Kokila Forest: कहां है शनिदेव को समर्पित कोकिला वन और क्या है इसका धार्मिक महत्व?
Kokila Forest facts उत्तर भारत में हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। वहीं दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि वैशाख या ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kokilavan shani Temple: सनातन धर्म में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित है। इस दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही साधक शनिदेव की कृपा-दृष्टि पाने हेतु व्रत-उपवास रखते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में शनि की महादशा, ढैय्या, साढ़े साती के दौरान व्यक्ति को जीवन में बुरे दौर से गुजरना पड़ता है। साथ ही बने काम भी बिगड़ जाते हैं। आसान शब्दों में कहें तो शनिदेव की कुदृष्टि पड़ने पर जातक को नाना प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अतः ज्योतिष कुंडली में शनि ग्रह मजबूत करने की सलाह देते हैं। इसके लिए किसी विशेष प्रयोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। महज भगवान शिव या भगवान कृष्ण की पूजा कर शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं। शनिदेव के आराध्य स्वयं त्रिलोकीनाथ महेश हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि कोकिलावन की परिक्रमा मात्र से शनि दोष नष्ट हो जाता है? आइए, कोकिला वन के बारे में सबकुछ जानते हैं-
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शनि जयंती
उत्तर भारत में हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। वहीं, दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि वैशाख या ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही अनजाने में किए गए पाप भी कट जाते हैं। शनिदेव को मोक्ष प्रदाता भी कहा जाता है।
स्वरूप
न्याय के देवता शनिदेव का श्याम वर्ण है। शनिदेव की सवारी गिद्ध, कौआ, श्वान, घोड़ा, हाथी आदि हैं। शनिदेव के एक हाथ में धनुष बाण है, तो दूजा हाथ वर यानी आशीर्वाद मुद्रा में है। शनिदेव दूजे हाथ से मानव जगत का कल्याण करते हैं। वहीं, अधर्म की राह पर चलने वाले और बुरे कार्य में लिप्त रहने वाले जातकों को शनिदेव दंड देते हैं।
कोकिला वन कहां है ?
धर्म गुरुओं की मानें तो भारत में शनिदेव के तीन सिद्ध पीठ मंदिर हैं। इनमें तीसरा उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित कोसी कलां में है। मथुरा से कोसी कलां की दूरी 50 किलोमीटर है। श्रद्धालु मथुरा से सड़क मार्ग के जरिए कोसी कलां पहुंच सकते हैं। वहीं, देश की राजधानी दिल्ली से वायु मार्ग या रेल मार्ग के माध्यम से मथुरा पहुंच सकते हैं। सनातन शास्त्रों में कोसी कलां के बारे में विस्तार से बताया गया है। एक बार की बात है जब श्री नंद महाराज द्वारका पुरी दर्शन की इच्छा जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण से की। उस समय भगवान कृष्ण ने श्री नंद महाराज और यशोदा मैया को कोसी कलां में द्वारका पुरी का दर्शन कराया था। इस भूमि में कई धार्मिक स्थल हैं। इनमें कोकिला वन प्रमुख हैं। कोकिला वन में सिद्ध शनिदेव का मंदिर है।
कथा
शास्त्रों में निहित है कि न्याय के देवता शनिदेव, जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त हैं। हर समय शनिदेव अपने आराध्य जगत के पालनहार मुरली मनोहर का सुमिरन करते हैं। अपनी माता छाया की तरह शनिदेव ने देवों के देव महादेव की भी कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शनिदेव को न्याय करने का अधिकार दिया। उस समय भगवान शिव ने शनिदेव से कहा- मानव मात्र ही नहीं बल्कि देवता भी आपसे डरे रहेंगे। हालांकि, आपके शरणागत रहने वाले लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। अतः आप नवग्रहों में श्रेष्ठ कहलाएंगे।
कालांतर में शनिदेव ने दर्शन हेतु भगवान श्रीकृष्ण की कठिन तपस्या की। उस समय मुरली मनोहर ने शनिदेव को वृन्दावन के पास स्थित कोसीकलां में कोयल रूप में दर्शन दिया था। साथ ही यह वरदान दिया कि जो कोई कोकिला वन में स्थित शनि मंदिर की परिक्रमा करेगा। उसकी सभी मनोकामना पूरी होगी। साथ ही शनि दोष का प्रभाव समाप्त हो जाएगा। श्रद्धालु अपनी स्थिति के अनुसार कोकिलावन की परिक्रमा करते हैं। इस वन की दंडवत परिक्रमा करने से साधक पर शनिदेव की विशेष कृपा बरसती है।
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