Jeevan Darshan: जीवन में सुख-शांति और सफलता पाने के लिए फॉलो करें ये आसान टिप्स
आदर्श जीवन के लिए घर से लेकर स्कूल व कॉलेजों में बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि किस प्रकार संस्कार विकसित किए जाने चाहिए। आज यह माना जाता है कि हम बहुत धन कमा लेंगे तो हमारा जीवन बेहतर होगा। बेहतर जीवन तथा विकास को नैतिक प्रगति नहीं बल्कि भौतिक प्रगति व संपन्नता के मापदंड पर तोला जा रहा है।
ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। आदर्श जीवन का अर्थ है मानवीय मूल्यों पर चलना। देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कोई न कोई वैल्यू सिस्टम (नीति पद्धति) काम करता है। हर व्यक्ति में कुछ गुणों के साथ अवगुण भी होते हैं। उसके जीवन को सुखमय व बेहतर बनाने के लिए अल्प भौतिक साधन तो चाहिए ही, पर इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति के भीतर का सोच, उसकी वृत्ति, दृष्टिकोण व मूल्यों की गुणवत्ता आदि कैसे हैं।
अर्थात विभिन्न परिस्थिति में किस बात व मूल्य को वह अधिक महत्व देता है। वह व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्व देता है या सामाजिक संवेदनशीलता, नैतिक उत्तरदायित्व, परहित व सेवा भाव को! दूसरे शब्दों में कहें तो क्या हम सिर्फ आजीविका कमाने वा भौतिक संपन्नता प्राप्त करने के लिए जी रहे हैं या साथ में आंतरिक सुख, शांति, संतुष्टि से उन्नत व बेहतर बना रहे हैं!
प्राचीन काल में भारत में गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी। उसमें व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों की शिक्षा-प्रशिक्षा भी दी जाती थी। शांति, प्रेम, दया, क्षमा और करुणा के आधार पर हृदयों को जीतने की बात कही जाती थी। लोगों की हृदय जीतकर लोग जगत को जीतते भी थे। आज की शिक्षा प्रणाली में डॉक्टर-इंजीनियर कैसे बनना है, यह सिखाया जाता है। डॉक्टर को सिखाया जाता है कि मरीजों का उपचार व सर्जरी कैसे करनी है, पर दया-करुणा के साथ उसे जल्दी कैसे ठीक कर देना है, यह शिक्षा नहीं दी जाती है।
आदर्श जीवन के लिए घर से लेकर स्कूल व कॉलेजों में बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि किस प्रकार संस्कार विकसित किए जाने चाहिए। आज यह माना जाता है कि हम बहुत धन कमा लेंगे तो हमारा जीवन बेहतर होगा। बेहतर जीवन तथा विकास को नैतिक प्रगति नहीं, बल्कि भौतिक प्रगति व संपन्नता के मापदंड पर तोला जा रहा है।
फलस्वरूप हमने भौतिक रूप में तो प्रगति की है, लेकिन अंदर से हम खाली होते जा रहे हैं। एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। परिवार में रिश्तों से, समाज से, संस्कृति, प्रकृति व पर्यावरण से। इन सभी स्तरों पर स्नेह, सम्मान, सहयोग, शुभ भावना और शुभकामना की कमी आ गई है।
चाहे कोई भी क्षेत्र हो, सबके अंदर अच्छे मूल्य और विश्वास हैं, उसमें से यदि जीवन मूल्यों को सही रूप में पहचाना और विकसित किया जाए तथा उन्हें जीवन का संस्कार बनाया जाए तो हम सब मिलकर अपनी जीवन व समाज को बेहतर वा आदर्शमय बना सकते हैं। ये नैतिक मूल्य हमें विपरीत परिस्थितियों में सही निर्णय लेने में सहयोग करते हैं।
जब नैतिक मूल्य हमारे मन में व्यवस्थित होते है, जीवन के मूल सिद्धांत हमारे पास हैं तो हमें सही निर्णय लेने में समय नहीं लगेगा। जीवन जीने की प्रक्रिया व अवस्था बहुत सरल, सहज और सुखदाई हो जाएगी। क्योंकि, हमारे पास अच्छे जीवन मूल्यों की एक नैतिक दिग्दर्शिका हमारे पास है। यह हमारे जीवन को बेहतर, सुखमय व सफल बनाने की मार्ग प्रशस्त करेगी।
यह तब होगा, जब हम अपने नैतिक मूल्यों पर दृढ़ता से डटे रहेंगे। तब कोई भी प्रलोभन, बाधा वा चुनौती हमे सच्चाई और अच्छाई की रास्ते से हटा नहीं पाएगी। उलटे, विपरीत परिस्थितियां हमारी आंतरिक शक्ति, क्षमता और मनोबल को अधिक बढ़ाएंगी।
यदि हमारे सिद्धांत व अच्छे जीवन मूल्य पहले से विकसित नहीं है तो हमारी आंतरिक शक्ति घटती जाएगी। हम अपने जीवन और परिवार की सुख-शांति, चैन तथा आत्मानुशासन को खो देंगे। फलस्वरूप, उन मूल्यों में गिरावट के कारण हमारे जीवन की मूल्य व महत्व खत्म हो जाएंगे और हमारा शरीर और मन रुग्ण होता जाएगा।
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घर-परिवार और कारोबार के माहौल को समृद्ध व बेहतर बनाने हेतु हमें अपने तथा अन्य सदस्यों के सोच, उनके दृष्टिकोण, आचरण व संस्कारों से प्रतिस्पर्धा वाली संकुचित भावनाओं के स्थान पर सहयोग, सहायता, सहानुभूति व सहभागिता आदि साकारात्मक मूल्यों का विकास व वृद्धि करना होगा।
इन सकारात्मक मूल्यों के बीजारोपण व उनका विकास बच्चों व युवाओं में घर से लेकर विद्यालय व महाविद्यालय स्तर तक पर किया जाना चाहिए। क्योंकि, आज घरों में या स्कूल में बच्चों को जो जीवन जीने की तरीका सिखाया जाता है, वह अच्छे नंबर ला कर कोई नौकरी या व्यवसाय में सफल होना है। आज की शिक्षा में आजीविका के साथ-साथ अच्छे वा आदर्श जीवन बनाने तथा उसे सही तरीके से जीने की शिक्षा आवश्यक है। अच्छे जीवन मूल्यों का शिक्षण-प्रशिक्षण बहुत जरूरी है।
कुछ लोगों का मानना है कि जीवन में सुख-शांति-समृद्धि व सफलता पाने के लिए अच्छे मूल्यों की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनका मानना है कि भ्रष्ट वा अनैतिक तरीकों से भी आज की मनुष्य खूब कमाई और मौज कर रहा है, सुख-शांति से जी रहा है।
ऐसे कहने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि अनैतिक उपाय से प्राप्त भौतिक उपलब्धियां व्यक्ति को क्षणभंगुर भौतिक भोग-विलास अथवा इंद्रिय केंद्रित सुख दे सकती हैं, लेकिन अंदर से वह इंसान हमेशा दुखी, अशांत, परेशान, भयभीत, बीमार व कमजोर रहता है। वह और उसके परिवार वाले सच्चे सुख, शांति, संतुष्टि व आनंद से कोसों दूर रहते हैं। असल में सत्यता, सादगी, ईमानदारी आदि जीवन मूल्य एक अच्छे व आदर्श जीवन जीने की रास्ते में बाधक नहीं, अपितु सहायक है।
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इन नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने वा आचरण में सहज विकसित करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान, दिव्य गुण व राजयोग ध्यान वा मेडिटेशन की नियमित अभ्यास और अनुभव आवश्यक है। साथ ही, हर कर्तव्य और संबंध को सफलतापूर्वक निभाने हेतु हमें सेवा भाव को आगे रखना है।
नियमित आत्मचिंतन, आध्यात्मिक ज्ञान व मूल्यों का विश्लेषण एवं परमात्मा की स्मृति से अपनी आत्म शक्ति को जाग्रत करना है, जिससे हम स्वयं को संसार में निमित्त समझकर अपने और दूसरों के जीवन को स्वच्छ, स्वस्थ, सुखी, समृद्ध और मूल्यनिष्ठ बना पाएं।
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