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    Vaishakh Month 2025: वैशाख में जरूर रखें तुलसी के इन नियमों का ध्यान, भरे रहेंगे अन्न-धन के भंडार

    13 अप्रैल से वैशाख (Vaishakh month 2025) माह की शुरुआत हो चुकी है। यह महीना मुख्य रूप से भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित है। वहीं तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय मानी गई है। ऐसे में यदि आप वैशाख माह में तुलसी से संबंधित इन नियमों का ध्यान रखते हैं तो इससे आपको काफी लाभ देखने को मिल सकता है।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 15 Apr 2025 10:31 AM (IST)
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    Vaishakh Month 2025 Tulsi Puja related rules

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। तुलसी का पौधा, हिंदू धर्म में बेहद पूजनीय है। माना जाता है कि रोजाना तुलसी की पूजा-अर्चना करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। वैशाख माह में इस पौधे का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसे में आप इस माह में तुलसी से जड़े कुछ उपाय करके, भगवान विष्णु के कृपा पात्र बन सकते हैं। चलिए जानते हैं वह उपाय।

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    जरूर करें ये काम

    वैशाख माह में रोजाना सुबह-शाम तुलसी की पूजा करें और उसमें जल अर्पित करें। इस दौरान तुलसी की 3 या 7 बार परिक्रमा भी करें। ऐसा करने से साधक को तुलसी जी के साथ-साथ भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की भी कृपा की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है।

    बनी रहेगी सुख-समृद्धि

    धार्मिक मान्यता है कि वैशाख माह में तुलसी की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बना रहता है। ऐसे में वैशाख माह में तुलसी के समक्ष रोजाना सुबह-शाम तुलसी के समक्ष घी का दीपक जरूर जलाएं।

    ध्यान रखें ये बातें

    इस बात का जरूर ध्यान रखें कि रविवार और एकादशी तिथि के दिन तुलसी में जल अर्पित नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि एकादशी तिथि पर देवी तुलसी भगवान विष्णु के निमित्त निर्जला व्रत करती हैं और जल देने से उनके व्रत में विघ्न पहुंच सकता है।

    इन तिथियों पर तुलसी के पत्ते भी नहीं उतारने चाहिए। इसी के साथ कभी भी बिना स्नान किए या फिर जूठे हाथों से तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस बात का भी खासतौर से ध्यान रखें कि तुलसी के आसपास हमेशा साफ-सफाई होनी चाहिए।

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    करें इन मंत्रों का जप

    तुलसी जी के मंत्र -

    महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

    तुलसी गायत्री -

    ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।

    वृंदा देवी-अष्टक मंत्र -

    गाङ्गेयचाम्पेयतडिद्विनिन्दिरोचिःप्रवाहस्नपितात्मवृन्दे ।

    बन्धूकबन्धुद्युतिदिव्यवासोवृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।