होली पर विशेष रूप से पर्यावरण की रक्षा होनी चाहिए। पूरे देश पूरी दुनिया को कहना चाहता हूं कि होली इस तरह से खेलें कि किसी को तकलीफ न हो। होली के कारण कहीं भी किसी तरह का संघर्ष नहीं होना चाहिए। अकारण कोई विवाद न हो इसका ध्यान सभी को रखना चाहिए।

    By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 10 Mar 2025 01:21 PM (IST)
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    Holi 2025: रंगों के त्योहार होली का धार्मिक महत्व

    मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। होली बुराइयों को जलाने और प्रेम व भाईचारे को बढ़ाने का त्योहार है। हम और आप, अपने मन और समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त कर नए सिरे से जीवन आरंभ करें। होली किसी भी प्रकार की वर्ण व वर्ग व्यवस्था की दूरियों को मिटाता है। इन दूरियों को मिटाना आज के समय की एक बड़ी आवश्यकता है।

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    होली प्रकृति के निकट आने का पर्व है। हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। हमारे यहां प्रकृति को औषधि कहा गया है। सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, वायु, जल  सब औषधियां हैं, लेकिन हम इनको भूल गए हैं। इन्हें प्रदूषित कर दिया है। हम इनकी देखभाल करें। खासतौर पर होली पर पानी नष्ट न करें। प्रेम से फूल और अबीर-गुलाल की होली खेलें।

    ऐसे-वैसे रंग और केमिकल का इस्तेमाल न करें, जिनसे किसी की आंखों को नुकसान हो या शरीर को कोई तकलीफ हो। होली ऐसे खेलना कि अस्वच्छता न हो। न अंदर, ना बाहर। शरीर भी स्वच्छ रहे और मन भी। होली जरूर खेलना। मुबारक हो होली मगर कीचड़ और आयल जैसी वीभत्सता ना आ जाए, इसका भी ध्यान रखना। वातावरण स्वच्छ रहना चाहिए।

     पर्यावरण को संभाल कर रखना हम सबका दायित्व है। होली पर विशेष रूप से पर्यावरण की रक्षा होनी चाहिए। पूरे देश, पूरी दुनिया को कहना चाहता हूं कि होली इस तरह से खेलें कि किसी को तकलीफ न हो। होली के कारण कहीं भी किसी तरह का संघर्ष नहीं होना चाहिए। अकारण कोई विवाद न हो, इसका ध्यान सभी को रखना चाहिए।

    कोरोना के समय होली पर वायरस से बचने के लिए मैं सजग रहने के लिए कहता था। उस समय सोशल डिस्टेंसिंग की बात बहुत कही जाती थी। होली पर मैं याद दिला दूं कि इस सूत्र को व्यास पीठ से दशकों से कहा जा रहा है कि सभी से प्रामाणिक डिस्टेंस बनाकर रखना चाहिए।

    होली पर यह और भी आवश्यक हो सकता है। हम होली खेलें, लेकिन एक प्रामाणिक दूरी सभी से बनाकर रखें। न तो किसी के बहुत ज्यादा प्रभाव में आएं और ना ही बहुत ज्यादा किसी को प्रभावित करने की कोशिश करें। यह सहज जीवन जीने का भी एक सूत्र भी है।

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    मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि बापू क्या आप होली खेलते हैं। मैं कहता हूं कि हां, मैं तो रोज ही होली खेलता हूं। मेरी तो रोज होली है। मेरी रामचरितमानस "होली बुक" है। होली बुक यानी पवित्र ग्रंथ। लोग सवाल करते हैं कि क्या आपके राम ने कभी होली खेली? कृष्ण तो होली खेलते हैं, जगजाहिर है। वे तो गजब के हैं, लेकिन राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। मैं कहता हूं कि राम ने भी होली खेली, लेकिन उनकी पिचकारी भिन्न थी।

    पुराने समय की पिचकारी ऐसी होती थी कि नीचे झुकाकर पानी भरो और फिर ऊपर उठाकर किसी पर तानकर पानी छोड़ दो। आप ध्यान दें कि बिल्कुल ऐसी ही मुद्रा राम के तीर चलाने की है। राम की होली कल्याण की होली है। उन्होंने जिससे भी होली खेली, उसे वैकुंठ दे दिया। निज पद दे दिया। उसे अपने स्वरूप के अंदर ही समा लिया।

    कृष्ण के उपासकों को होली के अवसर पर यह बात समझ लेनी चाहिए कि हमारे जीवन में जो भी घटना घट रही है, वह कृष्ण की ओर ले जाने वाली घटना है। ऐसा पूरा भरोसा रखना चाहिए, वरना समझो कृष्ण उपासना अभी कच्ची है। पूरा भरोसा होना चाहिए कि मेरे जीवन मे जो भी आए... मान, अपमान, दुख, सुख, प्रत्येक घटना कृष्ण की ओर ही ले जा रही है। इसके सिवा अन्य के गति नहीं है।

    रूप गोस्वामी जी ने कहा है-भगवान कृष्ण को देखने की उत्कंठा का जागना ही सिद्धि है। कृष्ण दिखें या ना दिखें, उत्कंठा मात्र ही सिद्धि है। कृष्ण ने ब्रज के लोगों के साथ होली खेली। बृजवासियों ने कृष्ण के साथ होली खेली, लेकिन हम जैसे लोग क्या कर सकते हैं? हम कैसे कृष्ण के साथ होली खेलें? इसका एक ही उपाय है, मन में उनके दर्शन की उत्कंठा पैदा करें। यह उत्कंठा ही कृष्ण के साथ होली खेलने के समान है।

    कृष्ण दर्शन की उत्कंठा ही प्रेमियों की सिद्धि है। इससे ज्यादा कोई सिद्धि हमें नहीं चाहिए। प्रेमी ऐसा निर्णय करके बैठ गया है दर्शन के लिए। आदमी तड़प रहा है... मेरा आश्रित है... उसकी पूरी कसौटी हो जाए फिर भगवान कृष्ण को ऐसा होता है कि मैं उसके निकट जाऊं। उसको तुष्टि कहते हैं। हम खुद से कभी तृप्ति नहीं पा सकेंगे। वो तृप्ति देगा तभी होगा वरना हमारी मांगे तो बढ़ती ही रहेंगी।

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    जब हमारी पुकार सुनकर उसको होता है कि अब देर ना हो जाए, इसलिए कृपा करके वो खुद जब हमारे सामने आ जाता है। उसको स्वयं आने देना, खींचकर मत लाना। तीसरी बात कही गई है.... भगवान कृष्ण के साथ एकांत वास। पहले सिद्धि, फिर करुणा करके वो सामने आए तो तृप्ति और फिर संगमो शब्द कहा है। भगवान कृष्ण के साथ... कृष्ण समर्पित। कृष्ण सखा हो या कृष्ण सखी हो।