Shiv Ji Damru: कब और क्यों भगवान शिव ने धारण किया डमरू और क्या है इसका धार्मिक महत्व?
धार्मिक मत है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए शिव उपासना की सलाह देते हैं। भगवान शिव की पूजा करने से कुंडली में सभी शुभ ग्रह मजबूत होते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiv Ji Damru: सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा-वंदना की जाती है। साथ ही सोमवार का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शिव पुराण में महादेव की महिमा का गुणगान विस्तार पूर्वक किया गया है। भगवान शिव महज जल के अभिषेक यानी जलाभिषेक से प्रसन्न हो जाते हैं। इसके लिए उन्हें भोला भंडारी भी कहा जाता है। ज्योतिष भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जलाभिषेक या दुग्धाभिषेक करने की सलाह देते हैं। भगवान शिव की पूजा करने से कुंडली में सभी शुभ ग्रह मजबूत होते हैं। वहीं, अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव ने डमरू क्यों धारण किया है और इसका धार्मिक महत्व क्या है ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
क्या है डमरू ?
डमरू एक वाद्य यंत्र है। इसे बजाया जाता है। वर्तमान समय में सन्यासी लोग अपने साथ डमरू रखते हैं। इसके अलावा, लोग अपने घरों में भी डमरू रखते हैं। भगवान शिव ने जगत कल्याण हेतु डमरू को धारण किया था। डमरू शंकु आकार में होता है। इसके दोनों विपरीत दिशा में रस्सी बंधी होती है। इससे मधुर आवाज निकलती है, जिसमें चौदह तरह के लय होते हैं। मुख्तयः इसकी आवाज डुग-डुग के रूप में निकलती है। वास्तु शास्त्र के जानकार भी घर पर डमरू रखने की सलाह देते हैं।
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शिवजी ने कब धारण किया डमरू ?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रिदेव ने सृष्टि की रचना की। उस समय समस्त लोक में मौन व्याप्त था। यह देख भगवान शिव अपनी रचना से संतुष्ट नहीं हुए। तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव एवं विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से अंजलि में जल लिया और मंत्र उच्चारण कर जल को धरा पर छिड़क दिया। इससे धरा पर कंपन होने लगा। मानो भूकंप आ गया हो। उसी स्थान पर स्थित एक वृक्ष से शक्ति स्वरूपा मां शारदे का प्रादुर्भाव हुआ। मां शारदे चतुर्भुजी हैं। मां के एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में पुस्तक और तीसरे हाथ में माला है। वहीं, चौथा हाथ वर मुद्रा में है। इससे समस्त जगत का कल्याण होता है। मां शारदे ने त्रिदेव का अभिवादन कर मधुर नाद किया। इससे समस्त लोक में चंचलता व्याप्त हो गई। उस समय भगवान शिव प्रसन्न हुए। इसके बाद उन्होंने मधुर नाद को लय प्रदान करने के लिए अपना डमरू बजाया। इससे सुर और संगीत को लय मिला। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि में लय स्थापित करने के लिए भगवान शिव का अवतरण डमरू के साथ हुआ था। आसान शब्दों में कहें तो देवों के देव महादेव डमरू लेकर अवतरित हुए थे।
डमरू बजाने के लाभ
वास्तु शास्त्रों की मानें तो घर पर डमरू रखने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पूजा के समय डमरू बजाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव की कृपा पाने के लिए रोजाना पूजा के समय डमरू बजाना चाहिए। एक लय में डमरू बजाकर सुनने से व्यक्ति को मानसिक विकार से मुक्ति मिलती है।
सुख का प्रतीक
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि देवों के देव महादेव प्रसन्न होने पर डमरू बजाकर नृत्य करते हैं। ये परम सुखदायी है। हालांकि, तीव्र और तेज गति में डमरू बजाने से प्रलय भी आ सकता है। जब महादेव क्रोधित होते हैं, तो तेज और तीव्र गति में डमरू बजाते हैं। यह मानव जगत के लिए कल्याणकारी नहीं होता है। कहते हैं कि डमरू से ही ध्वनि की उत्पत्ति हुई है। भगवान शिव डमरू की मदद से कालचक्र यानी समय को भी एक लय में संतुलित करते हैं।
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