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    Gita Jayanti 2025: गीता में मिलता है इन सभी मुश्किलों का हल, यहां पढ़ें इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

    By Jagran NewsEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Mon, 24 Nov 2025 02:18 PM (IST)

    जो जहां है, जिस रूप में, जिस कार्य क्षेत्र में है, वहीं से अपने कर्म को साधना बनाकर अपना जीवनोद्धार कर सकता है। गीता की ऐसी उदार-उदात्त दिव्य प्रेरणाएं हमारा उत्साहवर्धन करती हैं। आइए गीता से जुड़ी कुछ खास बातों को यहां जानते हैं।

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    Gita Jayanti 2025: गीता से जुड़ी प्रमुख बातें।

    स्वामी ज्ञानानन्द (गीता मनीषी, आध्यात्मिक गुरु)। अद्‌भुत ग्रंथ है गीता। जीवन की समस्त समस्याओं का युक्तियुक्त समाधान। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अनुपम ग्रंथ के लिए स्थान भी चौंकाने वाला चुना-महाभारत का समरांगण। युद्धभूमि, जहां पूरी तरह कोलाहलपूर्ण वातावरण है। पांडव और कौरव दोनों पक्षों की सेनाएं युद्ध के लिए पूर्ण तत्पर। उसमें जीवन की परमशांति और परमधाम अर्थात लोक-परलोक दोनों संवारने का उपदेश। अपने आप में आश्वर्य तो है, लेकिन व्यावहारिक घरातल की सच्चाई और आवश्यकता भी। यही नहीं, श्रीमद‌भगवद्‌गीता की सार्वभौमिकता और सब प्रकार से सबके लिए उपादेयता व उपयोगिता का यह प्रत्यक्ष उदाहरण भी है। गीता उपेदश की आवश्यकता महाभारत में ही अधिक है। जहां एकांत शांत स्थिति है, तनाव रहित वातावरण या मनःस्थिति यहां तो सब ठीक है ही। जहां तनाव, अशांति, वृत्तियों या परिस्थितियों का अंतर्द्वंद्व चल रहा है और शांति स्थिरता की आवश्यकता है, वहीं गीता की आवश्यकता है।

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    गीता तात्विक ग्रंथ है। सब ग्रंथों का सार है। प्रत्येक बात बहुत लाक्षणिक, दार्शनिक और विशेष रूप से तार्किक तात्विक ढंग से, सीमित शब्दों में, अधिक भाव व्यापकता और गहराई से कही गई है। शरीर, मन और बुद्धि मुख्य रूप से तीन विशिष्ट क्षमताएं मनुष्य के पास हैं। इनका सदुपयोग हो। ईश्वर प्रदत्त इन क्षमताओं से पूर्ण न्याय हो, इसके लिए गीता के तीन मुख्य योग है। शरीर क्रिया शक्ति है, उसके लिए कर्म योग। मन भाव शक्ति है, भावों को संसार की ओर नहीं मोड़ें, ईश्वर से जोड़े, यही भक्ति योग है। मन संसार से जुड़ा तो आसक्ति और परमात्मा में लगा तो भक्ति। बुद्धि ज्ञान शक्ति है। केवल संसार और बाह्य प्रकृति से संबद्ध जानकारियां ही ज्ञान नहीं। गीता के अनुसार तो यह ज्ञान नहीं अज्ञान है। ज्ञान सत-असत वस्तु विवेक से प्रारंभ होता है तथा फिर असत से वृत्ति हटाकर सत स्वरूप की पहचान करवा देता है।

    वस्तुतः गीता जगद्‌गुरु भगवान श्रीकृष्ण का मानवमात्र के लिए एक दिव्य उपहार है। अर्जुन कंवल निमित्त है। उपदेश तो दिग-दिगांत और युग-युगांत के लिए है। कहीं किसी भी प्रकार से जाति, वर्ग, वर्ण, देश, काल की कोई संकीर्णता नहीं। न तो गीता ज्ञान को किसी निर्जन बीहड़ वन, पर्वतीय कंदरा अथवा हिमालय के शिखरों तक ही सीमित किया गया और न ही केवल संन्यासियों, गृह-त्यागियों का एकाधिकार बनाया गया। अपना कल्याण करने में सब समर्थ हैं, सब योग्य हैं। जो जहां है, जिस रूप में, जिस कार्य क्षेत्र में है, वहीं से अपने कर्म को साधना बना सकता है, जीवनोद्धार कर सकता है। गीता की ऐसी उदार-उदात्त दिव्य प्रेरणाएं निश्चित ही आपका उत्साहवर्धन करती हैं।

    तर्क और युक्तियों के साथ अपनी बात स्पष्ट करने का अद्वितीय ढंग गीता की बहुत प्यारी विशेषता है। प्यार से समझाना, दुलारना, पुचकारना, आह्वान करना, कहीं-कहीं आवश्यकता पड़ने पर चेतावनी देना और सन्मार्ग पर अविलंब लाने हेतु कुछ कठोर शब्दों का प्रयोग, और उसमें भी फिर यह बात कि अपनी बुद्धि के विवेक को जागरूक रख। जैसा तुझे उचित लगे वैसा कर, सचमुच विद्वानों को भी चौंकाने वाली दिव्यता है। जीवन रथ का सारथि है बुद्धि। पार्थसारथि श्रीकृष्ण ने बुद्धि को इस ग्रंथ में विशिष्ट सम्मान और स्थान देकर इसे विश्वभर के चिंतकों-विचारकों का वरेण्य ग्रंथ बनाया है।

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