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    Shri Ram Bow: भगवान श्रीराम को कब और कैसे प्राप्त हुआ था कोदंड धनुष और क्या थी इसकी खासियत?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 25 Nov 2024 01:28 PM (IST)

    राम भक्त तुलसीदास ने अपनी रचना रामचरितमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम (Shri Ram Famous Bow) के जीवन चरित्र का वर्णन किया है। धर्म गुरुओं की मानें तो भगवान श्रीराम ने अपने जीवनकाल में केवल और केवल दुखों का सामना किया था। इसके बावजूद उन्होंने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था। शास्त्रों में निहित है कि राम से बढ़कर राम का नाम है।

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    Shri Ram Bow: भगवान श्रीराम की जीवन गाथा

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान श्रीराम त्रेता युग के समकालीन थे। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा दी गयी है। उन्होंने अपने जीवन में सभी कर्तव्यों का पालन मर्यादा में रहकर किया। इसके चलते उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम कहा जाता है। पिता की आज्ञा का पालन कर चौदह वर्षों तक वनवास में रहें। वनवास के दौरान रावण ने मैया सीता का हरण कर लिया। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम को पत्नी का वियोग मिला। उस समय भगवान श्रीराम ने वानर सेना की मदद से रावण को परास्त कर माता जानकारी को मुक्त कराया। इस कार्य में भगवान श्रीराम को हनुमान जी का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। भगवान श्रीराम धनुर्धारी थे। उन्होंने सीता स्वयंवर में पिनाक धनुष तोड़ा था। इसके पश्चात, उनकी शादी माता जानकारी से मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुई थी। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान श्रीराम के धनुष (ShriRam Famous Bow) का क्या नाम है और कैसे उन्हें प्राप्त हुआ ? आइए इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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    रामजी के धनुष का क्या नाम था?

    धर्म शास्त्रों की मानें तो भगवान श्रीराम के धनुष का नाम कोदंड था। इस धनुष की खासियत यह थी कि कोई सामान्य व्यक्ति या सामान्य योद्धा उसका वरण यानी धारण नहीं कर सकता था। यह पूर्णरूपेण चमत्कारी धनुष था। सामान्य बांस से कोदंड धनुष का निर्माण हुआ था।  रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कोदंड बांस की महिमा का बखान किया है। ऐसा भी कहा जाता है कि कोदंड धनुष से भगवान श्रीराम ने लंका जाने के क्रम में समुद्र को सुखाने के लिए प्रत्यंचा चढ़ाया था कि वरुणदेव प्रकट होकर क्षमा याचने करने लगे थे। वरुण देव के अनुरोध के बाद भगवान श्रीराम ने क्षमा याचना दी थी। इस धनुष से चलाया गया बाण निशाना भेदकर ही लौटता था। कोदंड धनुष का वजन एक क्विंटल था।

    कैसे हुआ था प्राप्त

    कई सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लंबे समय तक दंडकारण्य वन में रहे थे। इस दौरान उन्होंने दंडकारण्य में रहने वाले असुरों का वध किया था। यह वन रावण का गढ़ था। इस वन में ही भगवान श्रीराम ने कोदंड धनुष का निर्माण किया था। दंडकारण्य वन में भगवान राम नेअस्त्र-शस्त्र भी एकत्र किये थे। इस धनुष के माध्यम से भगवान श्रीराम ने रावण सेना का नाश किया था।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।