चप्पल-जूते पहनकर क्यों नहीं कर सकते हैं पूजा, जानिए इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
सनातन धर्म में पूजा-पाठ को पवित्र माना जाता है। शारीरिक मानसिक और आत्मा की शुद्धि के साथ पवित्रता का महत्व है। जूते-चप्पल बाहर उतारने का कारण है कि वे सड़क की गंदगी से गुजरते हैं जिसे मंदिर में नहीं ले जाना चाहिए। मंदिर में ध्यान लगाने के समय जूते पहनने से बीमारियां फैल सकती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। अपना अक्सर देखा होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं, तो जूते-चप्पल बाहर उतार देते हैं। कई लोग इस बात पर तर्क भी करते हैं कि विदेशों में लोग जूते पहनकर पूजा करते हैं। क्या इससे कोई फर्क पड़ता है? क्या जूते पहनकर पूजा करने से पाप पड़ता है? आखिर इसका वैज्ञानिक और धार्मिक कारण क्या है…?
दरअसल, सनातन धर्म में पूजा-पाठ को बहुत पवित्र कार्य माना गया है। इस दौरान शारीरिक, मानसिक और आत्मा की शुद्धि के साथ ही पवित्रता का बड़ा महत्व होता है। इसी वजह से जूते-चप्पल को मंदिर के बाहर उतारा जाता है क्योंकि सड़क पर चलते हुए कई तरह की गंदगी से वो गुजरते हैं।
मंदिर जैसी पवित्र जगह पर उस गंदगी को लेकर नहीं जाना चाहिए। इसलिए भी जूते-चप्पल को मंदिर के बाहर उतार दिया जाता है। मंदिर में बैठकर ध्यान लगाते हैं, ऐसे में यदि आप जूते-चप्पल पहनकर मंदिर के परिसर में घूमते हैं, तो बीमारियां फैल सकती है। इसीलिए मंदिरों में पैर धोने की सुविधा भी होती है। यह मंदिर को दूषित और अपवित्र होने से बचाती है।
अंहकार को छोड़कर जाएं
भगवान की शरण में जाने के लिए जरूरी है कि आप सांसारिकता और भौतिकता को छोड़ दें। अपने अहंकार को छोड़ दें जब हम जूते उतारते हैं, तो हम अपने अहंकार को छोड़ते हैं। भारतीय परंपरा में मंदिरों, आश्रमों और घर के पूजा स्थलों में नंगे पांव जाना श्रद्धा, नम्रता और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
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इसके अलावा पूजा और ध्यान करते हुए जमीन पर बैठना होता है। ध्यान में गहरे उतरने के लिए शरीर का हल्का और सहज होना जरूरी होता है। जूते या चप्पल पहनकर आप उतने सहज होकर नहीं बैठ पाएंगे।
इसलिए सनातन धर्म के अनुसार जूते-चप्पलों को धार्मिक जगहों पर बाहर उतारने की परंपरा रखी गई है। इसलिए मंदिर में जूते पहनकर जाना पाप तो नहीं है, लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से गलत जरूर है।
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