Shankhpal Kaal Sarp Dosh: कब और कैसे लगता है शंखपाल कालसर्प दोष? इन उपायों से पाएं निजात
धार्मिक मत है कि देवों के देव महादेव की पूजा करने से कुंडली में व्याप्त राहु और केतु के अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। साथ ही साधक पर भगवान शिव की कृपा बरसती है। उनकी कृपा बरसने से साधक को हर कार्य में सफलता मिलती है। स्पष्ट राहु और केतु (Shankhpal Kaal Sarp Dosh) रहने पर निवारण कराना उत्तम होता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में ज्योतिष शास्त्र का विशेष महत्व है। ज्योतिष व्यक्ति विशेष के भविष्य की जानकारी के लिए कुंडली देखते हैं। कुंडली के माध्यम से व्यक्ति के करियर, कारोबार, सेहत, रोजगार, प्रेम, विवाह आदि की जानकारी मिल जाती है। ज्योतिषियों की मानें तो शुभ और अशुभ ग्रहों की युति से कई दोष लगते हैं। इनमें एक कालसर्प दोष है। इस दोष से पीड़ित जातकों को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आइए, शंखपाल कालसर्प दोष के बारे में जानते हैं।
यह भी पढ़ें: Masik Shivratri 2024 Upay: जल्द शादी करने के लिए शिवरात्रि पर करें ये उपाय, मिलेगा मनचाहा लाइफ पार्टनर
कब लगता है शंखपाल कालसर्प दोष?
मायावी ग्रह राहु के चौथे भाव और केतु के दसवें भाव में रहने से कुंडली में शंखपाल कालसर्प दोष बनता है। इस समय अन्य ग्रहों का भी विचार किया जाता है। राहु और केतु के मध्य सभी शुभ और अशुभ ग्रहों के रहने से जातक शंखपाल कालसर्प दोष से पीड़ित होता है। इसके लिए ज्योतिष से अवश्य सलाह लें।
शंखपाल कालसर्प दोष के प्रभाव
ज्योतिषियों की मानें तो शंखपाल कालसर्प दोष से पीड़ित जातक के विवाह में देर होती है। कई अवसर पर शादी आधी उम्र तक नहीं हो पाती है। अगर शादी हो भी जाए, तो वैवाहिक जीवन में परेशानी आती है। इसके साथ ही मानसिक तनाव की भी समस्या होती है।
उपाय
ज्योतिषियों का कहना है कि शंखपाल कालसर्प दोष से पीड़ित जातक हर सोमवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद विधिवत भगवान शिव की पूजा करें। इस समय भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। इसके साथ ही सोमवार के दिन दान अवश्य करें। वहीं, समय मिलने पर शंखपाल कालसर्प दोष का निवारण अवश्य कराएं।
शिव मंत्र
1. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
2. नमामिशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं।।
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
4. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
5. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।
यह भी पढ़ें: Vasuki Kaal Sarp Dosh: कब और कैसे लगता है वासुकी कालसर्प दोष? इन उपायों से करें बचाव
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।