Vinayak Chaturthi 2025: भगवान गणेश की पूजा के समय कर लें इस स्तोत्र का पाठ, परेशानियां छोड़ देंगी साथ
ज्योतिषियों की मानें तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (Vinayak Chaturthi 2025) पर सुकर्मा योग का संयोग बन रहा है। इस योग में भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को जीवन में सुखों का आगमन होता है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में विनायक चतुर्थी का खास महत्व है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। वैशाख माह की विनायक चतुर्थी 01 मई को मनाई जाएगी। साधक एक मई के दिन व्रत रख भगवान गणेश की पूजा एवं भक्ति कर सकते हैं।
धार्मिक मत है कि भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही करियर और कारोबार संबंधी परेशानी दूर होती है। इसके अलावा, घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा पाना चाहते हैं, तो विनायक चतुर्थी पर गणपति बप्पा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
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ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित: ।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत् ॥
संकटनाशन गणेश स्तोत्र
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥
संतान प्राप्ति गणेश स्तोत्र
ॐ नमोस्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धि प्रदाय च |
सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च | |
गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यसिताय च |
गोप्याय गोपितशेषभुवनाय चिदात्मने ||
विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते |
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ||
एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः |
प्रपन्नजनपालय प्रणतार्ति विनाशिने ||
शरणं भव देवेश सन्ततिं सुद्रढां कुरु |
भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ||
ते सर्वे तव पूजार्थे निरताः स्युर्वरो मतः |
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकं ||
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