माता सीता ने कई चुनौतियों का किया था सामना, उनके जीवन से मिलती हैं ये सीख
माता सीता ने जीवन से समाज के लिए एक आदर्श स्थापित किया है। उनके जीवन में चुनौती और कष्ट ने उनके साहस संयम और चरित्र की परीक्षा ली। माता जानकी को कई बार संकटों का सामना करना पड़ा उतने संकट कदाचित ही किसी भी स्त्री को सहन करने पड़े होंगे। उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी और विपत्ति की आंच में तपकर वे सदा खरे सोने की भांति निखर उठी थीं।
डा. प्रणव पण्ड्या (अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख व आध्यात्मिक चिंतक)। हिंदू शास्त्रों में माता सीता एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में आदर्श व चरित्र को सदैव उज्ज्वल रखा। आज जब एक छोटी से कठिनाई में लोगों का पैर फिसल जाता है, वहीं माता सीता का जीवन संकटों से भरा रहा, लेकिन उनका एक पल भी ऐसा नहीं रहा, जब वे आदर्श से विमुख रही हों।
(Pic Credit-AI )
माता सीता ने कई चुनौतियों का किया सामना
माता सीता ने अपने जीवन से हमारे समाज के लिए एक आदर्श स्थापित किया है। उनके जीवन में हर चुनौती और कष्ट ने उनके साहस, संयम और चरित्र की परीक्षा ली। माता जानकी को कई बार संकटों का सामना करना पड़ा, उतने संकट कदाचित ही किसी भी स्त्री को सहन करने पड़े होंगे। उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी और विपत्ति की आंच में तपकर वे सदा खरे सोने की भांति निखर उठी थीं। यही कारण भारतीय साहित्य के अधिकांश पृष्ठ माता जानकी की उज्ज्वल चरित्रों से ही गौरवान्वित हुए हैं।
(Pic Credit-AI)
माता सीता के जीवन से मिलती हैं ये शिक्षा
माता सीता के जीवन के कई पहलू हैं, जो हमें शिक्षा देते हैं। उनका धैर्य, उनके संस्कार और प्रभु श्रीराम के प्रति अडिग विश्वास यह साबित करते हैं कि वह केवल एक पत्नी या एक महिला नहीं, बल्कि उज्ज्वल चरित्रवान और एक आदर्श व्यक्तित्व थीं, जो अपने कर्तव्यों को हर परिस्थिति में निभाती रहीं। माता सीता ने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम से विवाह के बाद अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और संकल्प से निभाया। प्रभु श्रीराम के प्रति माता जानकी का समर्पण भाव बहुत ही प्रखर था। जब श्रीराम को वनवास मिला, तब माता सीता कहती हैं-
स मामनादाय वनं न त्वं प्रस्थितुमर्हसि।
तपो वा यदि वाऽरण्यं स्वर्गो वा स्यात् त्वया सह॥
आप अपने साथ मुझे भी वन को ले चलिए। चाहें आप तप करें, चाहें आप वनवास करें और चाहें आप स्वर्गवास करें, मुझे तो आपके सान्निध्य में ही रहना है। प्रभु श्रीराम से आज्ञा मिलने पर वे साथ जाती है। जब वनवास में रावण ने उनका हरण किया, तो भी वे बहुत ज्यादा हताश-निराश नहीं हुईं। इस कठिनतम परिस्थिति में उन्होंने न केवल अपनी रक्षा की, बल्कि अपनी शक्ति और सामर्थ्य से श्रीराम का साथ दिया। अपने जीवन में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संघर्षों का सामना करते हुए भी उनका चरित्र कभी विकृत नहीं हुआ।
(Pic Credit-AI)
माता सीता न केवल एक पतिव्रता नारी थीं, वरन एक महान आत्मा थीं, जिन्होंने कठिनतम परिस्थितियों में भी अपनी मर्यादा और आदर्श को बनाए रखा। उनके त्याग, समर्पण और साहस ने उन्हें न केवल एक आदर्श पत्नी, बल्कि एक आदर्श स्त्री और धवल व्यक्तित्व बना दिया। उनका यह आदर्श हमारे जीवन के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने हमें सिखाया कि जीवन में कठिनाइयां तो आती हैं, लेकिन हमें अपने कर्तव्यों को कभी नहीं भूलना चाहिए।
(Pic Credit-AI)
जीवन का चरित्र सदैव उज्ज्वल रखना चाहिए। जब उन्हें अपनी पवित्रता और त्याग के कारण ऋषि वाल्मिकी के आश्रम में रहना पड़ा, तब अपने बच्चों को एक उपयुक्त शिक्षा और संस्कार देने का संकल्प लिया। माता सीता ने कुश व लव को आत्म-संयम, साधना और धार्मिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया। माता सीता के जीवन से हमें सीख लेने की आवश्यकता है। जीवन में संघर्ष आएंगे, लेकिन अगर आपका चरित्र उज्ज्वल और दृढ़ संस्कार होंगे तो आप किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।