Ravan and Shani Dev story: कब और कैसे शनिदेव ने दशानन रावण के ज्योतिष गणित पर फेर दिया था पानी?
लंका नरेश रावण देवों के देव महादेव के प्रिय भक्त थे। महादेव की भक्ति से दशानन रावण को मायावी विद्या हासिल हुई थी। वहीं दशानन रावण (Ravan and Shani Dev story) के पुत्र मेघनाथ भी अपने पिता की तरह भगवान शिव के परम भक्त थे। मेघनाथ ने त्रिदेवों की कठिन साधना की। इसके फलस्वरूप मेघनाथ स्वर्ग को जीतने में कामयाब हुए थे।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गोस्वामी तुलसीदास भक्ति काल के प्रमुख कवि थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई प्रमुख रचनाएं की हैं। इनमें रामचरितमानस, हनुमान चालीसा एवं विनय पत्रिका प्रमुख हैं। रामचरितमानस पाठ में गोस्वामी तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जीवन की जानकारी दी है। भगवान राम और दशानन रावण त्रेता युग के समकालीन थे। वनवास के दौरान लंका नरेश रावण ने मां सीता का हरण कर लिया था। तत्कालीन समय में वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने दशानन रावण को परास्त किया था।
शास्त्रों में निहित है कि दशानन रावण महान ज्योतिष भी थे। दशानन रावण ने ज्योतिष विद्या के माध्यम से अपने पुत्र मेघनाथ को अमरता प्रदान करने की कोशिश की। हालांकि, इस प्रयास में दशानन रावण सफल नहीं हो सके थे। दशानन रावण की ज्योतिष विद्या पर न्याय के देवता शनिदेव ने पानी फेर दिया था। इसके चलते शनिदेव को दशानन रावण अपना शत्रु (Ravan and Shani Dev story) मानते थे। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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कौन थे मेघनाथ?
इंद्रजीत मेघनाथ लंका नरेश रावण और मंदोदरी का अग्रज पुत्र था। मेघनाथ के गुरु दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। शुक्राचार्य से विद्या हासिल कर मेघनाथ ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मेघनाथ को पाशुपतास्त्र दिया था। द्वापर युग में अर्जुन के पास भी पाशुपातास्त्र था। इससे पूर्व और बाद में किसी को भी पाशुपतास्त्र प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हो सका। इसके साथ ही मेघनाथ ने ब्रह्मा जी से ब्रह्मास्त्र और जगत के पालनहार भगवान विष्णु से नारायणास्त्र प्राप्त किया था।
स्वर्ग पर विजय प्राप्त करने के चलते मेघनाथ को इंद्रजीत कहा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार भगवान कार्तिकेय को मेघनाथ से युद्ध के दौरान विधि के नियमों का पालन करने हेतु पीछे हटना पड़ा था। उस समय ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को अमर होने की विधि बताई थी। हालांकि, इस प्रयास में मेघनाथ सफल नहीं हो सका था। शास्त्रों में निहित है कि मेघनाथ ने एक बार अमर होने के लिए कुलदेवी निकुंभला देवी की तंत्र यज्ञ किया। इस यज्ञ को हनुमान जी की सेना ने भंग कर दिया था। इसके चलते मेघनाथ को अमरता का वरदान नहीं प्राप्त हो सका। इससे पूर्व रावण ने भी मेघनाद को अमरता का वरदान प्रदान करने की कोशिश की थी।
कैसे शनिदेव ने बिगाड़ा रावण का गणित?
धर्म जानकारों की मानें तो दशानन रावण बहुत बड़ा ज्योतिष थे। रावण हमेशा अपने पुत्र को अजेय-अमर देखना चाहते थे। इसके लिए सभी शुभ और अशुभ ग्रहों को बंदी बनाकर पुत्र की कुंडली के एकादश भाव में रख दिया था। कहते हैं कि इस भाव में सभी ग्रहों के रहने पर जातक दीर्घायु होता है। साथ ही जातक अजेय होता है।
हालांकि, मोक्ष प्रदाता शनिदेव रावण की मंशा को भांप गए थे। इसके लिए शनिदेव बारहवें भाव में विराजमान हो गये। इसके चलते दशानन रावण का पूरा गणित बिगड़ गया। दशानन रावण को दीर्घायु पुत्र प्राप्त नहीं हो सका। कहते हैं कि शनिदेव के चलते ही दशानन रावण और इंद्रजीत मेघनाथ को भगवान श्रीराम के विरुद्ध युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था।
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