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    Mahabharata Story: महाभारत युद्ध के बाद कहां चले गए धृतराष्ट्र की आंखें बनने वाले संजय?

    Updated: Wed, 22 Jan 2025 01:03 PM (IST)

    संजय गावाल्गण नामक सूत के पुत्र थे। वह पांडवों के प्रति सहानुभूति रखते थे क्योंकि उन्हें पता था कि पांडवों के साथ गलत हो रहा है। कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में वह नेत्रहीन धृतराष्ट्र की आंखें (Dhritarashtras vision) बने थे अर्थात उन्होंने युद्ध का सारा आंखों देखा हाल महल में बैठे-बैठे धृतराष्ट्र को सुनाया था। उन्हें यह शक्ति वेदव्यास द्वारा प्रदान की गई थी।

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    Mahabharata Story जानिए संजय से जुड़ी जरूरी बातें।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। संजय (Mahabharata Sanjay), महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक रहे हैं, जो हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के सलाहकार और सारथी भी थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद आखिर संजय कहां गए और किस तरह अपना जीवन जिया? आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।

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    कहां गए संजय

    महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी। कहा जाता है कि युद्ध की समाप्ति के बाद संजय (Sanjay's destiny in Mahabharata) काफी समय तक युधिष्ठिर के राज्य में रहे थे। यह भी माना जाता है कि जब महाराज धृतराष्ट्र, उनकी पत्नी गांधारी और पांडवों की माता कुंती ने संन्यास लिया, तो संजय ने भी उन तीनों के साथ संन्यास ले लिया। यह भी कहा जाता है कि धृतराष्ट्र की मृत्यु होने के बाद संजय हिमालय में जाकर रहने लगे।

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    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    संजय से जुड़ी अन्य खास बातें

    संजय (Sanjay's fate) हमेशा धर्म का साथ देते थे और बेहद विनम्र और धार्मिक स्वभाव के थे। वह महाराज धृतराष्ट्र के सामने भी अपनी बात कहने में नहीं हिचकिचाते थे, चाहे वह बात राजा के विरोध में ही क्यों न हो। संजय, वेदव्यास के शिष्य थे, जिन्होंने उन्हें दिव्य दृष्टि का वरदान दिया था। महाभारत की युद्ध भूमि में जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन दिए, तो इस दर्शन का लाभ संजय को भी मिला।

    महाराज धृतराष्ट्र ने महाभारत के युद्ध को टालने के लिए संजय को ही पांडवों के पास समझाने के लिए भेजा था। लेकिन संजय यह जानते थे कि अब युद्ध नहीं टाला जा सकता। जब चौसर के खेल में हारने के बाद पांडवों को वनवास का सामना करना पड़ा, तब भी संजय ने धृतराष्ट्र को यह चेतावनी दी थी कि 'हे राजन! कुरु वंश का नाश अब निश्चित है, लेकिन इस युद्ध में प्रजा की भी भारी हानि होने वाली है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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